SIR पर ECI के जवाबी हलफनामे की व्याख्या:

SIR पर ECI के जवाबी हलफनामे की व्याख्या:

Static GK   /   SIR पर ECI के जवाबी हलफनामे की व्याख्या:

Change Language English Hindi

द हिंदू: 25 जुलाई 2025 को प्रकाशित:

 

समाचार में क्यों?

21 जुलाई 2025 को भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने सुप्रीम कोर्ट में एक प्रत्युत्तर हलफनामा दायर किया, जो बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका के जवाब में था। यह SIR अभ्यास इस बात को लेकर विवादों में आ गया है कि यह अप्रत्यक्ष रूप से नागरिकता सत्यापन की प्रक्रिया चला रहा है। आलोचकों का कहना है कि यह मतदाता सूची संशोधन के नाम पर NRC जैसी प्रक्रिया को लागू करने का प्रयास है।

 

पृष्ठभूमि:

बिहार में SIR अभ्यास मतदाता सूचियों को "गहन" रूप से अद्यतन करने के लिए शुरू किया गया था। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि यह एक छद्म नागरिकता परीक्षण है — जो कानूनी रूप से संदिग्ध और कार्यान्वयन में त्रुटिपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने ECI को आधार कार्ड, EPIC और राशन कार्ड को पहचान दस्तावेज़ के रूप में मान्य करने की सलाह दी थी — जिसे ECI ने ठुकरा दिया। प्रत्युत्तर हलफनामा मौजूदा मतदाताओं से भी नागरिकता का नया प्रमाण मांगने की वकालत करता है, जिससे वोटिंग अधिकार छीने जाने की आशंका पैदा हो गई है।

 

ECI ने क्या दलील दी है?

कानूनी अधिकार: ECI ने संविधान के अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 15 का हवाला देकर ‘नवीन सिरे से’ मतदाता सूची तैयार करने और नागरिकता की जांच करने का अधिकार बताया।

नागरिकता की पूर्वशर्त: हलफनामे में कहा गया कि केवल भारतीय नागरिकों को ही वोट देने का अधिकार है, इसलिए विशेष रूप से 1987 के बाद जन्मे मतदाताओं से नागरिकता का दस्तावेजी प्रमाण जरूरी है — और 2004 के बाद जन्मे लोगों के लिए और भी कठोर शर्तें हैं।

2003 की मतदाता सूची को प्राथमिकता: 2003 की सूची में जिनके नाम थे उन्हें दस्तावेज़ नहीं देना है — यह कदम मनमाना और बहिष्कारी माना जा रहा है।

आधार और राशन कार्ड को नकारना: आधार को नागरिकता का प्रमाण न मानते हुए खारिज किया गया, जबकि राशन कार्ड को नकली बताया गया। यह ECI के अपने फॉर्म से विरोधाभासी है, जिसमें आधार विवरण मांगा गया है।

 

बिहार में SIR प्रक्रिया क्यों समस्याग्रस्त है?

कानूनी चुनौतियाँ:

कानूनी आधार का अभाव: नागरिकता सत्यापन के लिए ECI को कोई वैधानिक अधिकार नहीं है। NRC भी असम के बाहर कभी लागू नहीं हुआ।

“गहन पुनरीक्षण” की गलत व्याख्या: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में “intensive revisions” शब्द का कोई उल्लेख नहीं है। 2003 के दिशानिर्देशों को आधार बनाना कमजोर कानूनी आधार है।

विधिसम्मत प्रक्रिया का उल्लंघन: पहले से पंजीकृत मतदाताओं से फिर से नागरिकता का प्रमाण माँगना गैरवाजिब है।

2003 की सूची पर अनुचित निर्भरता: केवल 2003 की सूची और उनके बच्चों को छूट देना अन्य मतदाताओं के लिए भेदभावपूर्ण है।

CAA और NRC की अनसुलझी स्थिति: NRC अभी तक कहीं लागू नहीं हुआ, CAA 2003 भी न्यायिक समीक्षा में है — ऐसे में ECI का इसे लागू करना अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

 

व्यवहारिक चुनौतियाँ (Logistical Challenges):

अपूर्ण कवरेज: 24 जुलाई तक ~7 लाख मतदाताओं ने फॉर्म नहीं भरे। ~53 लाख मतदाता BLOs को घर पर नहीं मिले। ~31.5 लाख पलायन कर गए और ~21.6 लाख की मृत्यु हो चुकी थी।

डिजिटलीकरण बनाम दस्तावेज़: 90% फॉर्म डिजिटल हो गए, लेकिन अधिकांश में दस्तावेज़ नहीं थे। दस्तावेज़ों का सत्यापन अगस्त 1 के बाद होगा — यह प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।

संसाधनों पर दबाव: BLOs और स्वयंसेवकों की भारी निर्भरता — जिनमें से कई सभी मतदाताओं तक नहीं पहुँच सके।

व्यापक बहिष्करण का खतरा: दस्तावेजों की कमी के चलते प्रवासी, गरीब और अल्पसंख्यकों का बड़ी संख्या में नाम हटाया जा सकता है।

 

प्रमुख चिंताएँ और आलोचना:

छुपा हुआ NRC: आलोचकों का मानना है कि यह NRC जैसी प्रक्रिया को बिना कानूनी मंजूरी के लागू कर रहा है।

वोटर अधिकारों का हनन: गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोगों के पास जरूरी दस्तावेज़ नहीं होने से उन्हें वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है।

पारदर्शिता की कमी: कितनों ने वैध दस्तावेज़ जमा किए — इस पर कोई जानकारी नहीं।

संवैधानिक अतिरेक: ECI अपनी भूमिका से बाहर जाकर नागरिकता निर्धारण करने की कोशिश कर रहा है।

 

संभावित प्रभाव क्या होंगे?

कानूनी प्रतिक्रिया: सुप्रीम कोर्ट को तय करना होगा कि ECI नागरिकता का प्रमाण मांग सकता है या नहीं।

राजनीतिक प्रभाव: अल्पसंख्यकों और विपक्षी दलों में अविश्वास गहरा सकता है।

वोटर दमन का जोखिम: दस्तावेज़ों की कमी के कारण लाखों लोग मतदान से वंचित हो सकते हैं।

भविष्य की मिसाल: अन्य राज्यों में भी ऐसी प्रक्रिया शुरू होने का रास्ता खुल सकता है — जिससे राष्ट्रीय स्तर पर चिंताएँ उत्पन्न होंगी।

 

निष्कर्ष:

  • बिहार में ECI द्वारा किया गया SIR अभ्यास कानूनी रूप से विवादास्पद, कार्यान्वयन में दोषपूर्ण और संभावित रूप से बहिष्कारी है। 
  • यह मतदाता पात्रता को नागरिकता सत्यापन से जोड़ने की कोशिश कर रहा है, जिससे गंभीर संवैधानिक, राजनीतिक और मानवीय सवाल उठते हैं। 
  • सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय इस मामले में भविष्य के चुनावी अभ्यास और लोकतांत्रिक समावेशन के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है।
Other Post's
  • भारत की वास्तविक विकास दर और पूर्वानुमान:

    Read More
  • भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार

    Read More
  • मानव मेटा-न्यूमोवायरस क्या है?

    Read More
  • 'विक्रांत': भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत

    Read More
  • व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक

    Read More