भारत ने जीनोम संपादित चावल कैसे विकसित किया?

भारत ने जीनोम संपादित चावल कैसे विकसित किया?

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द हिंदू: 15 मई 2025 को प्रकाशित:

 

समाचार में क्यों है?

हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की कि भारत दुनिया का पहला देश बन गया है जिसने जीनोम एडिटिंग तकनीक से चावल की किस्में विकसित की हैं। यह बीज आवश्यक मंज़ूरियों के बाद छह महीने में किसानों को उपलब्ध होंगे और तीन फसल चक्र के दौरान इनका बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू होगा।

 

भारत ने जीनोम-संपादित चावल कैसे विकसित किया?

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के मार्गदर्शन में वैज्ञानिकों ने SDN-1 और SDN-2 (साइट-डायरेक्टेड न्यूक्लिएस) तकनीकों का उपयोग किया।

SDN-1 में वैज्ञानिक DNA में कट लगाते हैं और कोशिका स्वयं उसकी मरम्मत करती है।

SDN-2 में वैज्ञानिक कोशिका को सुधार के लिए निर्देश देते हैं।

पहली बार इस तकनीक का उपयोग चावल पर किया गया है, जबकि पहले यह टमाटर, मछली और सोयाबीन जैसे अन्य जीवों में प्रयोग हो चुका है।

 

नई किस्में कौन सी हैं?

दो किस्में विकसित की गई हैं:

DRR धन 100 (कमला): यह 'सांबा महसूरी' नामक लोकप्रिय किस्म से विकसित की गई है। इसमें सूखा सहनशीलता, कम समय में पकना (20 दिन जल्दी), नाइट्रोजन की अधिक कुशलता और अधिक उपज (5.37 टन प्रति हेक्टेयर) जैसे गुण हैं।

Pusa DST Rice 1: यह MTU 1010 किस्म से विकसित हुआ है और खारे व क्षारीय मिट्टी में बेहतर प्रदर्शन करता है। खारी मिट्टी में यह 30.4% अधिक उपज देता है।

 

क्या ये जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसलें हैं?

नहीं, वैज्ञानिकों के अनुसार इन किस्मों में कोई विदेशी जीन (foreign gene) नहीं डाला गया है, इसलिए ये GM फसलें नहीं मानी जातीं।

SDN-3 में विदेशी जीन डाला जाता है जो GM की श्रेणी में आता है, लेकिन SDN-1 और SDN-2 में ऐसा नहीं होता।

कई देशों की तरह भारत भी इन तकनीकों से बनी फसलों को GM नहीं मानता।

 

क्या भारत पहला देश है जिसने चावल पर यह तकनीक अपनाई है?

हां, यह पहली बार है कि किसी देश ने जीनोम संपादन तकनीक (SDN-1 और SDN-2) से चावल की किस्में विकसित की हैं। इससे भारत को इस क्षेत्र में वैश्विक अग्रणी स्थान मिला है।

 

इन किस्मों की विशेषताएं क्या हैं?

कमला किस्म जल्दी पकती है, पानी व उर्वरक की बचत करती है और मीथेन उत्सर्जन भी कम करती है।

Pusa DST Rice 1 खारी व क्षारीय मिट्टी में अच्छी उपज देती है और विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों के लिए उपयोगी है।

दोनों ही किस्में जलवायु-प्रतिरोधी, उच्च उपज देने वाली, और कृषि के भविष्य के लिए उपयुक्त मानी जा रही हैं।

 

विवाद और आपत्तियां क्या हैं?

ICAR के पूर्व सदस्य वेंणुगोपाल बदरावाड़ा ने इस घोषणा को जल्दबाज़ी और भ्रामक बताया। उनके बयान के बाद उन्हें ICAR से निष्कासित कर दिया गया। 

GM फ्री इंडिया नामक संगठन का कहना है कि जीनोम एडिटिंग सुरक्षित नहीं है और यह तकनीक बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बौद्धिक संपदा (IPR) के अधीन है, जिससे किसानों की बीज संप्रभुता खतरे में पड़ सकती है।

यह भी कहा गया कि सरकार ने इस तकनीक को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के मंजूरी दी है, जो कानूनन गलत है।

 

नियामक और नैतिक चिंताएं:

इन चावल किस्मों का 2023 और 2024 में फील्ड परीक्षण हुआ था। लेकिन वाणिज्यिक उपयोग के लिए इन पर और नियामकीय मंजूरियाँ आवश्यक हैं।

विवाद की जड़ में पारदर्शिता की कमी, किसानों की भागीदारी नहीं होना, और IPR के अधिकारों से जुड़ी चिंताएं हैं।

 

इसका संभावित प्रभाव क्या हो सकता है?

अगर इन किस्मों को जिम्मेदारी और पारदर्शिता से अपनाया गया तो ये खाद्य सुरक्षा बढ़ा सकती हैं, किसानों के खर्च कम कर सकती हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद करेंगी।

हालांकि यदि कानूनी और सामाजिक पहलुओं को नज़रअंदाज़ किया गया तो यह विवाद और किसान आंदोलनों को जन्म दे सकता है।

 

निष्कर्ष:

भारत की यह उपलब्धि वैज्ञानिक दृष्टि से ऐतिहासिक है, लेकिन इसके साथ जुड़े कानूनी, नैतिक और सामाजिक मुद्दों को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सरकार को चाहिए कि वह पारदर्शिता, किसान अधिकार, और बौद्धिक संपदा पर स्पष्ट नीति बनाए। 

 

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