धर्मांतरण

धर्मांतरण

Static GK   /   धर्मांतरण

Change Language English Hindi

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से जबरन धर्मांतरण के मुद्दे से निपटने के लिये गंभीरतापूर्वक कदम उठाने को कहा है।

याचिका और न्यायालय का फैसला:

  • इस याचिका में एक स्पष्टीकरण की मांग की गई थी कि "धमकी देकर, धोखे से उपहार और मौद्रिक लाभों के माध्यम से धर्मांतरण" संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 25 का उल्लंघन माना जाना चाहिये।
  • दलील में कहा गया है कि वर्ष 1977 में रेव स्टेनिसलॉस बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था: "यह ध्यान रखना होगा कि अनुच्छेद 25 (1) प्रत्येक नागरिक को 'अंतरात्मा की स्वतंत्रता' की गारंटी देता है, न कि केवल एक विशेष धर्म के अनुयायियों को और बदले में यह माना जाता है कि किसी भी अन्य व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्यों को इस तरह के धर्मांतरण की जाँच के लिये कड़े कदम उठाने के निर्देश देने को कहा।
  • न्यायालय ने कहा है कि जबरन धर्मांतरण बेहद खतरनाक है और इससे देश की सुरक्षा व धर्म एवं अंतरात्मा की स्वतंत्रता पर असर पड़ सकता है।
  • ऐसा इसलिये है क्योंकि यदि कोई व्यक्ति जान-बूझकर किसी अन्य व्यक्ति का धर्मांतरण करता है (जो कि उसके धर्म के सिद्धांतों को प्रसारित करने के सिद्धांत के प्रतिकूल है) तो यह देश के नागरिकों को प्रदत्त अंतरात्मा की स्वतंत्रता के अधिकार को कमज़ोर करेगा।

धर्मांतरण:

धर्मांतरण का तात्पर्य किसी दूसरे धर्म के बहिष्कार के क्रम में किसी विशेष धार्मिक संप्रदाय के विश्वासों को अपनाना है।

इस प्रकार "धर्मांतरण" में किसी संप्रदाय को छोड़कर दूसरे के साथ जुड़ना शामिल होता है।

उदाहरण के लिये ईसाई बैपटिस्ट से मेथोडिस्ट या कैथोलिक में और मुस्लिम शिया से सुन्नी में।

कुछ मामलों में धर्मांतरण "धार्मिक पहचान के परिवर्तन और विशेष अनुष्ठानों के परिवर्तन का प्रतीक होता है"।

धर्मांतरण विरोधी कानूनों की आवश्यकता:

धर्मांतरण कराने का अधिकार नहीं:

संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।

धर्मांतरण के तहत व्यक्ति किसी अन्य धर्म वाले को अपने धर्म में शामिल करने का प्रयास करता है।

अंतःकरण और धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार का विस्तार धर्मांतरण के सामूहिक अधिकार के अर्थ में नहीं किया जा सकता है।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार धर्मांतरण करने वाले और परिवर्तित होने की मांग करने वाले व्यक्ति के लिये समान रूप से उपलब्ध है।

कपटपूर्ण विवाह:

हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जिसमें लोग अपने धर्म को छुपाकर या गलत तरीके से दूसरे धर्म के व्यक्तियों के साथ शादी करते हैं तथा शादी के बाद ऐसे दूसरे व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने के लिये मजबूर करते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसे मामलों का न्यायिक संज्ञान लिया है।

न्यायालय के अनुसार, इस तरह की घटनाएँ न केवल धर्मांतरित व्यक्तियों की धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती हैं बल्कि हमारे समाज के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के भी खिलाफ हैं।

भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों की स्थिति:

संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद-25 के तहत भारतीय संविधान धर्म को मानने, प्रचार करने और अभ्यास करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है तथा सभी धर्म के लोगों को अपने धर्म के मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति देता है, हालाँकि यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।

कोई भी व्यक्ति अपने धार्मिक विश्वासों को ज़बरन लागू नहीं करेगा और इस प्रकार व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी धर्म का पालन करने के लिये मजबूर नहीं किया जाना चाहिये।

मौजूदा कानून: धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित या विनियमित करने वाला कोई केंद्रीय कानून नहीं है।

हालाँकि वर्ष 1954 के बाद से कई मौकों पर धार्मिक रूपांतरणों को विनियमित करने हेतु संसद में निजी विधेयक पेश किये गए।

इसके अलावा वर्ष 2015 में केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कहा था कि संसद के पास धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने की विधायी शक्ति नहीं है।

वर्षों से कई राज्यों ने बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन द्वारा किये गए धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित करने हेतु 'धार्मिक स्वतंत्रता' संबंधी कानून बनाए हैं।

विभिन्न राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून:

पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों ने बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन द्वारा किये गए धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित करने के लिये 'धार्मिक स्वतंत्रता' कानून लागू किया है।

उड़ीसा धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1967; गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2003; झारखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2017; उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2018; कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण अधिनियम, 2021।

धर्मांतरण विरोधी कानूनों से संबद्ध मुद्दे:

अनिश्चित और अस्पष्ट शब्दावली:

गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, प्रलोभन जैसी अनिश्चित और अस्पष्ट शब्दावली इसके दुरुपयोग हेतु एक गंभीर अवसर प्रस्तुत करती है।

यह काफी अधिक अस्पष्ट और व्यापक शब्दावली है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण से परे भी कई विषयों को कवर करती है।

अल्पसंख्यकों का विरोध:

एक अन्य मुद्दा यह है कि वर्तमान धर्मांतरण विरोधी कानून धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु धर्मांतरण के निषेध पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।

हालाँकि धर्मांतरण निषेधात्मक कानून द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली व्यापक भाषा का इस्तेमाल अधिकारियों द्वारा अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और भेदभाव करने के लिये किया जा सकता है।

धर्मनिरपेक्षता विरोधी:

ये कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और हमारे समाज के आंतरिक मूल्यों व कानूनी व्यवस्था की अंतर्राष्ट्रीय धारणा के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।

आगे की राह

ऐसे कानूनों को लागू करने के लिये सरकार को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को सीमित न करते हों और न ही इनसे राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुँचती हो; ऐसे कानूनों के मामले में स्वतंत्रता एवं दुर्भावनापूर्ण धर्मांतरण के मध्य संतुलन बनाना बहुत ही आवश्यक है।

Other Post's
  • मणिपुर में हिंसा को रोकने के लिए 5000 जवान भेजे गए:

    Read More
  • बीएस पोर्टल

    Read More
  • नए संसद भवन के ऊपर नया राष्ट्रीय चिन्ह

    Read More
  • हरियाणा के मंडल

    Read More
  • सौर क्षेत्र में चीन की अति-क्षमता पर कार्रवाई की अग्निपरीक्षा:

    Read More