नए आवेदकों के लिए एकमुश्त H-1B शुल्क: अमेरिका?

नए आवेदकों के लिए एकमुश्त H-1B शुल्क: अमेरिका?

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द हिंदू: 22 सितंबर 2025 को प्रकाशित।

 

खबर में क्यों ?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एच-1बी वीज़ा शुल्क को $100,000 तक बढ़ाने की घोषणा की।

वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लटनिक के बयान से घबराहट फैली क्योंकि उन्होंने कहा था कि यह शुल्क हर साल देना होगा।

बाद में व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया कि यह “एकमुश्त शुल्क” है जो केवल नए एच-1बी आवेदकों पर लागू होगा और वह भी अगले लॉटरी चक्र से।

इस स्पष्टीकरण से भारतीय H-1बी वीज़ा धारकों को बड़ी राहत मिली, खासकर उन लोगों को जो वर्तमान में अमेरिका से बाहर थे और टिकट बुकिंग के लिए भागदौड़ कर रहे थे।

 

पृष्ठभूमि

H-1B वीज़ा एक गैर-आप्रवासी वीज़ा है जो अमेरिकी कंपनियों को विदेशी उच्च कुशल पेशेवरों को नौकरी देने की अनुमति देता है।

भारतीय पेशेवरों की इसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी है।

ट्रम्प प्रशासन लंबे समय से प्रोटेक्शनिस्ट एजेंडा पर काम कर रहा है — यानी अमेरिकी नौजवानों को प्राथमिकता और विदेशी कर्मचारियों पर निर्भरता घटाना।

अमेरिकी टेक कंपनियाँ (जैसे माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न, गूगल, जेपी मॉर्गन) भारतीय IT पेशेवरों पर काफी निर्भर हैं।

 

मुख्य मुद्दे:

आर्थिक बोझ: $100,000 शुल्क छोटे व्यवसायों के लिए विदेशी पेशेवरों को रखना कठिन बना देगा।

नीति भ्रम: वाणिज्य सचिव और व्हाइट हाउस के बयानों में विरोधाभास से घबराहट और भ्रम पैदा हुआ।

मानवीय चिंता: भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि इससे परिवारों का विघटन और अनावश्यक परेशानियाँ होंगी।

कॉरपोरेट असर: बड़ी कंपनियों ने कर्मचारियों को तुरंत अमेरिका लौटने का आदेश दिया जिससे टिकट बुकिंग में भारी उछाल आया।

आर्थिक तर्क: अमेरिकी सरकार कंपनियों को विदेशी कर्मचारियों की बजाय स्थानीय स्नातकों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रेरित करना चाहती है।

 

प्रभाव:

a) भारतीय पेशेवरों पर

मौजूदा H-1B धारकों के लिए राहत — उन्हें पुनः प्रवेश पर शुल्क नहीं देना होगा।

भविष्य के आवेदकों के लिए वित्तीय बोझ बढ़ जाएगा।

कई भारतीय छात्र/पेशेवर अब अमेरिका के बजाय अन्य देशों की ओर रुख कर सकते हैं।

 

b) अमेरिकी टेक कंपनियों पर:

विदेशी प्रतिभा को नियुक्त करने की लागत बढ़ेगी।

मजबूरी में स्थानीय स्नातकों को प्राथमिकता देनी पड़ेगी, परंतु विशेषज्ञता की कमी हो सकती है।

 

c) भारत-अमेरिका संबंधों पर:

भारत ने इस आदेश को लेकर मानवीय असर की चिंता जताई।

इससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है, खासकर भारतीय प्रवासी समुदाय प्रभावित होगा।

 

d) यात्रा और विमानन क्षेत्र पर:

भारत से अमेरिका के लिए आखिरी समय में टिकट बुकिंग अचानक बढ़ गई।

ट्रैवल एजेंसियों ने एक ही दिन में बुकिंग में भारी इज़ाफ़ा बताया।

 

बयान और विरोधाभास:

हॉवर्ड लटनिक: बोले कि शुल्क हर साल $100,000 होगा, जिससे विदेशी कर्मचारियों को रखना कंपनियों के लिए गैर-आर्थिक होगा।

व्हाइट हाउस का स्पष्टीकरण: शुल्क केवल एक बार, केवल नए वीज़ा पर लागू होगा, न कि नवीनीकरण या पुनः प्रवेश पर।

 

आगामी स्थिति:

आशंका बनी हुई है कि यह कदम एच-1बी वीज़ा पर और पाबंदियों की शुरुआत हो सकता है।

अमेरिकी टेक कंपनियाँ संभवतः सरकार पर दबाव डालेंगी, यह कहकर कि कुशल कर्मचारियों की कमी होगी।

भारत कूटनीतिक स्तर पर अपने नागरिकों के हितों की रक्षा के प्रयास करेगा।

भारतीय छात्र और पेशेवर अमेरिका की बजाय कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप जैसे देशों की ओर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

 

निष्कर्ष:

अमेरिका का $100,000 एकमुश्त H-1B वीज़ा शुल्क आप्रवासन नीति में बड़ा बदलाव है। यद्यपि व्हाइट हाउस के स्पष्टीकरण से मौजूदा वीज़ा धारकों को राहत मिली, यह कदम ट्रम्प प्रशासन की उस व्यापक नीति को दर्शाता है जिसका उद्देश्य विदेशी कर्मचारियों पर निर्भरता कम करना है। इससे भ्रम, आर्थिक चिंता और राजनयिक तनाव पैदा हुआ है और इसके दीर्घकालिक असर भारतीय पेशेवरों और अमेरिकी टेक उद्योग दोनों पर पड़ेगा।

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