वर्तमान राज्य हरियाणा में शामिल क्षेत्र 1803 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया गया था।
1832 में इसे ब्रिटिश भारत के तत्कालीन उत्तर-पश्चिमी प्रांतों में स्थानांतरित कर दिया गया और 1858 में हरियाणा पंजाब का हिस्सा बन गया।
ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति के कारण इस क्षेत्र में शिक्षा, व्यापार, उद्योग, संचार के साधन और सिंचाई के क्षेत्र में कोई महत्वपूर्ण विकास नहीं हुआ। नतीजतन यह 19वीं सदी में पिछड़ा रहा।
हरियाणा और पंजाब के बीच मिलन अजीब था, मुख्यतः दो क्षेत्रों के बीच धार्मिक और भाषाई मतभेदों के कारण: पंजाब के पंजाबी भाषी सिख, और हरियाणा के हिंदी भाषी हिंदु।
दिसंबर 12,1911 को भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थांतरण के साथ, हरियाणा क्षेत्र और अलग हो गया था।
1920 के दशक में, दिल्ली जिले में कुछ बदलाव मुस्लिम लीग और क्षेत्र के लोगों द्वारा दिल्ली के आयुक्त सर जे.पी. थॉमसन को सुझाए गए थे।
1928 में, दिल्ली में सर्वदलीय सम्मेलन ने फिर से दिल्ली की सीमाओं के विस्तार की मांग की।
इसके अलावा, हरियाणा के एक अलग राज्य के लिए आंदोलन का नेतृत्व लाला लाजपत राय और आसफ अली, दोनों भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में प्रमुख शख्सियतों के साथ-साथ नेकी राम शर्मा द्वारा किया गया था, जिन्होंने एक स्वायत्त राज्य की अवधारणा को विकसित करने के लिए एक समिति का नेतृत्व किया था।
1931 में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में, तत्कालीन पंजाब सरकार के वित्तीय आयुक्त और गोलमेज सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सचिव सर जेफ्री कॉर्बर्ट ने पंजाब की सीमाओं के पुनर्गठन और पंजाब से अंबाला डिवीजन को अलग करने का सुझाव दिया।
1932 में, देशबंधु गुप्ता ने कहा कि "हिंदी भाषी क्षेत्र कभी भी पंजाब का हिस्सा नहीं रहा था। इस क्षेत्र के विकास के लिए यह आवश्यक था कि इसे पंजाब से अलग किया जाए और दिल्ली, राजस्थान के कुछ आसपास के हिस्सों को इसके साथ जोड़कर एक नया राज्य बनाया जाए।
1947 में जब भारत आजाद हुआ और आजादी के 19 साल बाद ही एक राज्य के रूप में हरियाणा का गठन हुआ। देश की आजादी के समय हरियाणा पंजाब प्रदेश का ही हिस्सा था, लेकिन राज्य में देश की आजादी के कुछ साल बाद से ही भाषाई आधार पर अलग राज्य बनाने की मांग उठने लगी।
राज्य के लोगों को यह अंदर ही अंदर यह अनुभव होने लगा कि पंजाब में उनकी उपेक्षा हो रही है और उन्हें समुचित महत्त्व नहीं दिया जा रहा है। हरियाणा वासियों ने महसूस किया कि पंजाब के प्रशासनिक कार्य भी उनकी कोई सुनवायी नहीं होती है। इन सभी कारणों से पंजाब में प्रताप सिंह कैरो के शासन काल के दौरान ही हरियाणा प्रदेश की मांग उठने लगी। उधर लाला देशबन्धु गुप्त और आसफ अली भी ‘वृहत्तर दिल्ली (Greater Delhi)’ की मांग कर रहे थे जिसमें हरियाणा को शामिल करने का सुझाव था।
पंजाबी भाषा को राज्य भाषा न मानना (Punjabi language is not considered as state language)
1955 में भारत सरकार ने राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की जिसका काम भाषाई आधार पर प्रान्तों का सीमांकन करना था। परन्तु इस आयोग ने भी पंजाब विभाजन की मांग को अस्वीकार कर दिया था। किन्तु राज्य पुनर्गठन आयोग ने पटियाला और पूर्वी पंजाब स्टेट्स को पंजाब क्षेत्र में तथा महेन्द्रगढ़ व् जीन्द को हरियाणा क्षेत्र में शामिल करने की सिफारिश की। लेकिन वास्तविक समस्या जैसी की तैसी ही बनी रही क्योंकि हरियाणा अधिकतर हिन्दी भाषी था और पंजाबी भाषा को राज्य भाषा व् शिक्षा का आधार मानने को बिल्कुल तैयार नहीं था।
पंजाब पुनर्गठन एक्ट (Punjab Reorganization Act)
23 सितंबर 1965 में भारत सरकार ने लोकसभा के अध्यक्ष सरदार हुक्म सिंह की अध्यक्षता में पंजाब विभाजन पर विचार करने लिए एक संसदीय समिति शाह आयोग का गठन किया।
आयोग ने 31 मई, 1966 को अपनी रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट के अनुसार हिसार, महेंद्रगढ़, गुड़गांव, रोहतक और करनाल के तत्कालीन जिलों को नए राज्य हरियाणा का हिस्सा बनना था। इसके अलावा, जींद (जिला संगरूर), नरवाना (जिला संगरूर), नारायणगढ़, अंबाला और जगाधरी की तहसीलों को भी शामिल किया जाना था। समिति की सिफारिश के आधार पर सरकार मार्च 1966 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री जयंतीलाल छोटेलाल शाह (Mr Jayantilal Chhotalal Shah) की अध्यक्षता में पंजाब सीमा आयोग का गठन किया। आयोग द्वारा पंजाब सीमांकन के पश्चात् सितम्बर 1966 में संसद ने पंजाब पुनर्गठन एक्ट पारित किया। इस प्रकार लम्बे संघर्ष के बाद 1 नवम्बर, 1966 को सत्रहवें (17th ) राज्य के रूप में हरियाणा राज्य का गठन हुआ।
हरियाणा सरकार का गठन (Government of Haryana formed)
श्री धर्मवीर को राज्य का प्रथम राज्यपाल नियुक्त किया गया। राज्यपाल ने राष्ट्रपति की सलाह पर उस समय राज्य में चुनाव न कराकर पंजाब विधान-सभा से ही हरियाणा के विधायकों को लेकर हरियाणा विधान सभा का गठन किया। उस समय पंजाब राज्य में सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी से बाहर आये कांग्रेस विधायकों द्वारा नवगठित हरियाणा विधान सभा में पं. भगवत दयाल शर्मा को अपना नेता चुनने के बाद प्रदेश का प्रथम मुख्यमंत्री बनाया गया।
1967 के आम चुनाव में कांग्रेस को विधान सभा में 81 में से 48 स्थान मिले जबकि लोकसभा की नौ में से सात सीट कांग्रेस ने प्राप्त की। श्री भगवत दयाल शर्मा पुनः मुख्यमंत्री बने। परन्तु सात दिनों के बाद ही पार्टी की आन्तरिक कलह के कारण विधान सभा अध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार दयाकिशन को विशाल हरियाणा पार्टी के उम्मीदवार राव वीरेन्द्र सिंह के हाथों पराजित होना पड़ा। श्री दयाकिशन को 37 और राव वीरेन्द्र सिंह को 40 मत मिले। इस प्रकार हरियाणा सरकार का गठन हुआ।
हरियाणा के गठन से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी वाली घटनाएँ
तिथि / तथ्य |
आयोजन |
1803 |
हरियाणा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया गया |
1832 |
हरियाणा ब्रिटिश भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रांतों में स्थानांतरित हो गया |
1858 |
हरियाणा बना पंजाब का हिस्सा |
दिसंबर 12, 1911 |
भारत की राजधानी का कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरण |
1920 |
सर जे.पी. थॉमसन द्वारा दिल्ली जिले में बदलाव की सिफारिश |
1928 |
दिल्ली की सीमाओं का विस्तार। |
1931 |
दूसरा गोलमेज सम्मेलन |
1947 |
भारत आजाद हुआ |
'ग्रेटर दिल्ली' की मांग |
लाला देशबंधु गुप्ता और आसफ अली |
सितंबर 1966 |
पंजाब पुनर्गठन अधिनियम |
1 नवंबर, 1966 |
हरियाणा का गठन |
श्री धर्मवीर |
राज्य के पहले राज्यपाल |
पं. भागवत दयाल शर्मा |
पहला मुख्यमंत्री |