द हिंदू: - 19 दिसंबर 2025 को प्रकाशित
क्यों चर्चा में है (Why in News)
लोकसभा ने सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (SHANTI) विधेयक, 2025 पारित किया है, जो भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में बड़े सुधारों का प्रस्ताव करता है। यह विधेयक मौजूदा परमाणु दायित्व व्यवस्था में आपूर्तिकर्ता दायित्व (Supplier Liability) हटाने को लेकर तीव्र राजनीतिक विवाद का कारण बना है। अब यह विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत किया जाएगा।
SHANTI विधेयक, 2025 क्या है?
SHANTI विधेयक का उद्देश्य भारत के परमाणु ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र का आधुनिकीकरण करना है, ताकि:
- परमाणु ऊर्जा क्षमता का विस्तार हो
- निजी और विदेशी निवेश आकर्षित किया जा सके
- स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण और नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को समर्थन मिले
इस विधेयक का प्रमुख तत्व नागरिक परमाणु क्षति दायित्व अधिनियम (CLNDA), 2010 में संशोधन है, जो परमाणु दुर्घटनाओं की स्थिति में मुआवज़े और जवाबदेही को नियंत्रित करता है।
भारत की मौजूदा परमाणु दायित्व व्यवस्था
नागरिक परमाणु क्षति दायित्व अधिनियम, 2010 को भोपाल गैस त्रासदी के बाद लागू किया गया था, जो कॉरपोरेट जवाबदेही पर समाज की गहरी चिंता को दर्शाता है।
CLNDA (2010) की प्रमुख विशेषताएँ:
- प्राथमिक दायित्व ऑपरेटर (आमतौर पर NPCIL) पर होता है
- ऑपरेटर को आपूर्तिकर्ताओं से राइट ऑफ़ रिकॉर्स लेने का विशेष प्रावधान, यदि दुर्घटना दोषपूर्ण उपकरण के कारण हो
- यह व्यवस्था वैश्विक मानकों से अलग थी, जहाँ सामान्यतः दायित्व केवल ऑपरेटर पर होता है
प्रभाव:
- विदेशी आपूर्तिकर्ता निवेश से हिचकिचाए, क्योंकि:
- असीमित दायित्व का डर
- उच्च बीमा लागत
- परिणामस्वरूप, भारत–अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते (2008) की पूरी क्षमता का लाभ नहीं मिल सका, जबकि भारत को NSG से छूट प्राप्त थी।
SHANTI विधेयक के तहत प्रस्तावित प्रमुख परिवर्तन
आपूर्तिकर्ता दायित्व की समाप्ति
- विधेयक उस प्रावधान को हटाता है, जिसके तहत ऑपरेटर आपूर्तिकर्ताओं से मुआवज़ा मांग सकता था।
- इससे भारत अंतरराष्ट्रीय परमाणु दायित्व सम्मेलनों के अनुरूप हो जाता है।
ऑपरेटर दायित्व की सीमा
- ऑपरेटर की दायित्व सीमा कथित तौर पर ₹3,000 करोड़ तय की गई है।
- विपक्ष ने प्रश्न उठाए:
- इस सीमा का वैज्ञानिक आधार क्या है
- बड़े परमाणु हादसे की स्थिति में यह मुआवज़ा पर्याप्त होगा या नहीं
विधेयक पर विरोध क्यों हो रहा है?
1. सार्वजनिक सुरक्षा और जवाबदेही
विपक्षी दलों का तर्क है कि:
- आपूर्तिकर्ता दायित्व हटाने से सुरक्षा उपाय कमजोर होंगे
- दुर्घटना का आर्थिक बोझ राज्य और करदाताओं पर आ सकता है
- पीड़ितों के लिए मुआवज़ा व्यवस्था अपर्याप्त हो सकती है
2. कॉरपोरेट पक्षपात के आरोप
निम्नलिखित पर सवाल उठाए गए:
- विधेयक का समय
- बड़े कॉरपोरेट समूहों, विशेषकर अडानी समूह, की कथित रुचि
सरकार ने इन आरोपों को निराधार और राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया।
सरकार का सुधारों के पक्ष में तर्क
तकनीकी विकास
- 2010 के बाद परमाणु तकनीक में बड़ा विकास हुआ है
- स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) की ओर झुकाव
SMRs की विशेषताएँ:
- आकार में छोटे
- उन्नत निष्क्रिय सुरक्षा प्रणालियाँ
- भीषण दुर्घटनाओं की कम संभावना
- उपभोग केंद्रों के नज़दीक स्थापित किए जा सकते हैं
कम जोखिम प्रोफ़ाइल
सरकार के अनुसार:
- आधुनिक रिएक्टर दुर्घटना जोखिम को काफी घटाते हैं
- पुरानी दायित्व व्यवस्था वर्तमान तकनीकी वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं है
ऊर्जा संक्रमण की आवश्यकता
- भारत को जिन चुनौतियों का सामना है:
- बढ़ती ऊर्जा मांग
- सीमित राजकोषीय संसाधन
- जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने की आवश्यकता
- इन लक्ष्यों के लिए निजी भागीदारी अनिवार्य मानी जा रही है।
राजनीतिक और आर्थिक आयाम
विपक्षी दलों ने विधेयक को जोड़कर देखा:
- गिरते विदेशी निवेश
- मुद्रा अवमूल्यन
- वैश्विक व्यापार और भू-राजनीतिक दबाव
उनका आरोप है कि पूंजी आकर्षित करने के लिए जनहित से समझौता किया जा रहा है।
सरकार का कहना है कि यह विधेयक नीति-आधारित है, किसी विशेष कंपनी के लिए नहीं, और ऊर्जा सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
SHANTI विधेयक के निहितार्थ
सकारात्मक पहलू
- घरेलू और विदेशी परमाणु निवेश को बढ़ावा
- परमाणु क्षमता विस्तार में तेजी
- वैश्विक परमाणु दायित्व मानकों के अनुरूपता
- जलवायु लक्ष्यों और ऊर्जा सुरक्षा को समर्थन
चिंताएँ और चुनौतियाँ
- आपूर्तिकर्ता जवाबदेही में कमी
- पीड़ित मुआवज़े की पर्याप्तता पर प्रश्न
- मजबूत नियामक निगरानी की आवश्यकता
- व्यापक संसदीय और सार्वजनिक परामर्श की मांग
आगे की राह (Way Forward)
- नियामक निगरानी सुदृढ़ करना: परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) को अधिक स्वायत्तता, पारदर्शिता और तकनीकी क्षमता प्रदान की जाए।
- मजबूत मुआवज़ा व्यवस्था: अनिवार्य बीमा और सरकारी समर्थन के साथ एक समर्पित परमाणु दुर्घटना मुआवज़ा कोष बनाया जाए।
- संतुलित दायित्व ढांचा: वैश्विक मानकों के अनुरूप रहते हुए, सिद्ध लापरवाही या दोषपूर्ण उपकरणों के मामलों में आपूर्तिकर्ताओं की जवाबदेही के लिए अनुबंधात्मक सुरक्षा बनाए रखी जाए।
- चरणबद्ध निजी भागीदारी: प्रारंभ में निर्माण, ईंधन चक्र समर्थन और SMR तैनाती जैसे गैर-कोर क्षेत्रों में निजी भागीदारी शुरू की जाए।
- संसदीय समीक्षा को मज़बूत करना: संवेदनशील प्रावधानों को स्थायी या प्रवर समिति के पास भेजकर राजनीतिक सहमति और जनविश्वास बढ़ाया जाए।