द हिंदू: 8 जुलाई 2025 को प्रकाशित:
चर्चा में क्यों है?
13 जून 2025 को इज़राइल द्वारा ईरान पर किए गए आश्चर्यजनक हवाई हमलों ने पश्चिम एशिया में परमाणु संकट को गहरा कर दिया। अमेरिका के समर्थन से हुए इन हमलों का उद्देश्य ईरान की परमाणु क्षमताओं को रोकना है। इससे पहले ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु वार्ता चल रही थी, जिसे इस हमले से गहरा झटका लगा है।
पृष्ठभूमि:
इज़राइल की नीति: प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू चाहते हैं कि इज़राइल क्षेत्र में एकमात्र परमाणु शक्ति बना रहे। वे 2015 के JCPOA समझौते का विरोधी रहे हैं क्योंकि उसमें ईरान को सीमित संवर्धन की अनुमति दी गई थी।
ईरान की सोच: एनपीटी (NPT) संधि के तहत ईंधन संवर्धन का अधिकार चाहता है। उसके लिए परमाणु निरोधक क्षमता (nuclear deterrence) राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न बन गई है, खासकर जब उसके क्षेत्रीय सहयोगी (हिज़्बुल्ला, हमास) कमजोर हो गए हैं।
प्रमुख घटनाएं:
अमेरिका और ईरान के बीच एक क्षेत्रीय न्यूक्लियर फ्यूल कंसोर्टियम की वार्ता जारी थी, जिससे नेतन्याहू चिंतित थे।
नेतन्याहू की घरेलू राजनीतिक स्थिति कमजोर हो रही थी (गाज़ा संकट, न्यायिक सुधार, संसद भंग की मांग), इसलिए उन्होंने एक नया संकट खड़ा किया।
मई 2025 की IAEA रिपोर्ट में ईरान की 60% संवर्धित यूरेनियम की मात्रा 400 किग्रा से अधिक बताई गई, जिससे अमेरिका और इज़राइल की चिंता बढ़ी।
22 जून को ट्रंप के आदेश पर अमेरिका ने Fordow और Natanz में ईरान की परमाणु साइट्स पर ‘बंकर-बस्टर’ बम गिराए।
मुख्य मुद्दे:
इज़राइल की चिंता-
ईरान का पक्ष-
अमेरिका की भूमिका-
वैश्विक प्रभाव:
अनुत्तरित प्रश्न:
ईरान के गुप्त परमाणु केंद्रों को कितना नुकसान पहुंचा?
60% संवर्धित यूरेनियम का क्या हुआ?
क्या ईरान और अमेरिका फिर वार्ता करेंगे?
क्या नेतन्याहू का शासन परिवर्तन का सपना वास्तविकता बन सकता है?
आगे की राह: