भारत-चीन: सीमा निर्धारण में असमर्थता

भारत-चीन: सीमा निर्धारण में असमर्थता

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द हिंदू: 08 सितंबर 2025 को प्रकाशित।

 

चर्चा में क्यों?

भारत-चीन सीमा विवाद दशकों की बातचीत के बावजूद अब तक अनसुलझा है। 1993 के सीमा शांति एवं स्थिरता समझौते (BPTA) और 1996 के विश्वास निर्माण उपायों (CBMs) के बावजूद दोनों देशों द्वारा लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) की समान परिभाषा तय न कर पाने से सीमा अनिश्चित बनी हुई है। इसी कारण बार-बार सैन्य टकराव होते रहे, विशेषकर 2020 की गलवान झड़प इसका बड़ा उदाहरण है।

 

पृष्ठभूमि:

  • ऐतिहासिक जटिलता: 1950 के दशक से भारत-चीन सीमा पर स्पष्ट सहमति नहीं हो सकी। 1962 का युद्ध अविश्वास को और गहरा कर गया।
  • राजीव गांधी की 1988 की बीजिंग यात्रा ने संबंध सुधार की शुरुआत की और संयुक्त कार्य समूह (JWG) की स्थापना हुई।
  • 1993 BPTA समझौता: पहली बार "LAC" शब्द का उल्लेख, शांतिपूर्ण समाधान और बल घटाने की प्रतिबद्धता।
  • 1996 समझौता: सैन्य विश्वास निर्माण उपाय, बड़े पैमाने पर अभ्यासों पर रोक, और LAC स्पष्ट करने के लिए नक्शों का आदान-प्रदान।
  • नक्शों का असफल आदान-प्रदान (2000–2002): दोनों पक्षों ने “अत्यधिक अधिकतमवादी दावे” दिखाने पर नक्शे लौटा दिए। 2005 तक प्रक्रिया पूरी तरह ठप हो गई।

 

मुख्य मुद्दे:

अपरिभाषित LAC: भारत-चीन की धारणाएँ भिन्न हैं, खासकर पश्चिमी क्षेत्र (लद्दाख) और पूर्वी क्षेत्र (अरुणाचल/तवांग) में।

सैन्य असमानता: तिब्बती पठार पर चीन की सड़कें उसे बढ़त देती हैं, जबकि भारत को कठिन भूगोल का सामना करना पड़ता है।

विश्वास का अभाव: 1996 समझौते के बावजूद 2020 लद्दाख की घटनाओं ने समझौते की भावना तोड़ी।

स्वैप डील की विफलता: अक्साई चिन (चीन) और अरुणाचल (भारत) के आदान-प्रदान का प्रस्ताव विफल हो गया।

भारत की राजनीतिक अस्थिरता (1989–1991) और विभिन्न रणनीतिक प्राथमिकताओं ने वार्ता की निरंतरता प्रभावित की।

 

प्रभाव:

बार-बार झड़पें: स्पष्ट सीमा न होने से देपसांग, पैंगोंग त्सो, चुमार, गलवान जैसी जगहों पर टकराव।

तनावपूर्ण रिश्ते: सीमा विवाद व्यापार, कूटनीति और सुरक्षा सहयोग पर नकारात्मक असर डालता है।

सुरक्षा दुविधा: दोनों देश बड़ी संख्या में सैनिक तैनात कर रहे हैं, जिससे 1993-96 समझौतों का उल्लंघन।

भूराजनीतिक असर: भारत अमेरिका और क्वाड देशों के करीब आया, वहीं चीन ने पाकिस्तान से संबंध मजबूत किए।

आर्थिक नुकसान: अस्थिरता क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और आपसी व्यापार पर अविश्वास पैदा करती है।

 

आगे की राह:

  • नक्शों पर पुनर्विचार: LAC की परिभाषा तय किए बिना समझौते निष्प्रभावी रहेंगे।
  • विश्वास निर्माण उपायों का पुनर्जीवन: दोनों देशों को सैन्य संयम और पारदर्शिता पर फिर से सहमत होना होगा।
  • संघर्ष रोकथाम तंत्र: गश्ती झड़पों को टकराव में बदलने से रोकने के लिए मजबूत तंत्र जरूरी।
  • विश्वास बहाली: व्यापार, सांस्कृतिक और शैक्षणिक आदान-प्रदान संबंधों को नरम बना सकते हैं।
  • दीर्घकालीन समाधान: इसके लिए दोनों पक्षों की राजनीतिक इच्छाशक्ति और यथार्थवादी दृष्टिकोण आवश्यक है।

 

सारांश:

भारत-चीन सीमा विवाद का मूल कारण LAC की स्पष्ट परिभाषा का अभाव है। 1993 और 1996 के समझौतों ने शांति और विश्वास निर्माण का मार्ग खोला, लेकिन नक्शों के आदान-प्रदान में विफलता और राजनीतिक अविश्वास ने इस प्रक्रिया को कमजोर कर दिया। परिणामस्वरूप बार-बार सैन्य टकराव और संबंधों में तनाव कायम है।

 

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