वक्फ-उपयोगकर्ता भूमि की पहचान करने में सुप्रीम कोर्ट सतर्क:

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द हिंदू: 17 अप्रैल 2025 को प्रकाशित:

 

समाचार में क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल 2025 को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को लेकर गहरी चिंता जताई, विशेष रूप से इन बिंदुओं पर:

वक्फ-बाय-यूज़र संपत्तियों की डीनोटिफिकेशन (अवैध घोषित करना)

वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति

किसी संपत्ति के वक्फ या सरकारी होने का निर्धारण करने की राज्य को दी गई शक्ति

सुनवाई के दौरान लगभग 100 याचिकाओं की सुनवाई हुई, जिनमें इस अधिनियम की संवैधानिकता और धार्मिक प्रभावों को चुनौती दी गई थी।

 

पृष्ठभूमि

वक्फ अधिनियम मुस्लिम धर्मार्थ संपत्तियों की देखरेख और प्रबंधन से संबंधित है।

“वक्फ-बाय-यूज़र” वह संपत्तियाँ हैं जो वर्षों से धार्मिक उपयोग में रही हैं लेकिन औपचारिक रूप से पंजीकृत नहीं हैं।

2025 के संशोधन अधिनियम ने इन वक्फ-बाय-यूज़र संपत्तियों की कानूनी मान्यता को समाप्त कर दिया, और कई नई शर्तें जोड़ीं।

 

सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ-

  • CJI संजीव खन्ना द्वारा सुझाए गए तीन अस्थायी बिंदु:
  • वर्तमान में वक्फ घोषित संपत्तियाँ बनी रहें
  • जिन संपत्तियों को कोर्ट या उपयोग के आधार पर वक्फ माना गया है, उन्हें फिलहाल डीनोटिफाई न किया जाए।
  • फ्रीज़ प्रावधान पर रोक
  • सरकार यह जांच जारी रख सकती है कि संपत्ति वक्फ है या नहीं, लेकिन जब तक जांच चले, तब तक उसका वक्फ उपयोग न रोकने की सिफारिश।
  • गैर-मुस्लिम सदस्य सीमित रूप से स्वीकार्य
  • वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को एक्स-ऑफिशियो (पदेन) सदस्य के रूप में रखा जा सकता है, यदि बहुमत सदस्य मुस्लिम हों।
  • हालांकि सरकार ने इस पर तुरंत कोई आदेश पारित न करने की मांग की और सुनवाई स्थगित कर दी गई।

 

संविधानिक प्रश्न-

अनुच्छेद 26 का उल्लंघन?

वक्फ घोषित करने से पहले किसी व्यक्ति को पांच साल का मुस्लिम अभ्यास प्रमाणित करना, धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (Article 26) का उल्लंघन बताया गया।

धार्मिक संस्थानों में राज्य हस्तक्षेप

याचिकाकर्ताओं का तर्क: वक्फ इस्लाम की धार्मिक परंपरा का मूल भाग है, और उस पर राज्य का नियंत्रण धर्मनिरपेक्षता के विपरीत है।

प्रशासनिक समावेशन का विवाद

जब हिंदू मंदिरों का प्रशासन हिंदुओं के हाथ में है, तो क्या वक्फ संस्थाओं में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति संविधान सम्मत है?

 

प्रमुख दलीलें-

कपिल सिब्बल (याचिकाकर्ता की ओर से):

“राज्य को मुझे साबित करने की जरूरत क्यों हो कि मैं ‘अच्छा मुसलमान’ हूं?”

 

राजीव धवन:

वक्फ इस्लाम की आवश्यक धार्मिक परंपरा है। यह अधिनियम धार्मिक नियंत्रण को राज्य को हस्तांतरित करता है।

तुषार मेहता (केंद्र की ओर से):

वक्फ-बाय-यूज़र संपत्तियाँ पंजीकृत कराई जा सकती हैं। धर्मार्थ कार्य वक्फ से बाहर भी किए जा सकते हैं।

 

कोर्ट की चिंताएं-

ऐतिहासिक स्थिति पर टिप्पणी:

CJI ने कहा कि कई मस्जिदें (जैसे जामा मस्जिद) 14वीं–17वीं सदी की हैं, जब रजिस्ट्रेशन व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में आज रजिस्टर्ड दस्तावेज़ मांगना अव्यवहारिक है।

पश्चिम बंगाल में हिंसा:

वक्फ अधिनियम को लेकर पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा पर भी अदालत ने चिंता जताई और इसे "बहुत ही चिंताजनक" कहा।

अगले कदम-

सुनवाई 18 अप्रैल 2025 को फिर से होगी।

फिलहाल, कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं हुआ।

सुप्रीम कोर्ट इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता और कानूनी वैधता के संतुलन को सुनिश्चित करने के पक्ष में दिख रहा है।

 

प्रभाव और महत्व-

  • यह मामला भारत में धर्मनिरपेक्ष शासन और धार्मिक स्वतंत्रता की सीमाओं को परिभाषित करने वाला ऐतिहासिक निर्णय बन सकता है।
  • साथ ही, यह तय करेगा कि ऐतिहासिक धार्मिक संपत्तियों की कानूनी पहचान कैसे की जाए, खासकर जब उनके पास आधुनिक दस्तावेज़ नहीं हैं।
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