शशांक के निधन के बाद उभरें; बंगाल और बिहार में अराजकता।
अनुयायी: महायान और तांत्रिक बौद्ध धर्म।
गोपाल (750–770 ई.) – संस्थापक; लोगों द्वारा चुने गए; ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना; बंगाल और बिहार को संगठित किया।
धर्मपाल (770–810 ई.) – गोपाल के पुत्र; उत्तर में विस्तार; विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना; नालंदा विश्वविद्यालय का समर्थन; कन्नौज जीतने पर उत्तरपथ स्वामी का खिताब।
देवपाल (810–850 ई.) – दक्षिण में विस्तार; राजधानी मुंगेर; हिंदू धर्म का संरक्षण; दक्षिण-पूर्व एशिया और चीन के साथ व्यापार।
बाद के पाल: विग्राहपाल, नारायणपाल, राज्यपाल, गोपाल II, महिपाल I, रामपाल – अंतिम शासक।
सेना वंश
पाल वंश के पतन के बाद उभरा; संस्थापक सुमंतसेना।
उत्तराधिकारी: विजयसेना → बललसेना → लक्ष्मणसेना।
बललसेना – विद्वान, दानसागर और अद्वुतसागर के लेखक; कुलीनवाद (Kulinism) शुरू किया।
पतन: आंतरिक विद्रोह और बख्तियार खलीजी का आक्रमण।
लक्ष्मणसेना – साहित्यिक संरक्षक (जयदेव, हालयुध, धोयी); विक्रंपुर, पूर्वी बंगाल भागे।
कर्नाट वंश (1097–1324 ई.)
नन्यदेव द्वारा मिथिला में स्थापना; संगीत संरक्षक; रागों पर ग्रंथ।
राजधानियाँ: सिमरागढ़, दरभंगा, कामलादित्य स्थान (अंधराठाडी, मधुबनी)।
प्रमुख शासक: गंगा सिंह देव, नरसिंह देव, हरीसिंहदेव।
हरीसिंहदेव – अंतिम शासक; कला और साहित्य का संवर्धन; राजकीय पुरोहित ज्योतिरिश्वर ने वर्णरत्नाकर लिखा; पंजी व्यवस्था और पंजी प्रबंध की शुरुआत।
पतन: घियासुद्दीन तुगलक का आक्रमण; नेपाल भागे → ओइनीवार वंश।