द हिंदू: 22 मई 2025 को प्रकाशित:
समाचार में क्यों?
पाहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty - IWT) को स्थगित कर दिया है। इससे यह बहस तेज हो गई है कि क्या पानी को एक हथियार की तरह उपयोग किया जा सकता है? यह निर्णय एक बड़े बदलाव को दर्शाता है, खासकर जब यह संधि कई युद्धों के दौरान भी प्रभावी रही है।
पृष्ठभूमि
सिंधु जल संधि वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी।
संधि के अनुसार:
पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलुज) भारत को मिलीं
पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चेनाब) पाकिस्तान को मिलीं, पर भारत को सीमित गैर-खपत उपयोग जैसे जलविद्युत उत्पादन की अनुमति है।
यह संधि 1947 के विभाजन के बाद उत्पन्न भू-आकृतिक समस्याओं के चलते ज़रूरी थी।
इसने तीन युद्धों (1965, 1971, 1999) और कई संकटों के बावजूद काम करना जारी रखा है।
मुख्य मुद्दे
A. पानी का राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग
भारत में कुछ लोग मानते हैं कि पाकिस्तान के आतंकी हमलों के बाद पानी को दबाव के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
वहीं कुछ विशेषज्ञ चेताते हैं कि यह भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकता है।
जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर विवाद
किशनगंगा और रैटल परियोजनाएँ विवाद का कारण बनीं।
पाकिस्तान का दावा है कि भारत का डिज़ाइन उसे पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने की अति-शक्ति देता है।
कानूनी संकट
संधि से एकतरफा बाहर निकलने का प्रावधान नहीं है।
ऐसा कोई कदम वियना संधि कानून का उल्लंघन होगा।
इससे विश्व बैंक और अन्य पड़ोसी देशों की कड़ी प्रतिक्रिया आ सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण
डेन्यूब नदी (यूरोप): हंगरी और स्लोवाकिया के बीच बांध विवाद को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में सुलझाया गया।
मेकॉन्ग नदी (दक्षिण-पूर्व एशिया): लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, थाईलैंड जैसी देशों के बीच विवादों को मेकॉन्ग नदी आयोग द्वारा बातचीत से सुलझाया जाता है।
सीख: जब देश एकतरफा रवैया अपनाते हैं, तो विवाद और बढ़ते हैं। परंतु कानूनी और कूटनीतिक रास्तों से समाधान संभव होता है।
नैतिक और रणनीतिक पक्ष
पानी केवल एक रणनीतिक संसाधन नहीं, बल्कि एक मौलिक मानव अधिकार है।
इसे हथियार बनाना नीतिगत और नैतिक रूप से आपत्तिजनक है।
इससे पाकिस्तान की आम जनता, विशेष रूप से किसानों और गरीबों को गंभीर नुकसान हो सकता है।
भारत के लिए रणनीतिक प्रभाव
भारत को संधि के तहत नियोजित जल उपयोग का पूरा अधिकार है, पर:
यदि भारत संधि तोड़ता है, तो कानूनी स्थिति कमजोर हो सकती है।
नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों से भविष्य की जल संधियों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
भारत की 'जिम्मेदार क्षेत्रीय शक्ति' की छवि को भी झटका लगेगा।
आगे की राह / सुझाव
भारत को IWT के तहत सभी वैध अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए।
कानूनी प्रक्रिया और विवाद निवारण तंत्र (जैसे: तटस्थ विशेषज्ञ, मध्यस्थता) का उपयोग जारी रखना चाहिए।
भारत को आतंकवाद के मुद्दे पर कूटनीतिक दबाव बढ़ाना चाहिए, जल संधि से पीछे हटने के बजाय।
क्षेत्रीय जल कूटनीति को प्रोत्साहित करना चाहिए।
निष्कर्ष:
सिंधु जल संधि शत्रुतापूर्ण संबंधों के बीच एक शांति और सहयोग का प्रतीक है। इसे छोड़ने से भारत की वैधानिक और नैतिक स्थिति कमजोर हो सकती है। पानी को हथियार बनाने के बजाय, भारत को नियम आधारित वैश्विक नेतृत्व प्रस्तुत करना चाहिए।
युद्ध में सब कुछ जायज नहीं होता — और शांति के प्रेम में कुछ चीजें पवित्र रहनी चाहिए।