सुप्रीम कोर्ट ने जजों पर अधिकार संबंधी लोकपाल के आदेश पर रोक लगाई:

सुप्रीम कोर्ट ने जजों पर अधिकार संबंधी लोकपाल के आदेश पर रोक लगाई:

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द हिंदू: 22 फरवरी 2025 को प्रकाशित:

 

यह खबर में क्यों है?

सुप्रीम कोर्ट ने 27 जनवरी के लोकपाल आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में लाने की बात कही गई थी। कोर्ट ने इस व्याख्या को "बहुत परेशान करने वाला" बताया है। यह मामला न्यायिक स्वतंत्रता और लोकपाल के अधिकारों की संवैधानिक व्याख्या को लेकर गंभीर बहस का कारण बना है।

 

लोकपाल के आदेश में क्या कहा गया था?

लोकपाल, जिसकी अध्यक्षता पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश ए.एम. खानविलकर कर रहे हैं, ने कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत "लोक सेवक" माने जाएंगे।

यह फैसला एक शिकायत पर आधारित था, जिसमें आरोप था कि एक अतिरिक्त उच्च न्यायालय न्यायाधीश ने एक निजी कंपनी के पक्ष में फैसला दिलाने के लिए हस्तक्षेप किया, जो पहले उनके वकालत के समय उनकी ग्राहक थी।

लोकपाल ने यह तर्क दिया कि उच्च न्यायालय भारतीय संविधान से पहले ब्रिटिश शासन के तहत बनाए गए थे और इसलिए उन्हें संसद द्वारा स्थापित संस्थान माना जाना चाहिए, जिससे वे लोकपाल अधिनियम की धारा 14(1)(f) के तहत आते हैं।

 

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, सूर्यकांत और ए.एस. ओका की विशेष पीठ ने इस फैसले का स्वतः संज्ञान (suo motu cognizance) लिया।

सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल के आदेश पर रोक लगाई, यह कहते हुए कि यह फैसला न्यायिक स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है और कानून की गलत व्याख्या है।

केंद्र सरकार, लोकपाल रजिस्ट्रार और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया गया।

शिकायतकर्ता को न्यायाधीश का नाम सार्वजनिक करने से रोका गया और शिकायत को गोपनीय रखने का आदेश दिया गया।

 

प्रमुख कानूनी तर्क और व्याख्याएँ:

सरकार का पक्ष: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट रूप से कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते।

सुप्रीम कोर्ट की चिंता: अगर लोकपाल को न्यायाधीशों की जांच करने का अधिकार दिया गया तो इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।

लोकपाल का तर्क: उच्च न्यायालय ब्रिटिश शासन के कानूनों के तहत बने थे, इसलिए वे संसद द्वारा स्थापित निकायों की श्रेणी में आते हैं और लोकपाल अधिनियम की धारा 14(1)(f) के तहत जांच के दायरे में आते हैं।

 

पिछली मिसालें और विरोधाभास:

3 जनवरी 2024 को, लोकपाल ने खुद यह फैसला दिया था कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भी शामिल हैं, लोकपाल के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।

तर्क दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट भारतीय संविधान द्वारा स्थापित किया गया है, न कि संसद के अधिनियम द्वारा।

लेकिन 27 जनवरी 2024 के आदेश में लोकपाल ने अपने पिछले निर्णय के विपरीत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अपने अधिकार क्षेत्र में मान लिया।

 

आगे क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने 18 मार्च 2024 को इस मामले की सुनवाई निर्धारित की है।

अदालत को यह तय करना होगा कि क्या लोकपाल को संवैधानिक न्यायाधीशों की जांच करने का अधिकार दिया जा सकता है।

इस फैसले का असर न्यायपालिका की जवाबदेही और स्वतंत्रता दोनों पर पड़ेगा।

 

प्रमुख निष्कर्ष:

  • सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लोकपाल के आदेश पर रोक लगाई।
  • केंद्र सरकार भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर लोकपाल के अधिकार को नकार रही है।
  • लोकपाल का तर्क कि उच्च न्यायालय ब्रिटिश शासन के तहत बने थे, विवादास्पद और अभूतपूर्व है।
  • आखिरी फैसला यह तय करेगा कि क्या लोकपाल न्यायपालिका पर निगरानी रख सकता है।
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