भारत-संयुक्त राज्य अमेरिका रणनीतिक साझेदारी में संरचनात्मक दरारें उभर रही हैं:

भारत-संयुक्त राज्य अमेरिका रणनीतिक साझेदारी में संरचनात्मक दरारें उभर रही हैं:

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द हिंदू: 1 अगस्त 2025 को प्रकाशित।

 

समाचार में क्यों?

भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को 21वीं सदी की परिभाषित साझेदारी के रूप में देखा जाता था, लेकिन अब उसमें संरचनात्मक दरारें उभरती दिख रही हैं। दोनों पक्षों की सार्वजनिक बयानबाजी में रिश्ते मजबूत दिखाए जा रहे हैं, लेकिन राष्ट्रवाद, विदेश नीति के मतभेदों और रणनीतिक प्राथमिकताओं में टकराव के कारण तनाव बढ़ता जा रहा है, विशेष रूप से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में।

 

पृष्ठभूमि:

भारत-अमेरिका संबंध 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद तनावपूर्ण हो गए थे, लेकिन 2005 में नागरिक परमाणु समझौते के बाद से लगातार सुधरे हैं।

रिश्ते अब रक्षा, व्यापार, ऊर्जा, अंतरिक्ष और प्रौद्योगिकी जैसे कई क्षेत्रों में फैले हुए हैं।

हालांकि, मोदी सरकार के अधीन भारत की आक्रामक विदेश नीति और अमेरिका फर्स्ट नीति के कारण पुराने तनाव अब खुलकर सामने आ रहे हैं।

 

मुख्य मुद्दे (Key Issues):

(क) रणनीतिक मतभेद

अमेरिका को भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और आक्रामक कूटनीति अपने गठबंधन ढांचे के अनुरूप नहीं लगती।

भारत के रूस, ईरान और BRICS के साथ संबंधों पर अमेरिका को संदेह है।

 

(ख) राष्ट्रवादी प्राथमिकताएं

दोनों देशों की विदेश नीति अब आंतरिक राष्ट्रवादी भावनाओं से प्रभावित हो रही है (इंडिया फर्स्ट बनाम अमेरिका फर्स्ट), जिससे लचीलापन घटा है।

 

(ग) व्यापार और बाज़ार से जुड़ा तनाव

अमेरिका को भारत के संरक्षणवादी रुख और सीमित बाजार पहुंच से निराशा है।

भारत आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रहा है।

 

(घ) रक्षा और सुरक्षा में असहमति

भारत की आतंकवाद के खिलाफ सैन्य प्रतिक्रिया की नीति से अमेरिका को परमाणु टकराव का डर सता रहा है।

अमेरिका द्वारा पाकिस्तान के साथ फिर से साझेदारी भारत को असहज करती है।

 

(ङ) भूराजनीतिक संतुलन

भारत की नीति है कि वह रूस और यूक्रेन, ईरान और इज़राइल, BRICS और QUAD सभी के साथ समानांतर रिश्ते बनाए रखे।

अमेरिका को यह नीति अस्पष्ट और असुविधाजनक लगती है।

 

प्रमुख हितधारक:

भारत सरकार (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री एस. जयशंकर)

अमेरिकी प्रशासन (राष्ट्रपति ट्रम्प, विदेश विभाग, सीनेटर लिंडसे ग्राहम)

रणनीतिक विश्लेषक और थिंक टैंक (जैसे एशले टेलिस)

रक्षा और व्यापार क्षेत्र की कंपनियाँ

क्षेत्रीय शक्तियाँ: पाकिस्तान, रूस, चीन, ईरान

बहुपक्षीय समूह: BRICS, QUAD

 

प्रभाव:

भारत के लिए:

विदेश नीति में पुनः संतुलन की आवश्यकता होगी ताकि पश्चिमी देशों के साथ संतुलन बना रहे।

रक्षा, तकनीक और व्यापार में सहयोग पर असर पड़ सकता है।

रूस-ईरान संबंधों और घरेलू राजनीतिक दिशा पर अमेरिका का दबाव बढ़ सकता है।

 

अमेरिका के लिए:

एशिया में एक प्रमुख लोकतांत्रिक साझेदार को खोने का खतरा।

रणनीतिक अलगाव भारत को विकल्प तलाशने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे अमेरिका का प्रभाव घटेगा।

 

वैश्विक रूप में:

यह स्थिति बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर संकेत करती है, जहाँ सीधे-सपाट गुटबाजी संभव नहीं।

चीन को फायदा हो सकता है, जो दक्षिण एशिया और इंडो-पैसिफिक में प्रभाव बढ़ाना चाहता है।

 

आगे की राह:

दोनों देशों के बीच ईमानदार और रणनीतिक संवाद आवश्यक है।

भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता के साथ स्पष्टता बनाए रखनी होगी।

अमेरिका को यह समझना होगा कि भारत की बहुपक्षीय कूटनीति उसकी आवश्यकता है, कोई विश्वासघात नहीं।

दोनों देशों को ऐसे साझेदारी मॉडल पर काम करना चाहिए जो शून्य-राशि के दृष्टिकोण (zero-sum game) से परे हो।

 

निष्कर्ष:

  • भारत-अमेरिका सामरिक संबंध, यद्यपि गहन संस्थागत हैं, एक चौराहे पर हैं।
  • वर्तमान उथल-पुथल न केवल अल्पकालिक राजनीतिक मतभेदों को दर्शाती है, बल्कि दृष्टि, सामरिक संस्कृति और अपेक्षाओं में गहरे संरचनात्मक विरोधाभासों को भी दर्शाती है।
  • इनसे निपटने के लिए दोनों पक्षों की ओर से परिपक्व कूटनीति, पारस्परिक सम्मान और यथार्थवादी रणनीतिक धैर्य की आवश्यकता है।
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