भारत अपनी प्राकृतिक हाइड्रोजन क्षमता का दोहन कैसे कर सकता है?

भारत अपनी प्राकृतिक हाइड्रोजन क्षमता का दोहन कैसे कर सकता है?

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द हिंदू: 3 मई 2025 को प्रकाशित:

 

समाचार में क्यों?

भारत हाल ही में अंडमान द्वीप समूह में प्राकृतिक हाइड्रोजन भंडार की खोज के बाद से प्राकृतिक (भौगोलिक) हाइड्रोजन के रूप में स्वच्छ ऊर्जा के नए स्रोत की संभावनाएं तलाश रहा है।

ऊर्जा आत्मनिर्भरता, शुद्ध शून्य उत्सर्जन (Net Zero) और ऊर्जा सुरक्षा को लेकर भारत के लक्ष्यों के संदर्भ में यह एक गेम-चेंजर विकल्प हो सकता है।

 

वर्तमान एवं भविष्य की मांग:

वर्ष 2020 में भारत की हाइड्रोजन की मांग 6 मिलियन टन प्रति वर्ष थी।

वर्ष 2070 तक यह मांग 50 मिलियन टन प्रति वर्ष से अधिक होने का अनुमान है।

प्राकृतिक हाइड्रोजन का दोहन निर्मित हाइड्रोजन की आवश्यकता को घटा सकता है और कम लागत पर डिकार्बनाइजेशन में सहायक हो सकता है।

 

भारत की प्राकृतिक हाइड्रोजन क्षमता:

प्रारंभिक अध्ययनों के अनुसार, भारत में लगभग 3,475 मिलियन टन प्राकृतिक हाइड्रोजन की संभावना है।

यदि यह आंकड़े सटीक हैं, तो भारत को हाइड्रोजन निर्माण की आवश्यकता नहीं रहेगी।

अंडमान में खोज के बाद, संभावना है कि देश के अन्य हिस्सों में भी भंडार मौजूद हो सकते हैं।

 

प्रमुख चुनौतियाँ:

तकनीकी और लॉजिस्टिक चुनौतियाँ:

तेल और गैस की तरह स्थापित खोज तकनीकें हाइड्रोजन के लिए उपलब्ध नहीं हैं।

सटीक रूप से हाइड्रोजन भंडार का पता लगाना और मात्रा आंकना चुनौतीपूर्ण है।

 

निष्कर्षण की दिक्कतें:

हाइड्रोजन के छोटे अणु आकार और उच्च प्रसरण क्षमता (diffusivity) के कारण इसके निष्कर्षण के लिए नई तकनीक की आवश्यकता है।

 

सुरक्षा संबंधी जोखिम:

हाइड्रोजन अत्यधिक प्रतिक्रियाशील होता है।

इसके लिए हाइड्रोजन-प्रतिरोधी सामग्री, जैसे कि विशेष धातु परतें, सीमेंट एडिटिव्स, और रबर फिलर की आवश्यकता होती है।

 

अवसंरचना (Infrastructure) की सीमाएं:

वर्तमान गैस पाइपलाइनों और स्टोरेज को सुरक्षा व तकनीकी आवश्यकताओं के अनुसार संशोधित करना होगा।

 

क्या यह हाइड्रोजन निर्माण से महंगा है?

खोज और प्रारंभिक बुनियादी ढांचे पर उच्च लागत आती है।

लेकिन दीर्घकालिक रूप से प्राकृतिक हाइड्रोजन का उत्पादन सस्ता हो सकता है।

व्यावसायिक लाभ तभी संभव है जब बड़े और सुलभ भंडार मिलें और निष्कर्षण की लागत न्यूनतम हो।

 

अमेरिका कैसे आगे है?

अमेरिका की ARPA-E एजेंसी प्राकृतिक हाइड्रोजन के सक्रिय निर्माण पर काम कर रही है।

तकनीकें:

चट्टानों में पानी इंजेक्ट करके हाइड्रोजन उत्पादन।

CO₂ मिश्रित पानी को लोहे की चट्टानों में डालकर हाइड्रोजन उत्पादन + कार्बन कैप्चर।

 

भारत क्या कर सकता है? – संभावित रोडमैप:

भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण:

हाइड्रोजन युक्त चट्टानों का वैज्ञानिक अध्ययन और मानचित्रण करना।

 

सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP):

सौर ऊर्जा मिशन की तरह, हाइड्रोजन संभावित क्षेत्रों में निगरानी स्टेशन स्थापित करना।

 

तेल और गैस उद्योग का उपयोग:

DG Hydrocarbons के सहयोग से मौजूदा नमूनों और कुओं का पुनरावलोकन।

कुछ गैस पाइपलाइनों को संशोधित कर हाइड्रोजन ट्रांसपोर्ट के योग्य बनाया जा सकता है।

 

नीति एवं निवेश:

स्पष्ट नियामक ढांचा।

अनुदान, सस्ती पूंजी, और निजी निवेश को आकर्षित करना।

सुरक्षा मानक और तकनीकी दिशानिर्देश विकसित करना।

 

निष्कर्ष: रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्व

प्राकृतिक हाइड्रोजन भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भर, कम उत्सर्जन, और आर्थिक रूप से स्थिर बनाने में मदद कर सकता है। लेकिन इसके लिए दीर्घकालिक नीति, तकनीकी नवाचार, और सार्वजनिक-निजी सहयोग की आवश्यकता है।

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