द हिंदू: 18 दिसंबर 2024 को प्रकाशित:
चर्चा में क्यों:
निजी विमानन को उसके असमान रूप से उच्च कार्बन उत्सर्जन के लिए आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। अध्ययन बताते हैं कि निजी जेट वायु प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, और भारत निजी विमानों के स्वामित्व वाले शीर्ष 20 देशों में शामिल है। यह मुद्दा तब और गंभीर हो जाता है जब भारत की संपन्न आबादी तेजी से बढ़ रही है।
निजी विमानों का उपयोग:
वैज्ञानिकों ने प्रमुख अंतरराष्ट्रीय घटनाओं (जैसे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, सुपर बाउल, COP28, कान्स फिल्म फेस्टिवल, FIFA वर्ल्ड कप) के दौरान उड़ान डेटा का विश्लेषण किया।
मुख्य निष्कर्ष:
47% निजी उड़ानें 500 किमी से कम की दूरी के लिए थीं।
19% उड़ानें 200 किमी से कम दूरी की थीं, जिनमें से कई खाली थीं या केवल सामान डिलीवर करने के लिए चलाई गईं।
5% उड़ानें 50 किमी से भी कम की दूरी के लिए थीं — ये दूरी सड़क या रेल मार्ग से आसानी से पूरी की जा सकती थीं।
गर्मियों के मौसम और वीकेंड पर लेजर यात्राओं (जैसे स्पेन के इबीज़ा और फ्रांस के नीस) के लिए निजी जेट्स का उपयोग बढ़ गया था।
वैश्विक स्तर पर निजी विमानन का 69% हिस्सा अमेरिका में है। अगले 10 वर्षों में 8,500 नए जेट वितरित किए जाएंगे।
निजी विमानन के उत्सर्जन:
निजी जेट प्रति यात्री 5-14 गुना अधिक प्रदूषण फैलाते हैं, जबकि ट्रेन की तुलना में 50 गुना अधिक प्रदूषण करते हैं।
Nature पत्रिका के हालिया अध्ययन के अनुसार, 2019-2023 के बीच निजी विमानन के कारण 46% उत्सर्जन में वृद्धि हुई है।
प्रत्येक निजी उड़ान औसतन 3.6 टन CO₂ उत्सर्जित करती है।
विकासशील देशों, जैसे भारत, में निजी जेट्स का बढ़ता उपयोग उत्सर्जन की समस्या को और गंभीर बना रहा है।
हवाई यात्रा और भारत का उत्सर्जन:
मार्च 2024 तक भारत में 112 निजी विमान पंजीकृत थे।
भारत में प्रति लाख जनसंख्या पर केवल 0.01 निजी विमान हैं, लेकिन तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के चलते इनकी संख्या बढ़ रही है।
उत्सर्जन कम करने के प्रयास:
UDAN और NABH जैसी सरकारी नीतियों ने कनेक्टिविटी और हवाई अड्डों की क्षमता को बढ़ाने का प्रयास किया।
लो-कार्बन ईंधन परीक्षण:
2018 में, स्पाइसजेट ने जेट्रोफा तेल आधारित जैव ईंधन का उपयोग करके उड़ान संचालित की।
2023 में, एयर एशिया ने सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF) और टरबाइन ईंधन का मिश्रण उपयोग किया।
SAF के उपयोग में चुनौतियाँ:
लागत: SAF की लागत पारंपरिक जेट ईंधन से 120% अधिक है।
प्रभावकारिता: SAF उत्सर्जन को केवल 27% तक कम करता है।
विकल्प:
हाइड्रोजन ईंधन: ऊर्जा घनत्व अधिक है, लेकिन भंडारण और हैंडलिंग चुनौतीपूर्ण है।
इलेक्ट्रिफिकेशन: बैटरी वजन, उड़ान स्थिरता और कच्चे माल की उपलब्धता जैसी समस्याएँ।
अल्कोहल-टू-जेट मार्ग: यदि 2050 तक अधिशेष चीनी से इथेनॉल का उपयोग करके विमानन ईंधन बनाया जाए, तो ईंधन की मांग का 15-20% हिस्सा पूरा किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
निजी विमानन वायु प्रदूषण में असमान रूप से अधिक योगदान देता है, विशेष रूप से कम दूरी की उड़ानों के लिए। जैसे-जैसे भारत की संपन्न आबादी बढ़ रही है, निजी जेट्स की मांग बढ़ रही है, जो पर्यावरणीय समस्याओं को और गंभीर बना रही है। SAF, हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिफिकेशन जैसे समाधान संभावनाओं से भरे हैं, लेकिन इनके व्यावसायीकरण में चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इथेनॉल-आधारित विमानन ईंधन का उपयोग एक संभावित समाधान हो सकता है जो भारत में उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकता है।
सार: