तेल की कीमतों में गिरावट से उभरते बाजार के तेल निर्यातकों पर दबाव बढ़ा:

तेल की कीमतों में गिरावट से उभरते बाजार के तेल निर्यातकों पर दबाव बढ़ा:

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द हिंदू: 16 अप्रैल 2025 को प्रकाशित:

 

समाचार में क्यों? (Why in News)

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा टैरिफ (शुल्क) लगाए जाने के बाद वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से गिरावट देखी गई। यह गिरावट एक सप्ताह में 20% से अधिक थी और इससे तेल निर्यातक उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर राजस्व और बजट घाटे का संकट मंडराने लगा है।

 

क्या हुआ?

ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतें $60 प्रति बैरल से नीचे गिर गई थीं, हालाँकि अब यह $66 प्रति बैरल पर कुछ हद तक सुधरी हैं।

गिरावट का मुख्य कारण था अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध और उसके कारण वैश्विक मांग में कमी की आशंका।

इस स्थिति ने तेल पर निर्भर देशों की सार्वजनिक वित्तीय स्थिरता और क्रेडिट जोखिम पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

 

कौन फायदे में, कौन नुकसान में?

लाभार्थी (तेल आयातक देश):

भारत, तुर्की, पाकिस्तान, मोरक्को और पूर्वी यूरोप के कई देश।

कम कीमतों से तेल आयात बिल घटेगा, जिससे आर्थित लाभ संभव है, लेकिन वैश्विक मंदी इसका प्रभाव कम कर सकती है।

 

नुकसान में (तेल निर्यातक देश):

गल्फ देश, नाइजीरिया, अंगोला, वेनेजुएला, ब्राज़ील, कोलंबिया, मैक्सिको।

ये देश विदेशी मुद्रा और बजट राजस्व के लिए तेल निर्यात पर अत्यधिक निर्भर हैं।

मॉर्गन स्टेनली ने अंगोला और बहरीन को सबसे अधिक संवेदनशील देशों के रूप में चिन्हित किया है।

 

मामला अध्ययन: अंगोला (Case Study – Angola)

अंगोला को हाल ही में $200 मिलियन का भुगतान जे.पी. मॉर्गन को करना पड़ा, क्योंकि उसके डॉलर बॉन्ड की कीमत गिर गई थी।

यह भुगतान एक टोटल रिटर्न स्वैप समझौते के तहत था।

निवेशकों के जोखिम बढ़ने के कारण अंगोला के बॉन्ड्स पर ब्याज दरें (yield) दो अंकों तक पहुंच गई हैं।

 

फ्रंटियर मार्केट्स और कर्ज पर प्रभाव:

नाइजीरिया का कैरी ट्रेड (Treasury bills में निवेश) अब अस्थिर हो गया है क्योंकि तेल की कीमतों में गिरावट से नायरा (Naira) पर दबाव बढ़ा है।

नाइजीरिया के केंद्रीय बैंक को डॉलर की बिक्री बढ़ानी पड़ी ताकि मुद्रा में तेज गिरावट को रोका जा सके।

 

बजट और आर्थिक सुधारों पर प्रभाव:

तेल निर्यातक देशों के बजट अनुमानों पर असर पड़ा है।

नाइजीरिया ने अपने बजट में $75 प्रति बैरल की दर से तेल कीमतों का अनुमान लगाया था, जो अब अस्थिर हो चुका है।

वित्त मंत्री वाले एडुन ने कहा, “हमें अपने बजट की दोबारा समीक्षा करनी होगी।”

 

गल्फ देशों की स्थिति:

सऊदी अरब और UAE जैसे देश इस संकट का मुकाबला बेहतर तरीके से कर सकते हैं:

इनके पास अधिक विदेशी भंडार, कम सार्वजनिक ऋण और विकास की वैकल्पिक योजनाएँ हैं।

फिर भी, कमाई में गिरावट से नए प्रोजेक्ट्स पर खर्च प्रभावित हो सकता है।

 

मुख्य निष्कर्ष:

  • तेल पर निर्भर उभरते हुए देशों की अर्थव्यवस्था इस गिरावट से बुरी तरह प्रभावित हो रही है।
  • तेल आयातक देश कुछ हद तक लाभ में रह सकते हैं, लेकिन वैश्विक मंदी से उनका लाभ सीमित रहेगा।
  • यह स्थिति आर्थिक विविधता (diversification) की अनिवार्यता को दर्शाती है।
  • भू-राजनीतिक नीतियों के कारण वित्तीय अस्थिरता और बजटीय दबाव उभरते हैं।
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