द हिंदू: 28 मार्च 2025 को प्रकाशित:
चर्चा में क्यों है?
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लेकर हाल के वर्षों में लगातार पुनर्मूल्यांकन किया जा रहा है। लेखकों और इतिहासकारों का मानना है कि भारत ने उनकी विरासत से काफी हद तक दूरी बना ली है, जिसमें अखिल भारतीय धर्मनिरपेक्षता, समाजवादी अर्थव्यवस्था और लोकतांत्रिक संस्थाओं का निर्माण शामिल था। हालांकि, इतिहासकारों का कहना है कि नेहरू के विचारों और योगदानों पर लगातार लेखन और शोध किया जाना चाहिए।
मौजूदा विवाद और आलोचना-
पिछले एक दशक से नेहरू पर लगातार राजनीतिक हमले किए जा रहे हैं।
कुछ लेखकों और नेताओं ने उन्हें भारत की कई समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराया है, जैसे कि विभाजन, पाकिस्तान और चीन के साथ संबंध, कृषि संकट, कश्मीर विवाद, और यहां तक कि गरीबी और धार्मिक ध्रुवीकरण।
कई आलोचकों का मानना है कि नेहरू की धर्मनिरपेक्षता की नीति मुस्लिम तुष्टीकरण थी।
नेहरू की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक दृष्टिकोण-
स्वतंत्रता के बाद, देश में सांप्रदायिक दंगे और हिंसा चरम पर थी।
नेहरू ने स्पष्ट रूप से कहा था कि भारत को हिंदू राज्य नहीं बनाया जाएगा, बल्कि यह सभी धर्मों के लिए समान अधिकार वाला धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र रहेगा।
2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पारित होने और शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन के दौरान, नेहरू के धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण की कमी महसूस की गई।
वैज्ञानिक सोच और आधुनिकता-
नेहरू वैज्ञानिक सोच और तार्किक दृष्टिकोण के समर्थक थे।
उनकी तुलना हालिया समय में बढ़ती पौराणिक मान्यताओं और छद्म विज्ञान को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति से की जा रही है।
लेखक आदित्य मुखर्जी ने यह उल्लेख किया कि कैसे नेहरू वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देते थे, जबकि आज के कुछ राजनीतिक नेता पौराणिक कथाओं को विज्ञान के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।
नेहरू की विरासत का ह्रास-
नेहरू की विरासत को धीरे-धीरे हटाया जा रहा है, चाहे वह स्कूल की पाठ्यपुस्तकों से हो या भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) द्वारा उनकी तस्वीर को स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पोस्टर से हटाने के रूप में हो।
2003 में भी, शशि थरूर ने लिखा था कि नेहरू के विचार और उनकी नीतियां कमजोर हो रही हैं और उनकी गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है।
क्या सुधार की जरूरत है?
इतिहासकारों का कहना है कि नेहरू के बारे में सटीक और निष्पक्ष जानकारी जनता तक पहुंचाई जानी चाहिए।
अकादमिक जगत को नेहरू के विचारों और कार्यों पर लिखना जारी रखना चाहिए ताकि इतिहास को गलत तरीके से प्रस्तुत करने से रोका जा सके।
नेहरू की लोकतांत्रिक और वैज्ञानिक सोच को फिर से अपनाने की आवश्यकता है, ताकि समाज पीछे जाने के बजाय आगे बढ़ सके।
निष्कर्ष:
नेहरू की विरासत को लेकर वर्तमान समय में एक नई बहस चल रही है। उनके आलोचक उनकी गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं और उनके योगदान को नजरअंदाज करते हैं। हालांकि, इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि भारत के विकास में नेहरू की भूमिका को निष्पक्ष रूप से समझने और मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।