ब्रिक्स स्विफ्ट को कैसे चुनौती दे रहा है?

ब्रिक्स स्विफ्ट को कैसे चुनौती दे रहा है?

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द हिंदू: 5 नवंबर 2025 को प्रकाशित।

 

समाचार में क्यों?

BRICS समूह (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और अब ईरान) ने स्विफ्ट (SWIFT) प्रणाली पर निर्भरता कम करने के लिए अपने सीमा-पार भुगतान नेटवर्क (BRICS Pay) को विकसित करने की दिशा में कदम तेज़ किए हैं।

इसका उद्देश्य वित्तीय संप्रभुता (financial sovereignty) को बढ़ाना, अमेरिकी प्रतिबंधों (U.S. sanctions) के जोखिम को घटाना और डॉलर आधारित वैश्विक वित्तीय व्यवस्था को चुनौती देना है।

2024 के कज़ान शिखर सम्मेलन में BRICS नेताओं ने स्थानीय मुद्राओं में लेनदेन को प्रोत्साहित करने और सदस्य देशों के बीच बैंकिंग नेटवर्क को मजबूत करने पर बल दिया।

 

पृष्ठभूमि:

पिछले एक दशक से BRICS देश पश्चिम-प्रधान वैश्विक वित्तीय व्यवस्था को सुधारने की दिशा में प्रयासरत हैं।

2014 के फोर्टालेज़ा सम्मेलन में न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) और कॉन्टिजेंट रिज़र्व अरेंजमेंट (CRA) की स्थापना की गई — यह पहला मौका था जब विकासशील देशों ने अपनी वित्तीय संस्थाएँ बनाईं।

2015 में रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद BRICS ने राष्ट्रीय मुद्राओं में लेनदेन की संभावनाएँ तलाशनी शुरू कीं।

2017 में समूह ने मुद्रा स्वैप और स्थानीय मुद्रा निपटान पर सहयोग का निर्णय लिया।

2024 में, BRICS Payments Task Force का गठन किया गया जिसने अब BRICS Pay प्रणाली का स्वरूप लिया है।

 

प्रमुख विकास:

BRICS Pay प्रोटोटाइप: अक्टूबर 2024 में मॉस्को में इसका पहला प्रदर्शन किया गया।

BRICS बैंकनोट: कज़ान शिखर सम्मेलन में एक प्रतीकात्मक “BRICS Banknote” जारी किया गया, जिससे वैश्विक चर्चा छिड़ गई। डोनाल्ड ट्रंप ने इसे “डॉलर के खिलाफ साजिश” बताते हुए 100% टैरिफ की धमकी दी।

 

राष्ट्रीय भुगतान प्रणालियाँ:

रूस – SPFS

चीन – CIPS

भारत – UPI

ब्राज़ील – Pix

ये सभी मिलकर BRICS Pay की तकनीकी नींव बन सकती हैं।

 

मुख्य मुद्दे:

सदस्यों के अलग-अलग हित: प्रत्येक देश अपनी प्रणाली को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देना चाहता है।

तकनीकी एकीकरण की चुनौती: विभिन्न प्रणालियों को एकीकृत करना कठिन कार्य है।

भूराजनीतिक दबाव: अमेरिका और पश्चिमी देश इसे डॉलर प्रभुत्व के लिए खतरा मान रहे हैं।

 

महत्व:

वित्तीय स्वतंत्रता: SWIFT और डॉलर पर निर्भरता घटेगी।

प्रतिबंधों से सुरक्षा: पश्चिमी प्रतिबंधों के दौरान वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध होगा।

दक्षिण-दक्षिण सहयोग: विकासशील देशों के बीच आर्थिक एकता मजबूत होगी।

वैश्विक वित्त में प्रभाव: BRICS की आवाज़ अधिक सशक्त होगी।

 

चुनौतियाँ:

तकनीकी संगतता (compatibility): सीमाओं के पार निर्बाध प्रणाली बनाना जटिल कार्य है।

आपसी विश्वास की कमी: भारत-चीन के मतभेद प्रगति को धीमा कर सकते हैं।

पश्चिमी प्रतिक्रिया: अमेरिका या यूरोप से नए प्रतिबंध या टैरिफ लग सकते हैं।

सीमित स्वीकृति: गैर-BRICS देशों द्वारा इसे अपनाने में समय लगेगा।

 

भविष्य की दिशा:

  • सभी अड़चनों के बावजूद, BRICS Pay एक बहुध्रुवीय वित्तीय व्यवस्था की दिशा में ऐतिहासिक कदम है।
  • यदि राजनीतिक एकजुटता बनी रही — विशेषकर ट्रंप की नीतिगत धमकियों के बाद — तो इसका क्रियान्वयन अपेक्षा से पहले संभव है।
  • दीर्घकाल में यह प्रणाली अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था का संतुलन बदल सकती है और पश्चिमी प्रभुत्व को कमजोर कर सकती है।
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