बिहार में प्रारंभिक मध्यकालीन अवधि

बिहार में प्रारंभिक मध्यकालीन अवधि

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पाल वंश (750–1162 ई.)

  • शशांक के निधन के बाद उभरें; बंगाल और बिहार में अराजकता।
  • अनुयायी: महायान और तांत्रिक बौद्ध धर्म
  • गोपाल (750–770 .) – संस्थापक; लोगों द्वारा चुने गए; ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना; बंगाल और बिहार को संगठित किया।
  • धर्मपाल (770–810 .) – गोपाल के पुत्र; उत्तर में विस्तार; विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना; नालंदा विश्वविद्यालय का समर्थन; कन्नौज जीतने पर उत्तरपथ स्वामी का खिताब।
  • देवपाल (810–850 .) – दक्षिण में विस्तार; राजधानी मुंगेर; हिंदू धर्म का संरक्षण; दक्षिण-पूर्व एशिया और चीन के साथ व्यापार।
  • बाद के पाल: विग्राहपाल, नारायणपाल, राज्यपाल, गोपाल II, महिपाल I, रामपाल – अंतिम शासक।

 

सेना वंश

  • पाल वंश के पतन के बाद उभरा; संस्थापक सुमंतसेना
  • उत्तराधिकारी: विजयसेना → बललसेना → लक्ष्मणसेना।
  • बललसेना – विद्वान, दानसागर और अद्वुतसागर के लेखक; कुलीनवाद (Kulinism) शुरू किया।
  • पतन: आंतरिक विद्रोह और बख्तियार खलीजी का आक्रमण।
  • लक्ष्मणसेना – साहित्यिक संरक्षक (जयदेव, हालयुध, धोयी); विक्रंपुर, पूर्वी बंगाल भागे।

 

कर्नाट वंश (1097–1324 ई.)

  • नन्यदेव द्वारा मिथिला में स्थापना; संगीत संरक्षक; रागों पर ग्रंथ।
  • राजधानियाँ: सिमरागढ़, दरभंगा, कामलादित्य स्थान (अंधराठाडी, मधुबनी)
  • प्रमुख शासक: गंगा सिंह देव, नरसिंह देव, हरीसिंहदेव
  • हरीसिंहदेव – अंतिम शासक; कला और साहित्य का संवर्धन; राजकीय पुरोहित ज्योतिरिश्वर ने वर्णरत्नाकर लिखा; पंजी व्यवस्था और पंजी प्रबंध की शुरुआत।
  • पतन: घियासुद्दीन तुगलक का आक्रमण; नेपाल भागे → ओइनीवार वंश

 

ओइनीवार वंश (1353–1526 ई.)

  • शासक: उत्तर बिहार (मिथिला)
  • मुस्लिम प्रभाव के पहले अंतिम चरण का प्रतिनिधित्व।
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