मानसून तमिलनाडु को कैसे प्रभावित करता है?

मानसून तमिलनाडु को कैसे प्रभावित करता है?

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द हिंदू: 24 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित।

 

हाल ही में क्यों चर्चा में है

उत्तरी-पूर्वी मानसून इस वर्ष लगातार दूसरे साल तमिलनाडु में सामान्य समय से पहले पहुँच गया है, जिससे राज्य के कई हिस्सों में अत्यधिक वर्षा दर्ज की जा रही है। इस बार भी वर्षा औसत से अधिक होने की संभावना है।

हालांकि, यह अतिरिक्त वर्षा अब केवल “अच्छी खबर” नहीं रही — क्योंकि भारी बारिश के कारण कई शहरों में बाढ़, खेतों में जलभराव, सड़कें और मकान क्षतिग्रस्त हो रहे हैं।

इसके साथ ही केरल के मुल्लपेरियार बाँध से छोड़ा गया पानी भी तमिलनाडु की नदियों में पहुँचकर स्थिति को और गंभीर बना रहा है।

 

पृष्ठभूमि:

तमिलनाडु को वर्षा मुख्य रूप से उत्तर-पूर्वी मानसून (अक्टूबर–दिसंबर) से प्राप्त होती है।

केरल को बारिश दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून–सितंबर) से मिलती है।

मुल्लपेरियार बाँध, जो केरल के इडुक्की ज़िले में स्थित है परंतु तमिलनाडु के नियंत्रण में है, दोनों राज्यों की जल व्यवस्था को जोड़ता है।

पहले तक अधिक वर्षा को लाभदायक माना जाता था, लेकिन जलवायु परिवर्तन ने इस सोच को बदल दिया है क्योंकि अब वर्षा छोटी अवधि में बहुत अधिक मात्रा में हो रही है।

 

प्रमुख समस्याएँ:

(क) शहरी बाढ़

शहरों में अत्यधिक कंक्रीट निर्माण और कमजोर जलनिकासी व्यवस्था के कारण भारी बारिश का पानी बह नहीं पाता।

इससे सड़कों पर जलभराव, निचले इलाकों में बाढ़, यातायात में बाधा और बिजली कटौती जैसी समस्याएँ होती हैं।

चेन्नई, थेनी, और मदुरै जैसे शहरों में स्थिति विशेष रूप से गंभीर है।

 

(ख) कृषि पर प्रभाव:

खेतों में जलभराव से पौधों की जड़ें सड़ जाती हैं और बीज बह जाते हैं।

मिट्टी की ऊपरी उपजाऊ परत (टॉपसॉइल) बह जाने से भूमि की उर्वरता कम हो जाती है।

अधिक नमी से फफूंद और कीटों की वृद्धि होती है, जिससे फसलों का उत्पादन घटता है।

किसानों को भारी आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है।

 

(ग) स्वास्थ्य संबंधी जोखिम:

रुके हुए पानी में मच्छरों का प्रजनन बढ़ता है, जिससे डेंगू, मलेरिया, जापानी एन्सेफलाइटिस और लेप्टोस्पायरोसिस जैसी बीमारियाँ फैलती हैं।

बाढ़ के दौरान सीवेज ओवरफ्लो होने से पीने का पानी प्रदूषित हो जाता है, जिससे जठरांत्र और त्वचा संबंधी रोग फैलते हैं।

 

(घ) बुनियादी ढांचे को नुकसान:

लगातार जलभराव से इमारतों की नींव कमजोर हो जाती है।

सड़कों और पुलों पर दरारें पड़ जाती हैं, बेसमेंट में रिसाव और फफूंद की समस्या बढ़ती है।

इन मरम्मत कार्यों पर भारी आर्थिक बोझ पड़ता है।

 

(ङ) मुल्लपेरियार बाँध का प्रभाव:

मुल्लपेरियार बाँध केरल में है लेकिन इसे तमिलनाडु संचालित करता है।

जब बाँध के जलागम क्षेत्रों में भारी वर्षा होती है, तो बाँध जल्दी भर जाता है और तमिलनाडु को शटर खोलकर पानी छोड़ना पड़ता है।

यह छोड़ा गया पानी एक ओर केरल के इडुक्की क्षेत्र को प्रभावित करता है और दूसरी ओर तमिलनाडु के वैगई बाँध तक पहुँचता है।

इस समय बाँध के सभी 13 शटर खुले हुए हैं, जिससे थेनी और आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति बन गई है।

 

वर्तमान स्थिति:

थेनी और आसपास के गाँवों में खेत और घर डूब चुके हैं।

तमिलनाडु को अब केवल अपनी वर्षा ही नहीं बल्कि केरल से आने वाले पानी का भी प्रबंधन करना पड़ रहा है।

राज्य सरकार ने जलाशयों और नदियों के स्तर की निगरानी के लिए आपात सतर्कता घोषित की है।

राहत दल और बचाव टीमें सक्रिय रूप से तैनात हैं।

 

पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभाव:

मिट्टी कटाव और उर्वरता की हानि से कृषि उत्पादन घट रहा है।

पीने के पानी की गुणवत्ता गिर रही है।

सड़कें, पुल, बिजली व्यवस्था और घरों को भारी नुकसान पहुँच रहा है।

व्यापार और परिवहन ठप होने से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ रहा है।

बाढ़ग्रस्त लोगों में मानसिक तनाव और चिंता की स्थिति भी उत्पन्न हो रही है।

 

जलवायु परिवर्तन की भूमिका:

जलवायु परिवर्तन के कारण अब वर्षा कम अवधि में अत्यधिक मात्रा में हो रही है।

पारंपरिक जलनिकासी प्रणाली और बाँध नियंत्रण प्रणाली इस नई परिस्थिति के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

यह एक संकेत है कि अब हमें जलवायु अनुकूल (Climate-resilient) नीति और शहरी नियोजन अपनाने की आवश्यकता है।

 

सरकारी कदम और आवश्यक उपाय:

बाँधों और नदियों के जलस्तर की निगरानी के लिए उन्नत सेंसर और सैटेलाइट सिस्टम का उपयोग।

केरल और तमिलनाडु के बीच संयुक्त बाढ़ प्रबंधन योजना की आवश्यकता।

शहरी जलनिकासी प्रणाली और प्राकृतिक जलमार्गों का पुनर्संरचना।

स्वास्थ्य विभाग द्वारा मच्छरजनित रोगों की रोकथाम और आपात चिकित्सा सेवाएँ।

कृषि में जलवायु अनुकूल तकनीक और किसानों को बीमा व मुआवजा सहायता।

 

निष्कर्ष:

  • तमिलनाडु की यह स्थिति स्पष्ट करती है कि अब यह सोच बदलनी होगी कि “अधिक वर्षा हमेशा अच्छी होती है।”
  • आज के दौर में जब जलवायु परिवर्तन वर्षा को अनियमित और तीव्र बना रहा है, तो अति-वृष्टि एक वरदान नहीं बल्कि चुनौती बनती जा रही है।
  • राज्यों के बीच सहयोग, वैज्ञानिक जलप्रबंधन, और दीर्घकालिक जलवायु रणनीति ही भविष्य में ऐसी आपदाओं से सुरक्षा का एकमात्र उपाय है।
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