द हिंदू: - 17 दिसंबर 2025 को प्रकाशित
समाचार में क्यों?
दिसंबर 2025 में भारतीय रुपया इंट्रा-डे कारोबार के दौरान ₹91 प्रति अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार करते हुए ₹91.14 तक गिर गया, जिससे यह 2025 में एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा बन गया। हालांकि दिन के अंत में यह थोड़ा संभलकर ₹90.93 पर बंद हुआ, फिर भी यह नया सर्वकालिक निचला स्तर था, जो मुद्रा पर लगातार दबाव को दर्शाता है।
रुपये का अवमूल्यन क्या है?
रुपये का अवमूल्यन उस स्थिति को कहते हैं जब भारतीय रुपये (INR) का मूल्य विदेशी मुद्राओं, विशेषकर अमेरिकी डॉलर, के मुकाबले घट जाता है। इसका अर्थ है कि एक इकाई विदेशी मुद्रा खरीदने के लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
विनिमय दर एक मुद्रा की दूसरी मुद्रा के संदर्भ में कीमत होती है।
हालिया गिरावट के प्रमुख कारण
- पूंजी निकासी (Capital Outflows)
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने दिसंबर की शुरुआत में लगभग 2.7 अरब डॉलर की निकासी की।
- इससे डॉलर की आवक घटती है और रुपये पर दबाव बढ़ता है।
- वैश्विक मैक्रो-आर्थिक दबाव
- अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में वृद्धि और जापान के केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दर बढ़ाने की संभावना से येन कैरी ट्रेड का समापन हुआ।
- बढ़ती जोखिम से बचने की प्रवृत्ति ने उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं, जैसे रुपये, को प्रभावित किया।
- व्यापार और भू-राजनीतिक अनिश्चितता
- भारत–अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता और वैश्विक व्यापार युद्ध का माहौल निवेशकों की धारणा पर असर डाल रहा है।
- RBI की संतुलित नीति
- विशेषज्ञों के अनुसार मजबूत आर्थिक वृद्धि और नियंत्रित महंगाई को देखते हुए RBI ने सीमित अवमूल्यन को जानबूझकर स्वीकार किया है।
- हल्का कमजोर रुपया निर्यात प्रतिस्पर्धा बढ़ाने में सहायक हो सकता है।
रुपये के अवमूल्यन का प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव
- निर्यात प्रतिस्पर्धा में वृद्धि।
- आईटी, फार्मा और निर्यात-आधारित क्षेत्रों को लाभ।
- प्रवासी भारतीयों (NRI) की रेमिटेंस का रुपये में अधिक मूल्य।
नकारात्मक प्रभाव
- कच्चे तेल और उर्वरकों जैसे आयात महंगे हो जाते हैं।
- आयातित महंगाई बढ़ती है।
- विदेशी ऋण की लागत बढ़ती है।
- अत्यधिक उतार-चढ़ाव से विदेशी निवेश प्रभावित हो सकता है।
आगे की राह (Way Forward)
अल्पकालिक उपाय
- RBI द्वारा डॉलर की बिक्री के माध्यम से हस्तक्षेप।
- मुद्रा स्वैप समझौते।
- विदेशी पूंजी आकर्षित करने हेतु मौद्रिक नीति में सख्ती।
- गैर-आवश्यक आयातों का युक्तिकरण।
दीर्घकालिक उपाय
- निर्यात संवर्धन द्वारा चालू खाते के घाटे में कमी (रंगराजन समिति, 1993)।
- व्यापार भुगतान का विविधीकरण, जैसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में INR का अधिक उपयोग (आर्थिक सर्वेक्षण 2022–23)।
- मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) को मजबूत करना और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार।
- राजकोषीय अनुशासन, महंगाई नियंत्रण और ऊर्जा आयात पर निर्भरता घटाना।
निष्कर्ष
रुपये का नियंत्रित अवमूल्यन निर्यात और आर्थिक वृद्धि में सहायक हो सकता है, लेकिन अत्यधिक अस्थिरता व्यापक आर्थिक जोखिम पैदा करती है। इसलिए बाजार-आधारित समायोजन और समय पर RBI हस्तक्षेप के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।