इंटरनेट का भविष्य

इंटरनेट का भविष्य

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स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा 60 अन्य साझेदार देशों ने "इंटरनेट के संबंध में भविष्य के लिये घोषणा" नामक एक राजनीतिक घोषणा पर हस्ताक्षर किये हैं।

भारत, चीन और रूस उन बड़े देशों में शामिल हैं जो इस घोषणा का हिस्सा नहीं हैं।

भारत ने साइबर अपराध, 2001 पर बुडापेस्ट कन्वेंशन पर भी हस्ताक्षर नहीं किये हैं।

इंटरनेट के भविष्य के लिये घोषणा क्या है?

परिचय:

"राज्य प्रायोजित या दुर्भावनापूर्ण व्यवहार के युग में घोषणा का उद्देश्य मानवता के लिये एक परस्पर संचार प्रणाली को बढ़ावा देना है।

घोषणा एक समावेशी पहल है, जिसके तहत भागीदार अन्य सरकारों तक पहुँच जारी रखेंगे ताकि उन्हें घोषणा में शामिल किया जा सके।

सभी भागीदार निजी क्षेत्र, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, तकनीकी समुदाय, अकादमिक और नागरिक समाज तथा दुनिया भर में अन्य प्रासंगिक हितधारकों तक पहुँच सुनिश्चित करेंगे ताकि एक खुले, मुक्त, वैश्विक, इंटरऑपरेबल, विश्वसनीय व सुरक्षित इंटरनेट को प्राप्त करने के लिये साझेदारी में कार्य किया जा सके।

घोषणा और उसके मार्गदर्शक सिद्धांत कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं।

इसका उपयोग सार्वजनिक नीति निर्माताओं के साथ-साथ नागरिकों, व्यवसायों और नागरिक समाज संगठनों के लिये एक संदर्भ बिंदु के रूप में किया जाना चाहिये।

उद्देश्य:

इंटरनेट द्वारा बुनियादी लोकतांत्रिक सिद्धांतों, मौलिक स्वतंत्रताओं एवं मानवाधिकारों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये जैसा कि मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा में परिलक्षित होता है।

इंटरनेट को एकल नेटवर्क, विकेंद्रीकृत नेटवर्क के रूप में काम करना चाहिये, जहाँ डिजिटल तकनीकों का उपयोग भरोसेमंद तरीके से किया जाता है, यह व्यक्तियों के बीच अनुचित भेदभाव से बचने और व्यवसायों के बीच निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा हेतु ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के उपयोग की अनुमति देता है।

इसका उद्देश्य मानव अधिकारों की रक्षा करना, सिंगल ग्लोबल इंटरनेट को बढ़ावा देना, विश्वास और समावेशिता को बढ़ावा देना तथा इंटरनेट के विकास हेतु एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण की रक्षा करना है।

संबंधित चिंताएंँ:

हाल ही में कुछ सत्तावादी सरकारों द्वारा इंटरनेट स्वतंत्रता के दमन में वृद्धि हुई है, मानव अधिकारों का उल्लंघन करने के लिये डिजिटल उपकरणों का उपयोग, साइबर हमलों का बढ़ता प्रभाव, अवैध सामग्री का प्रसार और दुष्प्रचार तथा आर्थिक शक्ति का अत्यधिक संकेंद्रण हुआ है।

विश्व में बढ़ती डिजिटल सत्तावाद की वैश्विक प्रवृत्ति देखी जा रही है। रूस और चीन जैसे देशों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने, स्वतंत्र समाचार साइटों को सेंसर करने, चुनावों में हस्तक्षेप करने, दुष्प्रचार को बढ़ावा देने व अपने नागरिकों को अन्य मानवाधिकारों से वंचित करने के लिये कार्य किया है।

भारत में इंटरनेट स्वतंत्रता की स्थिति:

परिचय:

2021 में वैश्विक स्तर पर कुल 182 इंटरनेट क्रैकडाउन की सूचना मिली थी।

भारत में 106 शटडाउन की घटनाओं में से 85 जम्मू और कश्मीर में दर्ज किये गए थे।

भारत उन 18 देशों में से एक था, जिन्होंने विरोध प्रदर्शन के दौरान मोबाइल इंटरनेट बंद कर दिया था।

वर्ष 2021 में इंटरनेट बंद करने वाले देशों की संख्या 2020 के 29 से बढ़कर 34 हो गई है।

इससे संबंधित न्यायालय के निर्णय:

अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ, 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि इंटरनेट सेवाओं का एक अपरिभाषित प्रतिबंध अवैध होगा तथा इंटरनेट बंद करने के आदेश संबंधी आवश्यकता और आनुपातिकता के परीक्षणों को पूरा किया जाना चाहिये।

फहीमा शिरीन बनाम केरल राज्य, 2019 में केरल उच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत इसे निजता के अधिकार और शिक्षा के अधिकार का एक हिस्सा बनाते हुए इंटरनेट के उपयोग के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया।

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