द हिंदू: 1 फरवरी 2025 को प्रकाशित:
चर्चा में क्यों?
आर्थिक सर्वेक्षण में भारत के ऊर्जा संक्रमण (Energy Transition) पर जोर दिया गया।
कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को बिना वैकल्पिक व्यवस्था के बंद करने के खिलाफ चेतावनी दी गई।
विकसित देशों की दोहरे मापदंडों वाली नीतियों की आलोचना की गई, जो स्वयं जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels) का उपयोग जारी रखते हैं, लेकिन विकासशील देशों को हरित ऊर्जा अपनाने के लिए मजबूर करते हैं।
प्रमुख मुद्दे
ऊर्जा सुरक्षा बनाम जलवायु लक्ष्य: भारत को ऊर्जा जरूरतों और जलवायु प्रतिबद्धताओं के बीच संतुलन बनाना होगा।
विकसित देशों से सीख: फ्रांस, यूरोपीय संघ (EU) और अमेरिका जैसे देशों ने पहले ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता दी।
कोयले पर निर्भरता: भारत में कोयला संयंत्रों में बड़ा निवेश 2010 के दशक में हुआ, जिससे इन्हें अचानक बंद करना आर्थिक रूप से अव्यवहारिक है।
नवीकरणीय ऊर्जा की उच्च लागत: हरित ऊर्जा संक्रमण महंगा, जटिल और तकनीकी चुनौतियों से भरा है (बैटरी भंडारण, ग्रिड अवसंरचना, आवश्यक खनिज)।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य और विरोधाभास
विकसित देश अब भी तेल, गैस और कोयला पर निर्भर हैं (जैसे अमेरिका का अलास्का तेल ड्रिलिंग प्रोजेक्ट, EU का REPowerEU योजना)।
ये देश हरित ऊर्जा की वकालत करते हैं, लेकिन जीवाश्म ईंधन में निवेश भी करते हैं।
भारत को महंगी और जोखिमपूर्ण ऊर्जा नीति अपनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दबाव में नहीं आना चाहिए।
भारत के लिए प्रभाव
नीतिगत दिशा: भारत को क्रमिक और संतुलित ऊर्जा बदलाव अपनाना होगा।
तकनीकी निवेश: बैटरी भंडारण, ग्रिड दक्षता और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान देना जरूरी।
दीर्घकालिक स्थिरता: 2070 तक नेट-जीरो लक्ष्य को व्यावहारिक रणनीतियों के माध्यम से प्राप्त किया जाना चाहिए।
आगे की राह
विविध ऊर्जा स्रोत: कोयले का उपयोग जारी रखते हुए नवीकरणीय ऊर्जा को धीरे-धीरे अपनाना।
अवसंरचना विकास: बेहतर बैटरी तकनीक और ग्रिड नेटवर्क विकसित करना।
वैश्विक वार्ता: विकसित देशों से न्यायसंगत जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की मांग करनी चाहिए।