भारत-चीन: सीमा का निर्माण?

भारत-चीन: सीमा का निर्माण?

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द हिंदू: 5 सितंबर 2025 को प्रकाशित।

 

समाचार में क्यों?

भारत–चीन सीमा विवाद दशकों की बातचीत के बाद भी अब तक सुलझा नहीं है। हालाँकि वर्तमान में शांति और स्थिरता पर ज़ोर दिया जा रहा है, लेकिन सीमा की ऐतिहासिक जटिलताएँ आज की भू-राजनीति को प्रभावित करती हैं। विशेषकर डोकलाम (2017) और गलवान (2020) जैसी घटनाओं के बाद यह मुद्दा फिर सुर्खियों में है।

 

पृष्ठभूमि:

सीमा का निर्धारण ब्रिटिश उपनिवेशकालीन नक्शों (भारत का आधार) और मंचू साम्राज्य के दावों (चीन का आधार) से हुआ।

यह सीमा हिमालय के निर्जन क्षेत्रों से होकर गुजरती है और कभी सटीक रूप से तय नहीं हुई।

स्वतंत्रता के बाद भारत ने मान लिया कि ब्रिटिश काल के नक्शे ही अंतिम सीमा हैं और बातचीत की आवश्यकता नहीं है।

अक्साई चिन: भारत का दावा लेकिन 1950 के दशक से चीन के कब्ज़े में। यहाँ से चीन ने शिनजियांग और तिब्बत को जोड़ने के लिए सड़क बनाई।

मैकमोहन रेखा (1914): ब्रिटिश भारत और स्वतंत्र तिब्बत के बीच समझौते से बनी। भारत इसे मानता है, चीन इसे खारिज करता है क्योंकि वह तिब्बत की स्वतंत्रता को नहीं मानता।

 

मुख्य मुद्दे:

सीमाई विवाद:

पश्चिमी क्षेत्र (लद्दाख/अक्साई चिन) – चीन का कब्ज़ा, भारत दावा करता है।

पूर्वी क्षेत्र (अरुणाचल प्रदेश/तवांग) – भारत का कब्ज़ा, चीन दावा करता है (इसे “दक्षिण तिब्बत” कहता है)।

 

असफल वार्ताएँ:

1959: चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का प्रस्ताव दिया।

1960 झोउ एनलाई का प्रस्ताव: अक्साई चिन चीन को, अरुणाचल भारत को – भारत ने अस्वीकार किया।

1962 का युद्ध: चीन ने अक्साई चिन रख लिया, अरुणाचल से पीछे हटा।

1980 के दशक: चीन ने तवांग की माँग रखी, जिससे गतिरोध और गहरा गया।

 

रणनीतिक चिंताएँ:

तिब्बत पर नियंत्रण चीन के लिए अहम।

तवांग मठ तिब्बती बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र है, इसलिए चीन के लिए संवेदनशील क्षेत्र।

भारत के लिए हिमालयी रक्षा मोर्चे का मज़बूत रहना ज़रूरी।

 

सैन्य टकराव:

1967 (नाथू ला और चो ला – सिक्किम)।

1986 (सुमदोरोंग चु संकट – भारत का ऑपरेशन फाल्कन)।

हालिया: डोकलाम (2017), गलवान (2020)।

 

युद्ध के बाद की स्थितियाँ और कूटनीति:

1975: भारत ने चीन अध्ययन समूह बनाया और सीमा की सैटेलाइट मैपिंग की।

1979: अटल बिहारी वाजपेयी ने बीजिंग यात्रा की, संबंध सामान्य बनाने की शुरुआत हुई।

1988: राजीव गांधी की चीन यात्रा ने नए दौर की शुरुआत की।

दोनों पक्ष सहमत हुए कि पहले शांति और सहयोग बढ़ाया जाए, सीमा विवाद बाद में सुलझेगा।

सीमा वार्ता के लिए संयुक्त कार्यसमूह (JWG) बनाया गया।

MUMA (Mutual Understanding and Mutual Accommodation): देंग शियाओपिंग का समझौते का सूत्र – पारस्परिक समझ और रियायतों के आधार पर समाधान।

 

प्रभाव:

रणनीतिक संतुलन: सीमा विवाद के कारण दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव बना रहता है।

शांति बनाम समाधान: दोनों पक्ष फिलहाल सीमा पर शांति चाहते हैं, लेकिन स्थायी समाधान नहीं हो पाया है।

भू-राजनीति: भारत–अमेरिका और भारत–रूस संबंध चीन के रुख को प्रभावित करते हैं।

घरेलू राजनीति: किसी भी पक्ष के लिए क्षेत्रीय रियायत देना राजनीतिक रूप से कठिन है।

 

वर्तमान परिप्रेक्ष्य:

  • सीमा पर कई समझौते हुए हैं, परंतु वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) अब भी स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है।
  • गश्ती दलों के बीच टकराव जारी रहते हैं।
  • दोनों पक्षों का उद्देश्य है – युद्ध से बचना और शांति बनाए रखना, लेकिन मूल विवाद अभी तक अनसुलझा है।

 

सारांश: 

भारत–चीन सीमा विवाद केवल भू-क्षेत्र का झगड़ा नहीं बल्कि औपनिवेशिक विरासत, तिब्बत की स्थिति और आपसी अविश्वास से जुड़ा हुआ जटिल मुद्दा है। दोनों देश शांति बनाए रखना चाहते हैं, पर स्थायी समाधान अभी भी दूर है।

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