द हिंदू: 12 फरवरी 2025 को प्रकाशित:
चर्चा में क्यों है?
यह लेख हन्ना अरेन्ट द्वारा विकसित अवधारणा “बुराई की सामान्यता” (Banality of Evil) को वर्तमान इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष, विशेष रूप से गाज़ा की स्थिति से जोड़ता है। यह दर्शाता है कि कैसे साधारण नौकरशाह और सरकारी अधिकारी, बिना किसी सक्रिय द्वेष के, बड़े पैमाने पर अत्याचारों में योगदान कर सकते हैं, केवल "आदेशों का पालन" करके। इसमें पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की गाज़ा को पुनर्वासित करने और इसे एक "अंतर्राष्ट्रीय शहर" बनाने की टिप्पणियों की भी आलोचना की गई है।
मुख्य बिंदु
"बुराई की सामान्यता" (Banality of Evil): हन्ना अरेन्ट ने नाजी अधिकारी एडॉल्फ आइखमान को एक साधारण नौकरशाह बताया, जिसने यहूदियों के नरसंहार (Holocaust) में प्रमुख भूमिका निभाई, लेकिन वह कोई क्रूर राक्षस नहीं था, बल्कि बस आदेशों का पालन कर रहा था।
नौकरशाही और जनसंहार: लेख यह तर्क देता है कि आज भी गाज़ा जैसी जगहों पर सरकारी अधिकारी और नौकरशाह सोच-समझकर नहीं, बल्कि बेपरवाही में अत्याचारों का हिस्सा बन जाते हैं।
ट्रंप की गाज़ा पुनर्वास योजना: ट्रंप का गाज़ा को एक "अंतर्राष्ट्रीय शहर" में बदलने और फिलिस्तीनियों को अन्य देशों में स्थानांतरित करने का विचार बलपूर्वक विस्थापन (Forced Displacement) की नीति जैसा है, जो इतिहास में कई बार भयानक परिणाम ला चुका है।
सामूहिक दंड (Collective Punishment): सभी फिलिस्तीनियों को हमास के अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराना गलत है। यह वैसा ही है जैसे मध्यकालीन यूरोप में यहूदियों को सामूहिक दोष (Blood Libel) के तहत सताया गया था।
अंतर्राष्ट्रीय कानून और युद्ध अपराध: अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत बलपूर्वक जनसंख्या स्थानांतरण अवैध है। लेख बताता है कि गाज़ा में 50,000 से अधिक मौतें और भारी विनाश हुआ है, और अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देश इज़राइल की सैन्य कार्रवाई को समर्थन देकर इसकी जिम्मेदारी साझा करते हैं।
नैतिक ज़िम्मेदारी बनाम आदेशों का पालन: लेख अरेन्ट की उस विचारधारा को दोहराता है कि "सिर्फ आदेशों का पालन" करना किसी को निर्दोष नहीं बनाता। आज के सरकारी अधिकारियों को आदेशों पर आंख मूंदकर अमल करने के बजाय नैतिकता पर विचार करना चाहिए।
प्रभाव और संभावित परिणाम
नैतिक और नैतिकता पर बहस: राज्य शक्ति, नौकरशाही और व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी को लेकर एक महत्वपूर्ण विमर्श।
राजनीतिक प्रतिक्रिया: गाज़ा मुद्दे, अमेरिकी भूमिका और इज़राइली नीतियों पर वैश्विक बहस को बढ़ावा मिल सकता है।
ऐतिहासिक समानताएँ: यह चेतावनी देता है कि बड़े पैमाने पर अत्याचार केवल चरमपंथ से नहीं, बल्कि आज्ञापालन और "सोचहीनता" से भी हो सकते हैं।
चुनौतियाँ और विवाद
विवादास्पद तुलना: नाज़ी काल के अत्याचारों की तुलना इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष से करना संवेदनशील मुद्दा है।
राजनीतिक पूर्वाग्रह: लेख हमास के कार्यों का उल्लेख कम करता है और मुख्य रूप से अमेरिका व इज़राइल की आलोचना करता है, जिससे इसे एकतरफा माना जा सकता है।
नौकरशाही में विरोध की कठिनाई: राज्य के खिलाफ किसी आम सरकारी अधिकारी के विरोध करने की वास्तविक कठिनाइयाँ बनी रहती हैं।
आगे की राह
नैतिक निर्णय: सरकारी अधिकारियों को मूल्यों और नैतिकता के आधार पर निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय जवाबदेही: युद्ध अपराधों और जबरन विस्थापन को रोकने के लिए वैश्विक संस्थानों को मजबूत करना।
संतुलित दृष्टिकोण: सभी पक्षों की बात को ध्यान में रखते हुए, ऐतिहासिक संदर्भों का उत्तरदायित्व के साथ उपयोग करना।