द हिंदू: 4 जनवरी 2025 को प्रकाशित:
समाचार में क्यों:
चीन ने होटान प्रिफेक्चर के तहत दो नए काउंटियों (हे’आन और हे’कांग) का गठन किया है, जो भारत के लद्दाख क्षेत्र (विशेष रूप से अक्साई चिन) का हिस्सा हैं।
इसके साथ ही, चीन ने यारलुंग त्सांगपो (ब्रह्मपुत्र नदी) पर भारतीय सीमा के पास मेगा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट की घोषणा की है।
व्यक्त की गई चिंताएँ:
क्षेत्रीय अखंडता: भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने चीन की इस कार्रवाई को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि ये नए काउंटियां भारत की संप्रभुता के दावे को प्रभावित नहीं करेंगी।
अवैध कब्जा: भारत ने दोहराया कि उसने लद्दाख क्षेत्र में चीन के "अवैध कब्जे" को कभी स्वीकार नहीं किया।
जल सुरक्षा: यारलुंग त्सांगपो पर $137 बिलियन के बांध के निर्माण से अरुणाचल प्रदेश और असम में जल प्रवाह पर संभावित प्रतिकूल प्रभाव को लेकर भारत ने चिंता जताई।
पारदर्शिता की कमी: भारत ने चीन की आलोचना की कि उसने इस परियोजना के बारे में आधिकारिक चैनलों के माध्यम से जानकारी साझा नहीं की, जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के तहत अपेक्षित है।
भारत-चीन बैठक:
यह घटनाक्रम 18 दिसंबर 2024 को भारत के NSA अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई बैठक के तुरंत बाद सामने आया है। यह बैठक सीमा विवाद और गालवान झड़पों के बाद तनाव कम करने के उद्देश्य से आयोजित की गई थी।
सीमा पर सामान्य स्थिति बहाल करने पर चर्चा के बावजूद, चीन के हालिया कदम विवादित क्षेत्रों पर अपनी स्थिति मजबूत करने की मंशा को दर्शाते हैं।
गालवान झड़पें:
दुनिया का सबसे बड़ा बांध:
यारलुंग त्सांगपो पर चीन की यह परियोजना थ्री गॉर्जेज डैम को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बनने की योजना है।
यह भारत के लिए रणनीतिक चिंताएँ पैदा करता है, जैसे कि जल प्रवाह को मोड़ने या नियंत्रित करने की संभावना, जो भारत की जल सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है।
भारत ने पारदर्शिता और परामर्श पर जोर देते हुए कहा कि डाउनस्ट्रीम देशों के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए।
निष्कर्ष: