अदालतें व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा कैसे कर रही हैं?

अदालतें व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा कैसे कर रही हैं?

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द हिंदू: 25 सितंबर 2025 को प्रकाशित।

 

क्यों चर्चा में?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने बॉलीवुड हस्तियों के व्यक्तित्व अधिकारों को बिना अनुमति उपयोग से बचाने के लिए आदेश जारी किए।

ऐश्वर्या राय बच्चन और अभिषेक बच्चन ने अपने चित्रों व आवाज़ों के एआई (AI) आधारित कंटेंट और मर्चेंडाइज़ में दुरुपयोग की शिकायत की थी।

पहले भी करण जौहर, अमिताभ बच्चन, अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ और अरिजीत सिंह जैसे कलाकारों को अदालत से समान सुरक्षा मिली है।

ये मामले डीपफेक्स (Deepfakes) और जेनेरेटिव एआई के दौर में व्यक्तित्व अधिकारों को न्यायपालिका द्वारा मान्यता दिए जाने की प्रवृत्ति को रेखांकित करते हैं।

 

व्यक्तित्व अधिकार क्या हैं?

परिभाषा: किसी व्यक्ति के नाम, छवि, आवाज़, हस्ताक्षर, विशिष्ट शैली/संवाद, और व्यक्तित्व को बिना अनुमति व्यावसायिक शोषण से बचाने वाले अधिकार।

 

भारत में कानूनी आधार:

एक ही क़ानून में संहिताबद्ध नहीं, बल्कि गोपनीयता, मानहानि, प्रचार अधिकार और न्यायिक मिसालों से विकसित।

 

मुख्य संरक्षण:

कॉपीराइट अधिनियम, 1957 (धारा 38A, 38B → कलाकारों के प्रदर्शन अधिकार और नैतिक अधिकार)।

ट्रेड मार्क अधिनियम, 1999 (नाम, हस्ताक्षर या टैगलाइन को ट्रेडमार्क के रूप में पंजीकृत करने की अनुमति)।

पासिंग-ऑफ का टॉर्ट (धारा 27, ट्रेड मार्क्स अधिनियम) → झूठे अनुमोदन से रोकता है।

संवैधानिक आधार: अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार → गरिमा और निजता)।

 

प्रमुख न्यायिक फैसले:

राजगोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य (1994) – निजता को अनुच्छेद 21 का हिस्सा माना, हालांकि सार्वजनिक अभिलेख तक सीमित।

रजनीकांत मामला (मद्रास HC, 2015) – नाम व शैली के दुरुपयोग पर रोक लगाई।

अनिल कपूर मामला (दिल्ली HC, 2023) – “झकास” और छवि के अनधिकृत उपयोग पर रोक; स्पष्ट किया कि व्यंग्य और पैरोडी सुरक्षित अभिव्यक्ति है।

जैकी श्रॉफ मामला (दिल्ली HC, 2024) – ई-कॉमर्स और एआई आधारित दुरुपयोग पर सुरक्षा।

अरिजीत सिंह मामला (बॉम्बे HC, 2024) – एआई से आवाज़ की नकल (voice cloning) पर रोक; कहा कि कलाकार एआई दुरुपयोग के प्रति बेहद संवेदनशील हैं।

 

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से टकराव:

अनुच्छेद 19(1)(a) → अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, जिसमें आलोचना, व्यंग्य, पैरोडी शामिल।

 

अदालतों की स्पष्टता:

व्यावसायिक शोषण (commercial exploitation) = उल्लंघन।

व्यंग्य, आलोचना, समाचार, शैक्षणिक प्रयोग = सुरक्षित।

 

प्रमुख मामले:

डीएम एंटरटेनमेंट बनाम बेबी गिफ्ट हाउस (2010) – दलेर मेहंदी गुड़िया मामला; व्यावसायिक दुरुपयोग रोका, पर पैरोडी की अनुमति।

डिजिटल कलेक्टिबल्स बनाम गैलैक्टस (2023) – अदालत ने कहा कि पब्लिक डोमेन की सामग्री का सीमित उपयोग अनुमेय है।

 

चिंताएँ और चुनौतियाँ:

अत्यधिक सुरक्षा बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: ज्यादा सुरक्षा से सेंसरशिप का खतरा और रचनात्मकता पर रोक।

विखंडित कानूनी व्यवस्था: एकल कानून की अनुपस्थिति, केवल न्यायालयी आदेशों पर निर्भरता।

 

AI डीपफेक्स: आवाज़ और छवियों की नक़ल, रिवेंज पॉर्न जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं।

साधारण नागरिकों पर प्रभाव: केवल सेलिब्रिटी नहीं, आम लोग, खासकर महिलाएँ, गहराई से प्रभावित हो रही हैं।

प्रवर्तन की कठिनाई: अदालतें URL ब्लॉक करने का आदेश देती हैं, परंतु हर उल्लंघन का पता लगाना लगभग असंभव।

 

आगे का रास्ता:

भारत में व्यक्तित्व अधिकारों पर व्यापक कानून बनाना आवश्यक:

अधिकारों की स्पष्ट परिभाषा।

अपवाद (exceptions): व्यंग्य, पैरोडी, समाचार, आलोचना।

डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और AI डेवलपर्स की जिम्मेदारी।

डीपफेक्स और एआई दुरुपयोग पर कठोर दंडात्मक प्रावधान।

संतुलन: व्यक्तिगत गरिमा (अनुच्छेद 21) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) दोनों सुरक्षित रहें।

 

निष्कर्ष: अदालतें अब एआई दुरुपयोग और डिजिटल शोषण से हस्तियों को सुरक्षा प्रदान करने में सक्रिय हो रही हैं, लेकिन बिना स्पष्ट कानून के यह प्रक्रिया बिखरी और अस्थायी है। एक संतुलित कानूनी ढाँचा आवश्यक है ताकि व्यक्तिगत गरिमा और गोपनीयता भी सुरक्षित रहे और स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी।

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