द हिंदू: 6 जनवरी 2025 को प्रकाशित:
खबर में क्यों?
चीन ने हाल ही में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (TAR) के मेडोग काउंटी में ग्रेट बेंड पर 60 गीगावॉट की मेगा-डैम परियोजना को मंजूरी दी है। दशकों से विचाराधीन इस परियोजना को 2020 में चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना में शामिल किया गया था। इस परियोजना से भारत, भूटान और बांग्लादेश जैसे डाउनस्ट्रीम देशों पर पड़ने वाले प्रभावों ने अंतर्राष्ट्रीय नदी प्रबंधन पर चिंताओं को फिर से बढ़ा दिया है।
अब तक की कहानी:
ब्रह्मपुत्र, जिसे तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय नदी है जो चार देशों से होकर बहती है। ऊपरी प्रवाह में स्थित चीन लंबे समय से ऊर्जा उत्पादन और रणनीतिक लाभ के लिए हाइड्रोपावर परियोजनाओं पर काम कर रहा है। मेडोग मेगा-डैम दुनिया की सबसे बड़ी हाइड्रोपावर परियोजनाओं में से एक बनने की ओर अग्रसर है। इसके जवाब में भारत ने अरुणाचल प्रदेश में अपर सियांग परियोजना की योजना बनाई है, जबकि भूटान मध्यम और छोटे बांधों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। ये परियोजनाएं ऊर्जा आवश्यकताओं, जल सुरक्षा और भू-राजनीतिक तनावों से प्रेरित हैं।
यह परियोजना कहाँ है?
ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन चीन, भारत, भूटान और बांग्लादेश तक फैला हुआ है। इन देशों ने इस बेसिन में जल अवसंरचना परियोजनाओं की योजना बनाई है, जिनमें हाइड्रोपावर डैम, तटबंध और सिंचाई बैराज शामिल हैं। मेडोग डैम, ग्रेट बेंड के पास स्थित है, जहां से नदी भारत में प्रवेश करती है। इसका डाउनस्ट्रीम जल प्रवाह और मानसून के पैटर्न पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
दुनिया का सबसे बड़ा बांध:
60 गीगावॉट क्षमता वाला प्रस्तावित मेडोग डैम, थ्री गॉर्ज डैम (22.5 गीगावॉट) को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बन सकता है। ग्रेट बेंड के पास इसकी रणनीतिक स्थिति चीन को ब्रह्मपुत्र के जल ऊर्जा संसाधनों का पूरा लाभ उठाने का अवसर देती है।
ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन में डैम-निर्माण की होड़:
ब्रह्मपुत्र बेसिन में देशों के बीच एक प्रतिस्पर्धात्मक माहौल है, विशेष रूप से चीन और भारत के बीच।
चीन की योजना: मेडोग डैम के जरिए चीन ब्रह्मपुत्र के जल प्रवाह पर नियंत्रण स्थापित कर अपने ऊपरी प्रवाह की स्थिति का लाभ उठा रहा है।
भारत की प्रतिक्रिया: भारत की अपर सियांग परियोजना चीन के प्रभाव को संतुलित करने और डाउनस्ट्रीम जल प्रवाह को सुरक्षित रखने का प्रयास है।
भूटान की भूमिका: भूटान के छोटे और मध्यम बांधों की योजनाएं भारत और बांग्लादेश में डाउनस्ट्रीम प्रभाव को लेकर चिंताएं पैदा कर रही हैं।
ब्रह्मपुत्र बेसिन के किसी भी देश ने 2014 के अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों के गैर-नौसंचालन उपयोगों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जिससे विवादों की संभावना बढ़ जाती है।
ब्रह्मपुत्र बेसिन में रहने वाले समुदायों के लिए जोखिम:
पारिस्थितिक व्यवधान: मेगा-डैम नदी पारिस्थितिकी को प्रभावित करते हैं, जिससे जैव विविधता, कृषि-चराई समुदायों और आर्द्रभूमि प्रणालियों पर असर पड़ता है।
जल प्रवाह और मानसून: ऊपरी प्रवाह में बांधों के कारण घटता जल प्रवाह और बदले हुए मानसून पैटर्न भारत और बांग्लादेश में कृषि जीवन को प्रभावित कर सकते हैं।
आपदाएं: भूकंप-प्रवण क्षेत्रों में परियोजनाएं, जैसे मेडोग, बांध विफलता और बाढ़ के जोखिम को बढ़ाती हैं।
पारंपरिक ज्ञान का नुकसान: तेज पर्यावरणीय बदलाव पारंपरिक जल प्रबंधन प्रथाओं को अप्रासंगिक बना देते हैं।
निष्कर्ष:
ब्रह्मपुत्र बेसिन की रणनीतिक महत्ता ने इसे बांध-निर्माण का केंद्र बना दिया है, जो व्यापक भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को दर्शाता है। जबकि चीन एकतरफा हाइड्रोपावर पहल में अग्रणी है, भारत की प्रतिक्रियात्मक रणनीतियां पारिस्थितिक और मानवीय लागत बढ़ा सकती हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए, बेसिन देशों को सहयोगात्मक शासन को प्राथमिकता देनी चाहिए और हिमालय को बचाने के लिए एक जैवक्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
यह दृष्टिकोण सतत विकास और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की दीर्घकालिक सुरक्षा के बीच संतुलन सुनिश्चित कर सकता है, और कमजोर समुदायों की सुरक्षा को बढ़ावा दे सकता है।