क्या भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है?

क्या भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है?

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द हिंदू: 2 जून 2025 को प्रकाशित:

 

समाचार में क्यों:

IMF के अनुसार, भारत 2025 में जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा (मार्केट एक्सचेंज रेट के आधार पर)। यह खबर राजनीतिक और मीडिया बहस का विषय बन गई है।

 

पृष्ठभूमि:

2021 से भारत पांचवें स्थान पर रहा है।

GDP का आकार अक्सर स्वास्थ्य, शिक्षा, असमानता और रोजगार गुणवत्ता जैसे कारकों को नजरअंदाज करता है।

 

GDP की तुलना के दो मुख्य तरीके हैं:

a) बाजार विनिमय दर (Market Exchange Rate)

b) क्रय शक्ति समता (PPP – Purchasing Power Parity)

 

मुख्य मुद्दे:

बड़ी GDP ≠ समृद्धि: GDP बड़ा होना, जीवन स्तर ऊँचा होने की गारंटी नहीं है।

PPP बनाम Market Rate:

PPP लोगों की वास्तविक क्रय शक्ति को दर्शाता है।

भारत 2009 से PPP के आधार पर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था रहा है।

राजनीतिक कथानक: सरकार मार्केट रेट पर आधारित रैंकिंग को प्रचारित करती है, क्योंकि यह उनकी राजनीतिक रणनीति के अनुकूल है।

आंकड़ों का भ्रम: GDP के आँकड़े दिखाकर असमानता, गरीबी और बेरोजगारी को नजरअंदाज किया जा रहा है।

 

वर्तमान स्थिति (2024-2025):

भारत की GDP (मार्केट रेट): $4.18 ट्रिलियन (जापान से अधिक)

रैंकिंग (मार्केट रेट): 2025 में चौथा स्थान

GDP (PPP): 2009 से तीसरे स्थान पर

 

प्रति व्यक्ति आय (Per Capita GDP):

भारत: $2,711

वियतनाम: $4,536

श्रीलंका: $4,325

भूटान: $3,913

भारत की रैंक: 144वां (मार्केट रेट), 127वां (PPP)

 

आलोचनात्मक विश्लेषण:

केवल GDP पर ध्यान केंद्रित करने से सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ छिप जाती हैं।

भारत में बड़ा अनौपचारिक क्षेत्र और कम मजदूरी PPP को कृत्रिम रूप से बढ़ा देता है।

"बड़ी अर्थव्यवस्था का भ्रम": GDP बड़ा है, लेकिन लोगों की स्थिति उतनी बेहतर नहीं है।

 

प्रभाव और निहितार्थ:

यदि केवल GDP पर ध्यान रहा तो नीति निर्धारण में भ्रम हो सकता है।

आवश्यक है कि स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, लैंगिक समानता जैसे आयामों पर ध्यान दिया जाए।

भ्रामक आर्थिक तस्वीर से नीति और अंतर्राष्ट्रीय छवि प्रभावित हो सकती है।

 

आगे की राह:

  • विकास मापने के लिए HDI, MPI जैसे संवेदनशील और व्यापक सूचकांक अपनाएं।
  • GDP में वृद्धि के साथ-साथ प्रति व्यक्ति सुधार और समावेशी विकास पर बल दें।
  • GDP की सीमाओं के बारे में जनता और नीति निर्माताओं को जागरूक करें।
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