द हिंदू: 24 अप्रैल 2025 को प्रकाशित:
खबर में क्यों?
हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कुछ फैसलों को लेकर न्यायपालिका की शक्ति और मंशा पर सवाल उठे हैं।
आलोचकों ने इसे "न्यायिक निरंकुशता (Judicial Despotism)" कहा है, जबकि समर्थकों का कहना है कि यह अदालत की संवैधानिक जिम्मेदारी का हिस्सा है।
मुख्य मुद्दे
न्यायिक अतिक्रमण या जवाबदेही?
कुछ फैसलों (जैसे: अनुच्छेद 370, सीएए, ईवीएम) को लेकर कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट कार्यपालिका के निर्णयों में हस्तक्षेप कर रहा है।
लेकिन न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है।
अनुच्छेद 142 का उपयोग या दुरुपयोग?
अनुच्छेद 142 न्यायालय को "पूर्ण न्याय" देने का अधिकार देता है।
इसे बाबरी मस्जिद, मोब लिंचिंग दिशानिर्देश, तलाक में "अपरिवर्तनीय विफलता" जैसे मामलों में इस्तेमाल किया गया।
राजनीतिक झुकाव के आरोप-
आलोचकों का आरोप है कि न्यायपालिका सरकार के पक्ष में ज्यादा फैसले देती है (जैसे राफेल, एनआरसी, पेगासस)।
हालांकि इलेक्टोरल बॉन्ड, एनजेएसी और अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन जैसे मामलों में कोर्ट ने सरकार के खिलाफ फैसला दिया।
उपराष्ट्रपति की आलोचना-
उपराष्ट्रपति ने अनुच्छेद 142 को "न्यूक्लियर मिसाइल" कहकर आलोचना की — यह बयान न्यायपालिका की गरिमा के खिलाफ माना गया।
संवैधानिक और विधिक पक्ष
न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review):
संविधान में सीधे शब्दों में नहीं लिखा है, लेकिन अनुच्छेद 13, 32 और 226 के माध्यम से निहित है।
सत्ता का पृथक्करण (Separation of Powers):
संविधान में तीनों अंगों की सीमाएं स्पष्ट हैं। अदालत को केवल असाधारण परिस्थितियों में हस्तक्षेप करना चाहिए।
न्यायिक सक्रियता बनाम न्यायिक संयम:
अदालत को नीतिगत निर्णय नहीं लेने चाहिए, लेकिन संवैधानिक उल्लंघन पर दखल आवश्यक है।
लोकतंत्र और न्यायिक सर्वोच्चता पर सवाल:
लोकतांत्रिक सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों को अदालत कैसे रद्द कर सकती है?
लेकिन भारत में संसद नहीं, संविधान सर्वोच्च है।
संविधान ही कार्यपालिका और विधायिका की सीमा तय करता है।
न्यायपालिका बनाम सरकार:
अधिकांश मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के पक्ष में फैसला दिया है:
नोटबंदी, राफेल, तीन तलाक, NRC, आदि।
लेकिन कुछ फैसले सरकार के खिलाफ भी गए:
इलेक्टोरल बॉन्ड, NJAC, अरुणाचल का राष्ट्रपति शासन।
निष्कर्ष एवं सुझाव: