सरकार ने संचार साथी ऐप पर आदेश वापस लिया

सरकार ने संचार साथी ऐप पर आदेश वापस लिया

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द हिंदू: 4 दिसंबर 2025 को प्रकाशित।

 

चर्चा में क्यों?

3 दिसंबर 2025 को दूरसंचार विभाग (DoT) ने 2026 से सभी स्मार्टफोन्स में संचार साथी ऐप को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करने वाले अपने आदेश को वापस ले लिया। इस निर्णय को व्यापक सार्वजनिक विरोध और एक ही दिन में 6 लाख से अधिक स्वैच्छिक डाउनलोड के बढ़ते आंकड़ों के बाद लिया गया, जिससे स्पष्ट हुआ कि बिना किसी बाध्यता के भी ऐप की स्वीकार्यता तेज़ी से बढ़ रही है।

 

संचार साथी के बारे में

भारत सरकार द्वारा लॉन्च किया गया संचार साथी एक एकीकृत डिजिटल मंच है, जो उपयोगकर्ताओं को निम्नलिखित सुविधाएँ प्रदान करता है:

  • आपके नाम पर जारी सभी मोबाइल कनेक्शनों की निगरानी
  • संदिग्ध सिम गतिविधियों की रिपोर्ट
  • खोए या चोरी हुए मोबाइल फोनों को ब्लॉक, ट्रेस या रिकवर करना
  • दूरसंचार धोखाधड़ी को रोकना

 

पृष्ठभूमि

प्री-इंस्टॉलेशन आदेश, दूरसंचार पहचानकर्ता उपयोगकर्ता इकाइयों (TIUEs) की नई अवधारणा के तहत DoT द्वारा जारी तीन निर्देशों में से एक था।

TIUE वर्गीकरण DoT को केवल टेलीकॉम कंपनियों ही नहीं बल्कि मोबाइल नंबरों पर आधारित किसी भी डिजिटल इकाई को विनियमित करने की शक्ति देता है।

TIUE के तहत हाल के अन्य आदेश:

  1. मैसेजिंग ऐप्स के लिए अनिवार्य SIM-binding (उपयोगकर्ता खातों को सत्यापित मोबाइल नंबरों से जोड़ना)
  2. WhatsApp Web को हर 6 घंटे में जबरन लॉगआउट कराना ताकि दुरुपयोग को रोका जा सके

इन्हीं में से प्री-इंस्टॉलेशन वाला आदेश सार्वजनिक विवाद का मुख्य कारण बना।

 

सार्वजनिक विरोध: गोपनीयता केंद्र में

लीक हुए ड्राफ्ट आदेश के बाद भारी सार्वजनिक विरोध सामने आया:

  • नागरिक समाज समूहों ने बिना सहमति ऐप थोपने को डिजिटल स्वायत्तता पर हमला बताया।
  • गोपनीयता विशेषज्ञों ने संभावित सरकारी निगरानी की आशंका जताई।
  • नेटिज़न्स, तकनीकी विश्लेषकों और विपक्षी नेताओं ने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की चेतावनी दी।
  • तीव्र विरोध के चलते सरकार को आदेश पूरी तरह वापस लेना पड़ा और ऐप की स्वैच्छिक प्रकृति को फिर से स्पष्ट करना पड़ा।

 

संवैधानिक पक्ष: निजता का अधिकार – अनुच्छेद 21

यह मुद्दा सीधे निजता के अधिकार से जुड़ा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017) में मौलिक अधिकार घोषित किया।

इस ऐतिहासिक निर्णय ने राज्य की किसी भी हस्तक्षेपकारी कार्रवाई के लिए तीन-स्तरीय परीक्षण अनिवार्य किया:

  1. Legality (वैधता) – किसी कानून द्वारा समर्थित होना
  2. Legitimate Aim (वैध उद्देश्य) – जैसे सुरक्षा या धोखाधड़ी रोकना
  3. Proportionality (अनुपातिकता) – लक्ष्य प्राप्ति के लिए सबसे कम हस्तक्षेप वाला तरीका

बिना सहमति और बिना ऑप्ट-आउट विकल्प के अनिवार्य प्री-इंस्टॉलेशन अनुपातिकता परीक्षण में विफल होता है। इसलिए इस पर गंभीर संवैधानिक प्रश्न उठते हैं।

 

शासन के संकेत: डिजिटल विरोध से मिली सीख

  • नागरिक सहमति का महत्व: स्वैच्छिक अपनाने ने दिखाया कि बाध्यकारी तरीकों की आवश्यकता नहीं।
  • गोपनीयता-सचेत नागरिकों का उदय: डिजिटल अधिकारों को लेकर जनता में जागरूकता तेज़ी से बढ़ रही है।
  • पारदर्शी टेक विनियमन की आवश्यकता: नीतियाँ सार्वजनिक, चर्चा-योग्य और न्यायसंगत होनी चाहिए—लीक नहीं।
  • सुरक्षा बनाम स्वतंत्रता का संतुलन: टेलीकॉम धोखाधड़ी रोकना ज़रूरी है, लेकिन मौलिक अधिकारों की कीमत पर नहीं।
  • राजनीतिक जवाबदेही और जन प्रतिक्रिया: नीति वापसी जनता के दबाव से हुई—यह परिपक्व लोकतांत्रिक शासन का संकेत है।

 

आगे की राह

  • पुट्टस्वामी सिद्धांतों के अनुरूप डेटा संरक्षण मानकों को मजबूत करना
  • स्वैच्छिक और जानकारी-आधारित डिजिटल भागीदारी को बढ़ावा देनासार्वजनिक डिजिटल
  • प्लेटफॉर्म में "प्राइवेसी-बाय-डिज़ाइन" दृष्टिकोण अपनाना
  • नागरिकों में डिजिटल साक्षरता बढ़ाना
  • उद्योग एवं नागरिक समाज के साथ परामर्श आधारित नीतिनिर्माण को बढ़ावा देना
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