ड्रोन किस तरह युद्ध का नया चेहरा बन गए हैं?

ड्रोन किस तरह युद्ध का नया चेहरा बन गए हैं?

Static GK   /   ड्रोन किस तरह युद्ध का नया चेहरा बन गए हैं?

Change Language English Hindi

द हिंदू: 10 जून 2025 को प्रकाशित:

 

समाचार में क्यों?

ड्रोन अब आधुनिक युद्ध का मुख्य हथियार बन चुके हैं। भारत के ऑपरेशन सिंदूर, यूक्रेन के ऑपरेशन स्पाइडर वेब, और अन्य वैश्विक संघर्षों में इनका उभरता उपयोग यह दर्शाता है कि युद्ध की रणनीति में बिना चालक वाले हवाई यानों (UAVs) को अब सहायक के रूप में नहीं, बल्कि मुख्य आक्रमण हथियार के रूप में देखा जा रहा है।

 

पृष्ठभूमि:

प्रारंभ में ड्रोन का प्रयोग केवल निगरानी के लिए होता था।

2020 के नागोर्नो-काराबाख युद्ध में अज़रबैजान ने इज़राइली 'हरोप' ड्रोन से दुश्मन की हवाई रक्षा को नष्ट कर दिखाया कि ड्रोन युद्ध की दिशा बदल सकते हैं।

रूस-यूक्रेन युद्ध और म्यांमार में विद्रोहियों द्वारा 3D प्रिंटेड ड्रोन का उपयोग इस तकनीक की क्षमता को दर्शाता है।

भारत, चीन और पाकिस्तान ने अपने ड्रोन बेड़ों का तीव्र विस्तार किया है।

 

मुख्य मुद्दे:

रणनीतिक बदलाव – ड्रोन अब सैन्य व वाणिज्यिक तकनीक के बीच की सीमाओं को धुंधला कर रहे हैं।

कमजोरियाँ – ड्रोन इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, जैमिंग और वायु रक्षा के प्रति संवेदनशील हैं।

उत्पादन चुनौती – भारत का रक्षा उद्योग बड़ी मात्रा में उत्पादन करने की क्षमता में कमजोर है।

आंतरिक खतरा – आसान रूप से हथियार में बदले जा सकने वाले वाणिज्यिक ड्रोन आतंकी समूहों के लिए खतरा बन सकते हैं।

 

हाल की घटनाएं:

ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने ड्रोन और स्टैंडऑफ हथियारों का संयोजन कर रणनीतिक अस्पष्टता दिखाई।

सस्ती, AI-युक्त ड्रोन तकनीक से दुश्मन के हवाई ठिकानों पर गहरा प्रहार किया।

चीन-पाकिस्तान सहयोग ड्रोन क्षमताओं में भारत के लिए चुनौती बन रहा है।

रूस द्वारा ड्रोन हमलों की बाढ़ से यह सिद्ध हुआ कि उच्च तकनीकी रक्षा प्रणालियां भी ड्रोन हमलों के आगे कमजोर हो सकती हैं।

 

भारत के लिए रणनीतिक प्रभाव:

सैन्य सिद्धांत में बदलाव – ड्रोन अब आक्रामक हथियार के रूप में शामिल हो चुके हैं।

रक्षा तत्परता – भारत को सस्ते और बहुलता वाले ड्रोन तंत्र विकसित करने होंगे।

औद्योगिक क्षमता – भारत के रक्षा उद्योग को उत्पादन बढ़ाने और पुनर्निर्माण की क्षमता बढ़ानी होगी।

आंतरिक सुरक्षा – केवल सेना ही नहीं, आंतरिक सुरक्षा एजेंसियों को भी ड्रोन खतरों के प्रति सजग होना होगा।

 

चुनौतियाँ:

लागत में सस्ते और पुनरावृत्त ड्रोन तैयार करना।

मल्टीलेयर काउंटर-ड्रोन सिस्टम विकसित करना।

AI और स्वायत्त नेविगेशन जैसी तकनीकों का समावेश।

सामरिक और गृह मंत्रालय के बीच तालमेल।

 

आगे की राह:

  • स्थानीय रक्षा कंपनियों को प्रोत्साहन और समर्थन।
  • 3D प्रिंटिंग और मॉड्यूलर डिजाइन को बढ़ावा।
  • AI और मशीन विजन का अधिक उपयोग।
  • निजी क्षेत्र को रक्षा निर्माण में शामिल करना।
  • काउंटर-ड्रोन प्रशिक्षण को पुलिस व सुरक्षा बलों तक विस्तारित करना।

 

 

Other Post's
  • अरुणाचल सीमा (एलएसी) के पास भारतीय, चीनी सैनिकों में झड़प

    Read More
  • चीन की विदेश नीति किस तरह से संरचित है?

    Read More
  • हरा धूमकेतु

    Read More
  • एनआरसी लागू करेगा मणिपुर

    Read More
  • भारत का पहला डार्क स्काई रिजर्व

    Read More