चीन हरित ऊर्जा क्षेत्र में किस प्रकार अग्रणी है?:

चीन हरित ऊर्जा क्षेत्र में किस प्रकार अग्रणी है?:

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द हिंदू: 18 जुलाई 2025 को प्रकाशित:

 

समाचार में क्यों है?

चीन ने 2024 में दुनिया के सभी देशों से अधिक पवन और सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए। यह दर्शाता है कि कैसे वह पूरी दुनिया में हरित ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) के क्षेत्र में अग्रणी बन गया है। उसके पास अब पूरे नवीकरणीय आपूर्ति श्रृंखला (renewable supply chain) पर नियंत्रण है — कच्चे माल के खनन से लेकर सोलर पैनल, बैटरियों और पवन टर्बाइनों के उत्पादन और निर्यात तक। यह वैश्विक ऊर्जा संतुलन को बदल रहा है।

 

पृष्ठभूमि:

2000 के दशक की शुरुआत में कोयले पर अत्यधिक निर्भरता के कारण चीन की हवा अत्यंत प्रदूषित हो गई थी।

लोगों में जागरूकता और अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते सरकार को नवीकरणीय ऊर्जा की ओर मुड़ना पड़ा।

2005 में Renewable Energy Law पारित हुआ और 11वीं पंचवर्षीय योजना (2006–2010) में इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता दी गई।

तब से लेकर अब तक चीन ने $10.7 बिलियन (2006) से $940 बिलियन (2024) तक का निवेश किया है।

 

प्रमुख तथ्य:

  • 2024 में $940 बिलियन का निवेश सिर्फ हरित ऊर्जा क्षेत्र में।
  • सौर पैनल, पवन टर्बाइन और बैटरियों का सबसे बड़ा उत्पादक।
  • लिथियम और पॉलीसिलिकॉन जैसे कच्चे माल पर नियंत्रण।
  • राज्य-स्वामित्व वाले उपक्रम (SOEs) इस परिवर्तन के मुख्य स्तंभ।
  • Belt and Road Initiative के तहत दुनिया भर में हरित तकनीक का प्रसार।

 

सरकारी रणनीति:

राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग (NDRC) तथा राष्ट्रीय ऊर्जा प्रशासन (NEA) ने रणनीति तैयार की।

निजी कंपनियों को सब्सिडी, कम ब्याज दर पर ऋण और नीतिगत समर्थन।

प्रायोगिक परियोजनाओं (pilot projects) से शुरुआत और फिर उनका बड़े स्तर पर विस्तार।

Ultra High Voltage (UHV) transmission lines में बड़े स्तर पर निवेश।

 

राज्य-स्वामित्व वाले उपक्रमों (SOEs) की भूमिका:

SOEs जैसे State Grid, Genertec, Huaneng ने भारी-भरकम परियोजनाओं को अंजाम दिया।

सरकारी संरक्षण के कारण वे निजी कंपनियों की तरह आर्थिक दबाव में नहीं थे।

दुनिया भर में 55% नवीकरणीय निवेश इन्हीं कंपनियों से।

ये कंपनियाँ केवल चीन में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी चीन की हरित नीति की प्रतिनिधि बन गईं।

 

चुनौतियाँ:

Grid Absorption समस्या: शुरुआती वर्षों में उत्पन्न बिजली को राष्ट्रीय ग्रिड में समाहित नहीं किया जा सका।

बेतरतीब सब्सिडी नीति: इससे अनावश्यक विस्तार और संसाधनों की बर्बादी हुई।

अधोसंरचना पिछड़ गई: पवन और सौर संयंत्र तो बन गए, लेकिन ट्रांसमिशन प्रणाली नहीं थी।

वैश्विक आलोचना: चीन पर कम कीमत पर निर्यात (डंपिंग) और असंतुलित प्रतिस्पर्धा का आरोप।

 

समाधान:

UHV transmission lines में निवेश से बिजली के बेहतर संप्रेषण की सुविधा हुई।

सब्सिडी की निगरानी और संरचना में सुधार लाया गया।

ग्रिड में बेहतर समन्वय के लिए नई योजनाएं शुरू की गईं।

परियोजनाओं की गुणवत्ता और दक्षता पर जोर दिया गया, केवल क्षमता पर नहीं।

 

वैश्विक प्रभाव:

चीन की 61 देशों में मौजूदगी — अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, एशिया और यूरोप में हरित परियोजनाएं।

सस्ते उत्पादन के कारण वैश्विक बाज़ार में चीन की पकड़।

अमेरिका और यूरोपीय देशों ने Inflation Reduction Act जैसी योजनाओं से प्रतिस्पर्धा शुरू की।

हरित ऊर्जा अब राजनयिक और भू-राजनीतिक उपकरण बन गई है।

 

अन्य देशों के लिए सबक:

राज्य-प्रेरित रणनीति और दीर्घकालिक योजना से नवीकरणीय ऊर्जा में तेजी लाई जा सकती है।

अधोसंरचना, अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश अनिवार्य है।

SOEs यदि सही दिशा में हों तो वे सरकार की योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू कर सकते हैं।

केवल उत्पादन नहीं, ट्रांसमिशन और भंडारण भी उतने ही आवश्यक हैं।

 

भविष्य की दिशा:

अगली तकनीकों में चीन का लक्ष्य:

  • AI आधारित स्मार्ट ग्रिड्स
  • ग्रीन हाइड्रोजन
  • थोरियम रिएक्टर जैसे उन्नत परमाणु संयंत्र

लंबवत एकीकरण (Vertical Integration) और बड़े पैमाने पर निर्यात रणनीति जारी रहेगी।

भविष्य की प्रतिस्पर्धा पैनल या टर्बाइन की नहीं, बल्कि इस बात की होगी कि ग्लोबल ग्रीन एनर्जी नियम कौन बनाएगा — चीन या कोई दूसरा मॉडल?

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