द हिंदू: 23 जुलाई 2025 को प्रकाशित:
क्यों है यह खबरों में?
चीन एक नई औद्योगिक उत्पादन कटौती की योजना बना रहा है ताकि देश में व्याप्त मुद्रास्फीति (Deflation) से निपटा जा सके, जो पहले की उसकी आपूर्ति-पक्षीय सुधार (supply-side reforms) रणनीति की याद दिलाता है। हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि इस बार यह रणनीति गहरी जड़ें जमाए हुए अति-क्षमता, निजी स्वामित्व की प्रधानता और कमजोर घरेलू मांग जैसी संरचनात्मक चुनौतियों के कारण जल्दी परिणाम नहीं दे पाएगी।
आर्थिक संदर्भ:
मुद्रास्फीति की चिंता: चीन का उत्पादक मूल्य सूचकांक (PPI) लगातार 33 महीनों से गिर रहा है, जो कारखानों में कीमतों में गिरावट को दर्शाता है।
कीमतों की जंग: इलेक्ट्रिक वाहन (EVs), बैटरियों और सौर उत्पादों जैसे क्षेत्रों में जबरदस्त मूल्य कटौती से मुनाफा घट रहा है और मुद्रास्फीति बनी हुई है।
व्यापार युद्ध का प्रभाव: अमेरिका के साथ चल रहे तनाव से यह मूल्य युद्ध और बढ़ गया है, जिससे व्यापारिक प्रवाह भी बाधित हुआ है।
सरकारी रणनीति:
आपूर्ति-पक्षीय सुधार 2.0: 2015 में इस्पात, कोयला जैसे क्षेत्रों में सफल अति-क्षमता कटौती के बाद, अब चीन उच्च तकनीकी क्षेत्रों में उसी रणनीति को दोहराना चाहता है।
औद्योगिक लक्ष्य: इस बार बीजिंग का ध्यान “नई तीन” (New Three) उद्योगों — ऑटोमोबाइल, बैटरी, सोलर पैनल — पर है, जो पहले विकास के इंजन माने जाते थे, लेकिन अब अति-उत्पादन से जूझ रहे हैं।
चुनौतियाँ और जोखिम:
निजी स्वामित्व का दबदबा: 2015 के सुधारों में जहां राज्य के स्वामित्व वाले भारी उद्योगों को लक्षित किया गया था, वहीं आज के आधुनिक क्षेत्र निजी हाथों में हैं, जिससे सीधे प्रशासनिक हस्तक्षेप करना कठिन हो गया है।
स्थानीय सरकारों का विरोध: कई स्थानीय सरकारें रोजगार सृजन और क्षेत्रीय जीडीपी बढ़ाने के लिए अति-उत्पादन को प्रोत्साहन देती हैं, जो केंद्र सरकार के लक्ष्यों से टकराता है।
सीमित प्रोत्साहन विकल्प: पहले की तुलना में चीन के पास आर्थिक प्रोत्साहन देने के सीमित विकल्प हैं क्योंकि देश पहले से कर्ज के बोझ और कमजोर मांग से जूझ रहा है।
रोज़गार का खतरा: युवाओं में बेरोज़गारी दर पहले ही 14.5% है, और उत्पादन कटौती से और नौकरियाँ जा सकती हैं, जिससे सामाजिक अस्थिरता बढ़ सकती है।
विशेषज्ञों की राय:
ही-लिंग शी (मोनाश विश्वविद्यालय): असफलता का जोखिम अधिक है; अगर सुधार विफल होते हैं तो आर्थिक विकास और नीचे जा सकता है।
यान से (पेइचिंग विश्वविद्यालय): उत्पादन क्षमता की कटौती धीमी होगी और इससे मुद्रास्फीति खत्म नहीं होगी — उपभोक्ता मांग को बढ़ावा देना अधिक प्रभावी उपाय होगा।
संरचनात्मक समस्याएँ:
हर क्षेत्र में अति-क्षमता: अधिकांश उद्योग 80% क्षमता उपयोग की स्वस्थ सीमा से नीचे काम कर रहे हैं।
प्रोत्साहनों का असंतुलन: जहां केंद्र सरकार उत्पादन में कटौती चाहती है, वहीं स्थानीय सरकारें औद्योगिक गतिविधि बढ़ाना चाहती हैं।
सस्ती ऋण की समस्या: पूंजी तक आसान पहुंच ने कंपनियों को अविवेकपूर्ण रूप से विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित किया, जबकि अति-क्षमता स्पष्ट रूप से मौजूद है।
भू-राजनीतिक पहलू:
अमेरिका और यूरोपीय संघ की चिंताएँ: पश्चिमी देश चीन पर वैश्विक बाज़ार में सस्ते उत्पादों की बाढ़ लाने का आरोप लगा रहे हैं, जिससे उनके घरेलू उद्योग खतरे में हैं।
व्यापार युद्ध का दुष्चक्र: निर्यात पर निर्भरता और प्रतिशोधात्मक टैरिफ कीमतों की प्रतिस्पर्धा को और बढ़ा रहे हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पहले से ही अति-प्रसार है।
आगे क्या?
पोलितब्यूरो बैठक (जुलाई के अंत में संभावित): यह उच्च स्तर की नीतिगत दिशा दे सकती है, लेकिन ठोस कार्रवाई की उम्मीद कम है।
धीरे-धीरे सुधार: बीजिंग से यह अपेक्षा है कि वह लगभग 5% की आर्थिक वृद्धि को संरचनात्मक सुधारों के साथ संतुलित करते हुए सतर्कता से आगे बढ़ेगा।
मांग-पक्षीय उपाय?: विश्लेषक अब केवल उत्पादक पक्ष की बजाय उपभोक्ता मांग को बढ़ाने (जैसे टैक्स में कटौती, नकद सहायता) की सिफारिश कर रहे हैं।
निष्कर्ष:
हालांकि चीन औद्योगिक उत्पादन क्षमता में कटौती की ओर बढ़ रहा है, लेकिन केवल यह कदम उसे तेजी से मुद्रास्फीति से बाहर नहीं निकाल पाएगा। अति-क्षमता, निजी क्षेत्र का वर्चस्व, कमजोर मांग और भू-राजनीतिक चुनौतियों के इस जटिल समन्वय के लिए संतुलित नीति मिश्रण की आवश्यकता है, जिसमें उपभोक्ता मांग को बढ़ाना, नवाचार को प्रोत्साहन देना और रोज़गार सुरक्षा सुनिश्चित करना शामिल है।