इन-हाउस जांच कैसे की जाती है?

इन-हाउस जांच कैसे की जाती है?

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द हिंदू: 26 मार्च 2025 को प्रकाशित:

 

चर्चा में क्यों है?

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ अनुशासनहीनता के आरोपों की जांच के लिए इन-हाउस कमेटी गठित की है। यह कार्रवाई तब हुई जब मार्च 14 को उनके आवास में आग बुझाने के दौरान दमकल कर्मियों को बड़ी मात्रा में जली हुई नकदी मिली। इस घटना ने न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता को लेकर बहस छेड़ दी है।

 

मुख्य मुद्दे और पृष्ठभूमि-

1️. इस मामले की जांच क्यों हो रही है?

मार्च 14 को दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के घर में आग लगी।

दमकल कर्मियों ने स्टोररूम में जली हुई बड़ी मात्रा में नकदी पाई।

दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने प्राथमिक जांच के बाद इस मामले की गहरी जांच की सिफारिश की।

CJI ने न्यायमूर्ति वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिया और उन्हें उनके मूल इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया।

न्यायमूर्ति वर्मा ने सभी आरोपों को नकारते हुए कहा कि उनके या उनके परिवार के किसी सदस्य ने नकदी स्टोररूम में नहीं रखी थी।

 

2️. न्यायपालिका में ‘इन-हाउस जांच प्रक्रिया’ क्या होती है?

भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए इन-हाउस प्रक्रिया लागू की जाती है। इसे 1999 में अपनाया गया और 2014 में सार्वजनिक किया गया।

इन-हाउस जांच प्रक्रिया के चरण:

  • यदि किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत प्राप्त होती है, तो CJI उसकी विश्वसनीयता की जांच करते हैं।
  • यदि जांच आवश्यक होती है, तो संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की राय ली जाती है।
  • CJI तीन सदस्यीय समिति गठित करते हैं, जिसमें:
  • दो अन्य उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश
  • एक अन्य उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश
  • समिति जांच कर सिफारिशें प्रस्तुत करती है:
  • यदि दोष मामूली हो, तो न्यायाधीश को सूचित कर दिया जाता है।
  • यदि गंभीर दोष पाया जाता है, तो न्यायाधीश को इस्तीफा देने को कहा जाता है।
  • यदि न्यायाधीश इस्तीफा देने से इनकार करता है, तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को इंपीचमेंट (महाभियोग) की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश की जाती है।
  • यदि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत होती है, तो तीन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की समिति जांच करती है।

 

न्यायमूर्ति वर्मा की जांच के लिए गठित समिति:

  • पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
  • हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
  • कर्नाटक हाई कोर्ट के एक वरिष्ठ न्यायाधीश

 

3️. क्या दोषी पाए गए न्यायाधीश को आपराधिक दंड मिल सकता है?

वर्तमान प्रणाली में, यदि कोई न्यायाधीश दोषी पाया जाता है, तो उन्हें केवल इस्तीफे के लिए कहा जाता है।

किसी भी न्यायाधीश पर अब तक आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है, भले ही वे भ्रष्टाचार या अनुशासनहीनता में लिप्त पाए गए हों।

ब्रिटेन और अन्य देशों में न्यायाधीशों के खिलाफ स्वतंत्र जांच निकाय होते हैं जो उन्हें सजा दिलाने का अधिकार रखते हैं।

उदाहरण: यू.के. में 'ज्यूडिशियल कंडक्ट इन्वेस्टिगेशन ऑफिस' (JCIO)

एक स्वतंत्र निकाय जो न्यायिक दुराचार की जांच करता है।

यदि न्यायाधीश दोषी पाए जाते हैं, तो उन्हें हटाया और दंडित किया जा सकता है।

भारत में ऐसी कोई स्वतंत्र जांच एजेंसी नहीं है, जिससे न्यायपालिका में जवाबदेही की कमी बनी हुई है।

 

4️. भारत की न्यायपालिका में पारदर्शिता की समस्या

वर्तमान प्रणाली की समस्याएं:

गोपनीय जांच: न्यायाधीशों की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाती, जिससे जनता का विश्वास कम होता है।

कोलेजियम सिस्टम और जवाबदेही की कमी: न्यायाधीशों की नियुक्ति और जांच स्वयं न्यायपालिका के ही हाथ में होती है, जिससे बाहरी निगरानी नहीं होती।

कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं: यदि कोई न्यायाधीश दोषी पाया जाता है, तो भी उन पर मुकदमा नहीं चलाया जाता।

संभावित सुधार:

जांच प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए – जांच रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए ताकि जनता का न्यायपालिका पर विश्वास बना रहे।

एक स्वतंत्र न्यायिक जांच निकाय स्थापित किया जाए – ब्रिटेन की JCIO जैसी संस्था बनाई जाए।

कोलेजियम सिस्टम में सुधार किया जाए – राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को दोबारा लागू करने पर विचार हो।

न्यायाधीशों पर आपराधिक कार्रवाई की अनुमति दी जाए – यदि किसी न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार या गंभीर कदाचार के प्रमाण मिलते हैं, तो उन्हें कानूनी सजा दी जाए।

 

5️. क्या 'NJAC' प्रणाली बेहतर हो सकती है?

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) 2014 में लागू हुआ था लेकिन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर दिया।

इसका उद्देश्य था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति और जांच एक स्वतंत्र निकाय द्वारा की जाए और कार्यपालिका को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाए।

अगर एक संतुलित NJAC लागू किया जाए, जिसमें:

CJI को वीटो पावर दी जाए ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनी रहे।

न्यायपालिका, कार्यपालिका और अन्य विशेषज्ञों को शामिल किया जाए।

इससे न्यायाधीशों की नियुक्ति अधिक पारदर्शी और जवाबदेह हो सकेगी।

 

निष्कर्ष: न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता-

  • न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का मामला दिखाता है कि भारत की न्यायपालिका में जवाबदेही की कमी है।
  • वर्तमान प्रणाली में गोपनीयता अधिक है और दोषी न्यायाधीशों पर कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं होती।
  • एक स्वतंत्र न्यायिक निगरानी निकाय (JCIO जैसी संस्था) बनाना आवश्यक है।
  • NJAC जैसी प्रणाली दोबारा लागू कर न्यायाधीशों की नियुक्ति और जांच को पारदर्शी बनाया जा सकता है।
  • न्यायपालिका को जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही अपनानी चाहिए।

 

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