धीमी होती अर्थव्यवस्था में विस्तारवादी नीतियां:

धीमी होती अर्थव्यवस्था में विस्तारवादी नीतियां:

Static GK   /   धीमी होती अर्थव्यवस्था में विस्तारवादी नीतियां:

Change Language English Hindi

द हिंदू: 23 जून 2025 को प्रकाशित:

 

क्यों चर्चा में है?

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अप्रैल और जून 2025 में लगातार दो मौद्रिक नीति बैठकों में रेपो दरों में कुल 75 बेसिस पॉइंट की कटौती की है, जिससे यह अब 5.5% हो गई है। इसके साथ ही फरवरी 2025 में सरकार ने इनकम टैक्स में कटौती की थी। इससे स्थिति ऐसी बन गई है जिसमें वित्तीय और मौद्रिक दोनों नीतियाँ विस्तारवादी (Expansionary) हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में संतुलन और समन्वय को लेकर चिंता बढ़ी है।

 

पृष्ठभूमि:

कोविड-19 के बाद वैश्विक महंगाई और सख्त मौद्रिक नीति के दौर के बाद, अब मुद्रास्फीति घटकर 3% (6 वर्षों में सबसे कम) हो गई है।

इस महंगाई में कमी के साथ RBI ने दरों में कटौती की है।

फरवरी 2025 में सरकार ने आयकर में कटौती करके घरेलू मांग को बढ़ावा देने का प्रयास किया।

अमेरिका और यूके के उदाहरण बताते हैं कि जब वित्तीय और मौद्रिक नीतियों में समन्वय नहीं होता तो परिणाम विपरीत हो सकते हैं।

 

प्रमुख मुद्दे:

नीतिगत समन्वय की कमी: सरकार और RBI अपने-अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं, जिससे अति-उत्साही मांग का खतरा है।

कमजोर विकास संकेतक: क्रेडिट ग्रोथ गिरकर 9% (3 साल में सबसे कम) और बेरोजगारी दर बढ़कर 5.6% हो गई है।

खपत में देरी: कर में राहत के बावजूद, उपभोक्ताओं ने तत्काल खर्च नहीं बढ़ाया।

भविष्य की महंगाई का खतरा: यदि उपभोग व निवेश में तेजी आई तो महंगाई अचानक बढ़ सकती है।

राजकोषीय घाटे की चिंता: अगर उत्पादन पर्याप्त रूप से नहीं बढ़ा तो कर संग्रह घटेगा और फिस्कल डेफिसिट बढ़ेगा।

 

संभावित प्रभाव:

तत्काल: नकदी और निवेश भावना में सुधार हो सकता है।

मध्यम अवधि: यदि वृद्धि नहीं होती, तो राजस्व घाटा बढ़ेगा, जिससे सामाजिक योजनाओं पर असर पड़ेगा।

दीर्घकालीन: जब मांग व निवेश दोनों एक साथ बढ़ेंगे तो महंगाई में अचानक उछाल आ सकता है, जिससे मौद्रिक नीति को कठोर बनाना पड़ेगा।

 

नीति बहस के बिंदु:

क्या दोनों नीतियों (वित्तीय और मौद्रिक) का एक साथ विस्तार उपयुक्त है?

क्या सरकार को टैक्स में कटौती से ज़्यादा रोजगार व मजदूरी पर आधारित खर्च करना चाहिए?

क्या यह महंगाई में गिरावट स्थायी है, या केवल अस्थायी राहत है?

 

आगे की राह:

  • RBI और वित्त मंत्रालय के बीच बेहतर समन्वय ज़रूरी।
  • महंगाई की अपेक्षाओं की सतत निगरानी की जानी चाहिए।
  • सरकार को सामान्य कर राहत के बजाय लक्षित व्यय जैसे मजदूरी और ग्रामीण विकास पर ध्यान देना चाहिए।
  • अगर मंदी के संकेत बने रहते हैं, तो RBI को आगे और दरों में कटौती करनी पड़ सकती है, लेकिन सावधानीपूर्वक।
Other Post's
  • ईरान-इज़रायल युद्ध के बीच तेल की कीमतें क्यों बढ़ रही हैं?

    Read More
  • बढ़ी हुई चुनावी खर्च सीमा

    Read More
  • अफगानिस्तान मानवीय संकट

    Read More
  • जमानत बाक्स जारी करना

    Read More
  • बायोट्रांसफॉर्मेशन तकनीक

    Read More