सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ में 'मनमाने' बदलावों पर रोक लगाई; क्या कानून बरकरार रहेगा?

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ में 'मनमाने' बदलावों पर रोक लगाई; क्या कानून बरकरार रहेगा?

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द हिंदू: 17 सितंबर 2025 को प्रकाशित।

 

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की कुछ प्रमुख धाराओं को प्रथम दृष्टया मनमाना बताते हुए निलंबित कर दिया।

पूरे अधिनियम को निलंबित नहीं किया गया, बल्कि केवल वे हिस्से रोके गए जो संवैधानिक सिद्धांतों के विरुद्ध पाए गए।

यह फैसला वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और सरकारी भूमि हितों दोनों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास है।

 

पृष्ठभूमि:

वक्फ वह धार्मिक दान/न्यास है जिसे मुसलमान धर्मार्थ या धार्मिक प्रयोजनों के लिए समर्पित करते हैं।

वक्फ अधिनियम, 1995 वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण, प्रबंधन और संरक्षण से संबंधित है।

 

2025 में संसद ने संशोधन पारित किए, जिनमें:

नया नियम – वक्फ बनाने वाले को 5 वर्षों से इस्लाम का पालन करने का सबूत देना होगा।

सरकारी अधिकारी को एकतरफा संपत्ति का दर्जा बदलने का अधिकार।

वक्फ बोर्डों में गैर-मुसलमानों की संख्या बढ़ाना।

इन प्रावधानों को चुनौती देते हुए कई याचिकाएँ दायर हुईं।

 

न्यायालय द्वारा चिन्हित प्रमुख बिंदु:

पाँच वर्ष इस्लाम पालन शर्त

न्यायालय ने कहा कि आस्था का सबूत माँगना गलत नहीं, लेकिन इसकी जाँच का कोई तंत्र कानून में नहीं है।

जब तक व्यवस्था नहीं बनती, इसे निलंबित रखा गया।

 

धारा 3C – सरकारी संपत्ति संदेह प्रावधान:

जैसे ही किसी ने कहा कि वक्फ संपत्ति सरकारी है, उसका वक्फ दर्जा खत्म हो जाता था।

न्यायालय ने इसे “पूरी तरह असंवैधानिक” बताया और कहा कि संपत्ति का स्वामित्व केवल न्यायालय/न्यायाधिकरण ही तय कर सकता है।

 

कार्यपालिका का अतिक्रमण:

राजस्व/वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड एकतरफा बदलना शक्तियों के पृथक्करण सिद्धांत के खिलाफ है।

स्वामित्व विवाद न्यायपालिका द्वारा ही सुलझाए जाएँगे।

 

हितों का संतुलन:

वक्फ को न्यायाधिकरण के अंतिम निर्णय तक बेदखल नहीं किया जाएगा।

मुथवल्ली (प्रबंधक) तीसरे पक्ष को अधिकार नहीं देंगे ताकि संपत्ति का दुरुपयोग न हो।

 

वक्फ परिषद व बोर्ड संरचना:

केंद्रीय वक्फ परिषद में अधिकतम 4 गैर-मुसलमान (कुल 22 में), राज्य वक्फ बोर्डों में अधिकतम 3 (कुल 11 में)।

राज्य वक्फ बोर्डों के CEO संभव हो तो मुस्लिम समुदाय से ही होंगे।

 

पंजीकरण की अनिवार्यता:

न्यायालय ने वक्फ का पंजीकरण और वक्फ डीड देना अनिवार्य माना।

कहा कि 100 वर्षों से गैर-पंजीकृत वक्फ अब जारी नहीं रह सकते।

 

प्रभाव:

वक्फ संस्थाओं पर:

मनमाने सरकारी अधिग्रहण से सुरक्षा मिलेगी।

जवाबदेही सुनिश्चित होगी, पंजीकरण अनिवार्य होगा।

सरकार पर:

कार्यपालिका का सीधा नियंत्रण सीमित।

फिर भी निगरानी बनी रहेगी ताकि वक्फ भूमि का दुरुपयोग न हो।

समाज पर:

अल्पसंख्यक अधिकारों व सार्वजनिक हित में संतुलन।

वक्फ संपत्तियों का धार्मिक महत्व सुरक्षित रहेगा।

 

संवैधानिक दृष्टिकोण:

शक्तियों का पृथक्करण: संपत्ति स्वामित्व का फैसला कार्यपालिका नहीं कर सकती।

धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25–26): समुदाय को धार्मिक न्यास प्रबंधन का अधिकार।

समानता (अनुच्छेद 14): मनमाने प्रावधान असंवैधानिक करार।

 

आगे क्या?

कानून आंशिक रूप से लागू रहेगा, विवादित प्रावधान स्थगित।

सरकार को नए नियम/प्रक्रियाएँ बनानी होंगी (विशेषकर आस्था का प्रमाण और स्वामित्व विवाद निपटान हेतु)।

अंततः मामला संवैधानिक पीठ की सुनवाई से तय होगा।

 

निर्णय का निष्कर्ष:

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पूरी तरह से असंवैधानिक नहीं माना जा सकता, इसलिए यह अधिनियम प्रभावी रहेगा। लेकिन जिन प्रावधानों में मनमानी, न्यायसंगत प्रक्रिया की कमी और कार्यपालिका को असीमित अधिकार दिए गए थे, उन्हें प्रथम दृष्टया असंवैधानिक पाते हुए निलंबित कर दिया गया।

 

अदालत ने कहा कि:

  • संपत्ति के स्वामित्व (Title) का अंतिम निर्धारण केवल न्यायपालिका ही कर सकती है, कार्यपालिका नहीं।
  • वक्फ संपत्तियों को तब तक सुरक्षित रखा जाएगा जब तक न्यायाधिकरण/उच्च न्यायालय अंतिम निर्णय नहीं देते।
  • वक्फ संस्थाओं को उचित पंजीकरण और पारदर्शिता अपनानी होगी।
  • परिषदों और बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या सीमित होगी तथा CEO संभव हो तो मुस्लिम समुदाय से होगा।

 

निष्कर्षत:, यह फैसला धार्मिक स्वतंत्रता, संपत्ति अधिकार और सरकारी नियंत्रण के बीच संतुलन स्थापित करने वाला है, जहाँ अदालत ने वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की और साथ ही सरकारी हितों के दुरुपयोग से बचाव का मार्ग भी प्रशस्त किया।

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