द हिंदू: 10 दिसंबर 2025 को प्रकाशित।
चर्चा में क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 के तहत किसी भी व्यक्ति को स्वतः नागरिकता नहीं मिलेगी।
पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के कारण आए अल्पसंख्यक नागरिकता तभी पा सकेंगे जब उनकी दावेदारी जांच, सत्यापन और प्रमाण के बाद सही पाई जाएगी।
यह टिप्पणी विशेष मतदाता सूची संशोधन (SIR) के दौरान शरणार्थियों में फैली चिंता पर दायर याचिका की सुनवाई के दौरान आई।
पृष्ठभूमि:
CAA 2019 के तहत
हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग
(जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए)
अगर वे इन तीन देशों में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भागकर आए थे, तो
उन्हें अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।
धारा 6B उन्हें पंजीकरण या प्राकृतिककरण द्वारा नागरिकता के लिए आवेदन की अनुमति देती है।
लेकिन कई आवेदकों ने शिकायत की कि सरकार ने नागरिकता प्रमाणपत्र जारी करने में देरी की है।
SIR प्रक्रिया के दौरान उनका डर बढ़ गया कि उन्हें मतदाता सूची या पहचान से बाहर कर दिया जाएगा, जिसके कारण वे निर्वासन, बहिष्कार और राज्यहीनता के खतरे में हैं।
याचिका में प्रमुख बिंदु
NGO आत्मदीप द्वारा दिए गए मुख्य मुद्दे:
विशेषकर पश्चिम बंगाल में रहने वाले बांग्लादेशी शरणार्थियों में भय और अनिश्चितता।
सरकार द्वारा नागरिकता प्रमाणपत्र जारी करने में देरी।
SIR में CAA आवेदकों के रसीदों को मान्यता न देना।
इससे पैदा हुआ एक प्रकार का संवैधानिक संकट।
प्रभावित लोग ‘‘संसद द्वारा संरक्षित’’ माने जाते हैं, फिर भी उनका भविष्य अनिश्चित है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ:
CAA के तहत नागरिकता का अधिकार स्वतः प्राप्त नहीं होता।
प्रत्येक व्यक्ति की दावेदारी
जांच,
सत्यापन,
दस्तावेज़ी प्रमाण
के बाद ही स्वीकार की जाएगी।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा:
आपको यह साबित करना होगा कि
आप वास्तव में अल्पसंख्यक समुदाय से हैं,
आप उन देशों के निवासी थे,
आप भारत किन परिस्थितियों में आए।
केवल CAA की श्रेणी में आने से नागरिकता निश्चित नहीं हो जाती।
नागरिकता मिलने के बाद ही व्यक्ति मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए आवेदन कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई:
कोर्ट ने भारत निर्वाचन आयोग, केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
उनसे पूछा गया कि नागरिकता प्रमाणपत्र जारी करने में देरी और मतदाता सूची संशोधन से जुड़े मुद्दों पर उनकी स्थिति क्या है।
अगली सुनवाई अगले सप्ताह होगी।
प्रभाव / निहितार्थ
(A) शरणार्थियों पर प्रभाव:
नागरिकता की प्रक्रिया स्वतः नहीं, इसलिए अनिश्चितता बनी रहेगी।
जब तक प्रमाणपत्र नहीं मिलता, वे मतदान जैसे नागरिक अधिकार नहीं पा सकेंगे।
SIR के दौरान बहिष्कार / राज्यहीनता का डर।
(B) केंद्र सरकार पर प्रभाव:
उसे
कुशल जांच व्यवस्था,
समय पर प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया,
पारदर्शिता
सुनिश्चित करनी होगी।
देरी से CAA के प्रति विश्वास घट सकता है।
(C) निर्वाचन आयोग पर प्रभाव:
उसे मतदाता सूची में
वास्तविक,
वैध,
योग्य
लोगों को शामिल करने का ध्यान रखना होगा।
SIR के दौरान आवेदकों की रसीदों की स्थिति स्पष्ट करनी होगी।
संवैधानिक पहलू:
यह मसला जुड़ा है:
अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार)
अनुच्छेद 5–11 (नागरिकता के प्रावधान)
प्राकृतिककरण की कानूनी प्रक्रिया
विधायी और कार्यकारी अधिकारों के संतुलन से भी।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि CAA के अंतर्गत नागरिकता दावा करने का अधिकार तो है, लेकिन अंतिम नागरिकता शर्तों और विस्तृत जांच पर निर्भर करेगी।
यह फैसला CAA की कानूनी प्रक्रिया को संतुलित करता है—
जहाँ एक ओर शरणार्थियों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है, वहीं दूसरी ओर कानूनी जांच प्रक्रिया भी मजबूत रहती है।