स्रोत – द हिन्दू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मुंडोना ग्रामीण विकास फाउंडेशन, एक गैर सरकारी संगठन (NGO) ने पंचायत प्रणाली में "सरपंच-पतिवाद" के मुद्दे के संबंध में भारत के सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया है।
हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस मुद्दे को सीधे संबोधित करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। इसके बदले न्यायालय ने NGO को पंचायती राज मंत्रालय से संपर्क करने की सलाह दी और सरकार से महिला सशक्तीकरण एवं आरक्षण के उद्देश्यों को लागू करने के लिये उचित कार्रवाई करने का आग्रह किया।
सरपंच-पतिवाद क्या है?
सरपंच-पतिवाद से निपटने में चुनौतियाँ:
सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी तथा सशक्तीकरण में बाधा डालने वाले पितृसत्तात्मक मानदंडों, दृष्टिकोण और प्रथाओं पर काबू पाना।
उन प्रमुख समूहों या पार्टियों के राजनीतिक हस्तक्षेप, दबाव और हिंसा का विरोध करना जो पंचायतों को नियंत्रित या प्रभावित करना चाहते हैं।
गरीबी, अशिक्षा, गतिशीलता की कमी आदि जैसी सामाजिक-आर्थिक बाधाएँ, जो संसाधनों और अवसरों तक महिलाओं की पहुँच को सीमित करती हैं।
महिलाओं के स्वास्थ्य या कल्याण से समझौता किये बिना घरेलू ज़िम्मेदारियों और सार्वजनिक भूमिकाओं को संतुलित करना।
PRI में महिलाओं के प्रतिनिधित्व हेतु संवैधानिक प्रावधान:
PRIs में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा प्रयास:
राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (RGSA):
RGSA को वर्ष 2018 में उत्तरदायी ग्रामीण प्रशासन के लिये PRIs की क्षमताओं को बढ़ाने, SDGs के साथ संरेखित टिकाऊ समाधानों के लिये प्रौद्योगिकी और संसाधनों का लाभ उठाने हेतु लॉन्च किया गया था। इसने PRIs में महिलाओं की भागीदारी को भी प्रोत्साहित किया।
ग्राम पंचायत विकास योजना (GPDP):
GPDP दिशा-निर्देश जो महिला सशक्तीकरण के लिये प्रासंगिक हैं, उनमें GPDP के बजट, योजना, कार्यान्वयन और निगरानी में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के साथ सामान्य ग्राम सभाओं से पहले महिला सभाओं का आयोजन करना तथा उन्हें ग्राम सभाओं और GPDP में सम्मिलित करना शामिल है।
आगे की राह
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