द हिंदू: 27 फरवरी 2025 को प्रकाशित:
यह खबर में क्यों है?
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए नए अध्ययन में पाया गया है कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से होने वाले प्रदूषण के कारण भारत में चावल और गेहूं की पैदावार 10% तक घट रही है। शोध में पहली बार नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) उत्सर्जन और फसल क्षति के बीच सीधा संबंध दिखाया गया है। चूंकि भारत कोयले पर अत्यधिक निर्भर है और खाद्यान्न की मांग तेजी से बढ़ रही है, इसलिए यह निष्कर्ष नीति निर्माताओं के लिए महत्वपूर्ण है।
प्रमुख मुद्दे-
कोयला आधारित बिजली संयंत्रों द्वारा फैलने वाला प्रदूषण
कोयला संयंत्रों से निकलने वाले NO₂, SO₂, CO₂, राख, धूल और अन्य प्रदूषक वायु प्रदूषण, अम्लीय वर्षा और फसलों की क्षति का कारण बनते हैं।
नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOₓ) विशेष रूप से NO₂ फाइटोटॉक्सिक (phytotoxic) होते हैं, यानी वे पौधों के लिए हानिकारक होते हैं।
NO₂ प्रकाश संश्लेषण को बाधित करता है, ओजोन बनाता है, जो फसल के नुकसान को और बढ़ा देता है।
यह अध्ययन पहली बार बिजली संयंत्रों और कृषि उत्पादन के बीच प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करता है।
सैटेलाइट डेटा के माध्यम से NO₂ के प्रभाव की निगरानी-
कृषि क्षेत्रों में ग्राउंड-लेवल मॉनिटरिंग की कमी के कारण, शोधकर्ताओं ने सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग कर NO₂ के स्तर को मापा।
उन्होंने NIRV (Near-Infrared Reflectance of Vegetation - NIRv) का उपयोग किया, जो फसल की सेहत को मापने का संकेतक है।
इसके बाद, NO₂ प्रदूषण और फसल उत्पादन में कमी के बीच सीधा संबंध स्थापित किया गया।
राज्यों के अनुसार कोयला प्रदूषण का फसलों पर प्रभाव-
छत्तीसगढ़ में NO₂ प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव देखा गया, जहां मानसून में 19% और सर्दियों में 12.5% NO₂ उत्सर्जन कोयला संयंत्रों से आया।
उत्तर प्रदेश में NO₂ का स्तर अधिक था, लेकिन यह अन्य स्रोतों से आया, न कि सिर्फ कोयला संयंत्रों से।
तमिलनाडु में कुल NO₂ उत्सर्जन कम था, लेकिन इसका अधिकांश हिस्सा कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से आया।
ऐसे बिजली संयंत्र जो उपजाऊ कृषि भूमि के पास स्थित हैं, वे सबसे अधिक कृषि क्षति का कारण बने।
कोयला प्रदूषण के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान-
कोयला आधारित NO₂ प्रदूषण के कारण फसल उत्पादन में आई गिरावट से नुकसान (प्रति गीगावाट-घंटा - GWh) इस प्रकार हैं:
₹15 लाख ($17,370) प्रति GWh – गेहूं के लिए
₹11.7 लाख ($13,420) प्रति GWh – चावल के लिए
20% कोयला बिजली उत्पादन ने मानसून के मौसम में 50% चावल की फसल हानि की।
12% कोयला बिजली उत्पादन सर्दियों में 50% गेहूं की फसल हानि से जुड़ा था।
प्रदूषण नियंत्रण से कृषि में संभावित सुधार-
यदि कोयला आधारित प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए, तो कई राज्यों में फसल उत्पादन बढ़ सकता है:
पश्चिम बंगाल: 5.7% कृषि भूमि की उपज 5-10% तक बढ़ सकती है।
मध्य प्रदेश: 5.9% कृषि भूमि पर 5-10% तक वृद्धि, जबकि 11.9% भूमि पर 10% से अधिक वृद्धि हो सकती है।
वार्षिक संभावित लाभ:
₹3,500 करोड़ ($420 मिलियन) – चावल उत्पादन में वृद्धि
₹3,300 करोड़ ($400 मिलियन) – गेहूं उत्पादन में वृद्धि
कुल संभावित वृद्धि: ₹7,000 करोड़ प्रति वर्ष
इस अध्ययन के प्रभाव
आगे क्या हो सकता है?
बिजली क्षेत्र में नीतिगत सुधार – नीति निर्माताओं को कोयला संयंत्रों के NO₂ उत्सर्जन पर नियंत्रण के लिए नई नीतियाँ बनानी पड़ेंगी।
प्रदूषण नियंत्रण के लिए निवेश – ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले क्षेत्रों में नए तकनीकी उपाय लागू किए जा सकते हैं।
अन्य प्रदूषकों का प्रभाव अध्ययन – आगे के शोध में NO₂ के अलावा अन्य प्रदूषकों के फसलों पर प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा।
ऊर्जा का विविधीकरण – नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) को बढ़ावा देना, जिससे कोयले पर निर्भरता कम हो सके।
मुख्य निष्कर्ष: