द हिंदू: 12 सितंबर 2025 को प्रकाशित।
क्यों खबरों में?
रूस से तेल खरीद को लेकर यूरोपीय संघ (EU) और अमेरिका की नीतियों में बड़ा अंतर उभर आया है।
भारतीय खरीदारों ने बढ़ते जोखिम और बैंकों की सख्ती के कारण 10 डॉलर प्रति बैरल तक की छूट की मांग की है।
अक्टूबर में भारत के लिए रूसी कच्चे तेल की आपूर्ति में हल्की कमी आने की संभावना है क्योंकि कुछ माल चीन की ओर भेजा जाएगा।
पृष्ठभूमि:
फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका, ईयू और जी7 देशों ने रूस पर तेल प्रतिबंध (Sanctions) लगाए।
इसके तहत प्राइस कैप (Price Cap) प्रणाली लागू की गई, जिसका उद्देश्य था:
रूस की तेल आय कम करना।
वैश्विक आपूर्ति संकट से बचना और कीमतें स्थिर रखना।
इस दौरान भारत और चीन, रूस से छूट पर तेल खरीदने वाले सबसे बड़े खरीदार बनकर उभरे।
मुख्य मुद्दे:
नीति विभाजन:
EU: तेल की प्राइस कैप घटाकर 47.60 डॉलर/बैरल कर दी (पहले 60 डॉलर थी) और सख्त प्रतिबंध चाह रहा है।
अमेरिका (ट्रम्प प्रशासन): कैप घटाने के खिलाफ, बल्कि भारत पर रूसी तेल आयात पूरी तरह बंद करने का दबाव डाल रहा है। भारत के इनकार पर अमेरिकी आयात शुल्क 50% तक बढ़ा दिए गए।
भारत पर असर:
भारत, जो रूस से समुद्री तेल का सबसे बड़ा आयातक है, अब झेल रहा है:
बैंकिंग जाँच में सख्ती।
प्रतिबंध उल्लंघन का जोखिम।
बड़ी छूट की मांग (10 डॉलर/बैरल तक) ताकि जोखिम का संतुलन बने।
पहले सितंबर में यह छूट केवल 2-3 डॉलर/बैरल थी।
रूस की प्रतिक्रिया:
गहरे डिस्काउंट से इनकार किया।
कुछ माल चीन की ओर मोड़ दिया, जिससे भारत की आपूर्ति घटेगी।
बाजार में असमंजस:
अमेरिका–EU असहमति से प्रतिबंध लागू करना मुश्किल।
रूस “शैडो फ्लीट” (छद्म जहाज़ बेड़ा) और रूसी बीमा का उपयोग कर रहा है।
कई सौदे अब भी प्राइस कैप से ऊपर हो रहे हैं।
वर्तमान स्थिति (अक्टूबर परिदृश्य):
भारत में रूसी तेल आयात:
यहां तक कि 10 डॉलर की छूट पर भी अधिकतर सौदे ईयू कैप 47.60 डॉलर से ऊपर रहेंगे, जिससे अनुपालन मुश्किल होगा।
भूराजनीतिक प्रभाव:
भारत:
अमेरिका के दबाव (शुल्क) और ईयू की कैप दोनों का सामना।
संतुलन की रणनीति: सस्ता तेल सुरक्षित करना और पश्चिमी संबंध बनाए रखना।
रूस:
अधिकतर तेल कैप से ऊपर बेचने में सफल।
शैडो फ्लीट और वैकल्पिक बीमा पर निर्भर।
भारत, चीन और तुर्की जैसे खरीदारों पर भरोसा।
अमेरिका–EU संबंध:
प्रतिबंधों का समन्वय टूटा।
ईयू कड़ा रुख अपनाना चाहता है, जबकि ट्रम्प अलग दिशा में।
आर्थिक और बाजार असर:
ब्रेंट क्रूड ~67 डॉलर/बैरल पर कारोबार कर रहा है, जो नई कैप से काफी ऊपर है।
नई कैप से पश्चिमी शिपिंग कंपनियों की भूमिका घट सकती है।
भारत को सस्ता सौदा पाने का मौका, लेकिन जोखिम भी अधिक।
व्यापारी प्रतिबंधों को दरकिनार करने के रास्ते ढूँढ रहे हैं।
लंबी अवधि का परिदृश्य:
बिना अमेरिका–ईयू तालमेल के प्रतिबंधों का असर सीमित रहेगा।
भारत और चीन रूस के तेल निर्यात के लिए अहम रहेंगे।
यदि शुल्क और सख्ती बढ़ी तो भारत विविध स्रोतों से आयात बढ़ा सकता है।
रूस वैकल्पिक व्यापार प्रणालियों और शैडो फ्लीट पर और निर्भर होगा।
निष्कर्ष:
रूसी तेल पर ईयू–अमेरिका नीति विभाजन ने वैश्विक ऊर्जा बाज़ार में असमंजस पैदा कर दिया है। भारत छूट की शर्तों पर रूस से तेल खरीदकर लाभ उठाना चाहता है, लेकिन अमेरिका और ईयू के दबाव से संतुलन साधना चुनौती है। यह विभाजन प्रतिबंधों की विश्वसनीयता को कमजोर करता है और रूस को आय बनाए रखने का अवसर देता है। आने वाले महीनों में यह स्पष्ट होगा कि क्या ईयू अन्य जी7 देशों को अपने साथ जोड़ पाता है या ट्रम्प की अलग नीति प्रतिबंध व्यवस्था को और कमजोर करेगी।