द हिंदू: 26 फरवरी 2025 को प्रकाशित:
यह खबर में क्यों है?
केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार के बीच नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत त्रिभाषा सूत्र (Three-Language Formula) को लेकर विवाद चल रहा है। केंद्र सरकार ने समग्र शिक्षा अभियान (Samagra Shiksha Abhiyan) के तहत मिलने वाले अनुदान को इस नीति के पालन से जोड़ा है। वहीं, तमिलनाडु सरकार इसे हिंदी थोपने का प्रयास मानती है और अपने द्विभाषा नीति (तमिल और अंग्रेज़ी) को जारी रखने के पक्ष में है।
प्रमुख मुद्दे
त्रिभाषा नीति का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य-
संवैधानिक और कानूनी प्रावधान-
संविधान के अनुसार हिंदी भारत की आधिकारिक भाषा है, लेकिन अंग्रेज़ी भी आधिकारिक कामकाज में अनिश्चितकाल तक जारी रहेगी।
राज्य सरकारें अपनी आधिकारिक भाषाएँ चुनने के लिए स्वतंत्र हैं।
संविधान केंद्र सरकार को हिंदी को बढ़ावा देने का कर्तव्य देता है, लेकिन राज्यों के लिए ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है।
शिक्षा के स्तर से जुड़ी समस्याएँ-
शिक्षा के लिए वित्तीय संकट
प्राथमिक शिक्षा पर 85% खर्च राज्य सरकारें करती हैं, जबकि केंद्र सरकार सिर्फ 15% फंड देती है।
शिक्षा पर कुल खर्च GDP का 4-4.5% है, जो कि NEP 2020 में तय किए गए 6% लक्ष्य से कम है।
समग्र शिक्षा अभियान के फंड को त्रिभाषा नीति से जोड़ने से तमिलनाडु को आर्थिक समस्या हो सकती है।
त्रिभाषा नीति के संभावित प्रभाव
भाषा और पहचान का मुद्दा – तमिलनाडु इसे हिंदी थोपने की कोशिश मानता है, जो राज्य की भाषाई स्वतंत्रता के खिलाफ हो सकता है।
छात्रों पर अतिरिक्त शैक्षणिक बोझ – पहले से ही सीखने के स्तर में कमी को देखते हुए, एक और भाषा जोड़ने से छात्रों की परेशानी बढ़ सकती है।
राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता – केंद्र द्वारा शिक्षा नीतियों को अनुदान से जोड़ना राज्यों के अधिकारों को कम कर सकता है।
शहरीकरण और प्राकृतिक भाषा अधिग्रहण – 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 26% लोग द्विभाषी और 7% लोग त्रिभाषी हैं।
शहरी क्षेत्रों में यह संख्या 44% और 15% है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 22% और 5%।
माइग्रेशन और शहरीकरण के चलते लोग स्वाभाविक रूप से कई भाषाएँ सीख रहे हैं, जिससे अनिवार्य रूप से तीसरी भाषा जोड़ने की आवश्यकता कम हो जाती है।
आगे क्या हो सकता है?
केंद्र और राज्यों के बीच संवाद – तमिलनाडु सरकार और केंद्र सरकार को रचनात्मक संवाद करना होगा, ताकि शिक्षा के लिए फंड में देरी न हो।
भाषा सीखने और शिक्षा सुधार के बीच संतुलन – बहुभाषावाद महत्वपूर्ण है, लेकिन प्राथमिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
राज्यों को अधिक नीति-निर्माण की स्वतंत्रता – क्षेत्रीय भाषाई विविधता को ध्यान में रखते हुए, राज्यों को स्कूल शिक्षा नीति में अधिक स्वायत्तता दी जानी चाहिए।
मुख्य निष्कर्ष