द हिंदू: 17 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित।
समाचार में क्यों
GST कर संरचना के पुनर्गठन और मुआवजा उपकर (Compensation Cess) की समाप्ति के बाद, राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता (Fiscal Autonomy) पर नई बहस शुरू हो गई है।
हालांकि इस कदम से उपभोक्ताओं को ₹2 लाख करोड़ से अधिक का लाभ मिलने की उम्मीद है, लेकिन कई राज्यों ने राजस्व हानि और केंद्र पर बढ़ती निर्भरता पर चिंता जताई है।
जन अपेक्षाएँ बढ़ने के साथ राज्यों के व्यय दायित्व भी लगातार बढ़ रहे हैं।
पृष्ठभूमि:
वस्तु एवं सेवा कर (GST) वर्ष 2017 में (संविधान संशोधन 101वाँ) लागू हुआ था।
इसे लागू करते समय राज्यों को पाँच वर्षों तक मुआवजा देने की व्यवस्था की गई थी।
अब यह अवधि समाप्त हो चुकी है, और मुआवजा उपकर को समाप्त कर दिया गया है।
इसके अलावा, उपकर और अधिभार (Cess & Surcharge) जो राज्यों में साझा नहीं किए जाते, अब केंद्र के राजस्व में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
प्रमुख मुद्दे:
(क) वित्तीय स्वायत्तता का ह्रास:
GST परिषद में निर्णय की शक्ति केंद्र के पास अधिक है, जिससे राज्यों की स्वतंत्रता सीमित हो गई है।
(ख) उपकर और अधिभार में वृद्धि:
2025–26 के लिए यह ₹4.23 लाख करोड़ तक पहुँच गया है, जबकि यह हिस्सा राज्यों को नहीं मिलता।
(ग) कर-वितरण में गिरावट:
14वीं वित्त आयोग की अनुशंसा (42%) के बावजूद वास्तविक बँटवारा कम है।
(घ) राजस्व और व्यय में असंतुलन:
राज्य स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि जैसे क्षेत्रों के लिए उत्तरदायी हैं, लेकिन उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।
(ङ) केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (CSS):
इन योजनाओं पर केंद्र का नियंत्रण राज्यों की वित्तीय स्वतंत्रता को सीमित करता है।
संवैधानिक एवं संस्थागत पहलू:
अनुच्छेद 268–293: केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों को परिभाषित करते हैं।
अनुच्छेद 280: वित्त आयोग की स्थापना करता है।
अनुच्छेद 275: राज्यों को सांविधिक अनुदान देता है।
अनुच्छेद 282: केंद्र को प्रत्यक्ष अनुदान देने की अनुमति देता है।
80वाँ संशोधन (2000): करों के वैश्विक साझाकरण की व्यवस्था।
101वाँ संशोधन (2016): GST की शुरुआत — कर शक्ति का पुनर्वितरण।
आँकड़ों का विश्लेषण:
औसतन 44% राज्यों की आय केंद्र से मिलने वाले हस्तांतरण पर निर्भर है।
बिहार – 72%
हरियाणा – 20%
उपकर और अधिभार: ₹3.86 लाख करोड़ (2024–25 RE) → ₹4.23 लाख करोड़ (2025–26 BE)
पूर्व-GST: केंद्र 67%, राज्य 33%
उत्तर-GST: अनुपात समान, लेकिन राज्यों का व्यय तेज़ी से बढ़ा है।
प्रभाव:
सकारात्मक:
उपभोक्ताओं पर कर बोझ घट सकता है।
सरल कर प्रणाली से स्थानीय माँग और अनुपालन बढ़ सकता है।
नकारात्मक:
राज्यों की वित्तीय निर्भरता केंद्र पर बढ़ेगी।
योजनाएँ बनाने की स्वायत्तता घटेगी।
राजनीतिक तनाव और तरलता की समस्या बढ़ सकती है।
सुझाव एवं प्रस्ताव:
उपकर और अधिभार को साझा राजस्व में शामिल किया जाए।
व्यक्तिगत आयकर आधार को केंद्र और राज्यों के बीच 50:50 बाँटा जाए।
राज्यों को आयकर पर अतिरिक्त दर (top-up) लगाने की अनुमति दी जाए।
कनाडा मॉडल अपनाया जाए — प्रांत 54% कर संग्रह करते हैं और 60% व्यय करते हैं।
वित्त आयोग की पारदर्शिता और सुसंगतता बढ़ाई जाए।
GST परिषद में राज्यों की निर्णय-प्रक्रिया में भागीदारी को मजबूत किया जाए।
भावी परिदृश्य:
राज्यों के व्यय दायित्व बढ़ने के साथ-साथ उन्हें अधिक वित्तीय स्वतंत्रता देने की आवश्यकता है।
भविष्य में 16वीं वित्त आयोग की सिफारिशें केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों को पुनर्परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
एक संतुलित कर-वितरण प्रणाली सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) को मज़बूती देगी।
निष्कर्ष: