द हिंदू: 08 सितंबर 2025 को प्रकाशित।
चर्चा में क्यों?
भारत-चीन सीमा विवाद दशकों की बातचीत के बावजूद अब तक अनसुलझा है। 1993 के सीमा शांति एवं स्थिरता समझौते (BPTA) और 1996 के विश्वास निर्माण उपायों (CBMs) के बावजूद दोनों देशों द्वारा लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) की समान परिभाषा तय न कर पाने से सीमा अनिश्चित बनी हुई है। इसी कारण बार-बार सैन्य टकराव होते रहे, विशेषकर 2020 की गलवान झड़प इसका बड़ा उदाहरण है।
पृष्ठभूमि:
मुख्य मुद्दे:
अपरिभाषित LAC: भारत-चीन की धारणाएँ भिन्न हैं, खासकर पश्चिमी क्षेत्र (लद्दाख) और पूर्वी क्षेत्र (अरुणाचल/तवांग) में।
सैन्य असमानता: तिब्बती पठार पर चीन की सड़कें उसे बढ़त देती हैं, जबकि भारत को कठिन भूगोल का सामना करना पड़ता है।
विश्वास का अभाव: 1996 समझौते के बावजूद 2020 लद्दाख की घटनाओं ने समझौते की भावना तोड़ी।
स्वैप डील की विफलता: अक्साई चिन (चीन) और अरुणाचल (भारत) के आदान-प्रदान का प्रस्ताव विफल हो गया।
भारत की राजनीतिक अस्थिरता (1989–1991) और विभिन्न रणनीतिक प्राथमिकताओं ने वार्ता की निरंतरता प्रभावित की।
प्रभाव:
बार-बार झड़पें: स्पष्ट सीमा न होने से देपसांग, पैंगोंग त्सो, चुमार, गलवान जैसी जगहों पर टकराव।
तनावपूर्ण रिश्ते: सीमा विवाद व्यापार, कूटनीति और सुरक्षा सहयोग पर नकारात्मक असर डालता है।
सुरक्षा दुविधा: दोनों देश बड़ी संख्या में सैनिक तैनात कर रहे हैं, जिससे 1993-96 समझौतों का उल्लंघन।
भूराजनीतिक असर: भारत अमेरिका और क्वाड देशों के करीब आया, वहीं चीन ने पाकिस्तान से संबंध मजबूत किए।
आर्थिक नुकसान: अस्थिरता क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और आपसी व्यापार पर अविश्वास पैदा करती है।
आगे की राह:
सारांश:
भारत-चीन सीमा विवाद का मूल कारण LAC की स्पष्ट परिभाषा का अभाव है। 1993 और 1996 के समझौतों ने शांति और विश्वास निर्माण का मार्ग खोला, लेकिन नक्शों के आदान-प्रदान में विफलता और राजनीतिक अविश्वास ने इस प्रक्रिया को कमजोर कर दिया। परिणामस्वरूप बार-बार सैन्य टकराव और संबंधों में तनाव कायम है।
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