'अन्यायपूर्ण नस्लीय भेदभाव' का हवाला देते हुए ट्रम्प ने श्वेत अफ़्रीकनर्स को शरण दी: द हिंदू: 6 जून 2025 को प्रकाशित:

'अन्यायपूर्ण नस्लीय भेदभाव' का हवाला देते हुए ट्रम्प ने श्वेत अफ़्रीकनर्स को शरण दी: द हिंदू: 6 जून 2025 को प्रकाशित:

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द हिंदू: 6 जून 2025 को प्रकाशित:

 

खबर में क्यों?

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने "न्यायहीन नस्लीय भेदभाव" का हवाला देते हुए दक्षिण अफ्रीका के श्वेत अफ्रीकानर्स को शरण देने का फैसला किया है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब उन्होंने अधिकांश अन्य शरणार्थी आवेदनों पर रोक लगा रखी है।

 

पृष्ठभूमि:

अफ्रीकानर्स मुख्यतः डच और यूरोपीय उपनिवेशवादियों के वंशज हैं।

जनवरी 2025 में दक्षिण अफ्रीका ने एक भूमि सुधार कानून पारित किया, जिसमें सार्वजनिक हित में बिना मुआवजे के भूमि अधिग्रहण की अनुमति दी गई।

इस कानून के खिलाफ श्वेत अफ्रीकानर्स ने इसे नस्लीय उत्पीड़न बताया, हालांकि अभी तक कोई भूमि अधिग्रहण नहीं हुआ है।

 

मुख्य मुद्दे:

कानूनी विरोधाभास: अमेरिकी शरण कानून व्यक्तिगत उत्पीड़न को आधार मानता है, न कि समूह-आधारित खतरे या आर्थिक असुरक्षा को।

नीतिगत पक्षपात: जब अधिकांश शरणार्थियों का प्रवेश रोका गया है, तब श्वेत अफ्रीकानर्स को शीघ्रता से शरण देना भेदभावपूर्ण चयन दर्शाता है।

जातीय जटिलता: आज 60% से अधिक अफ्रीकांस भाषी लोग श्वेत नहीं हैं, जिससे “शुद्ध” अफ्रीकानर पहचान का दावा संदेहास्पद है।

उत्पीड़न के प्रमाण नहीं: किसी “श्वेत नरसंहार” का कोई प्रमाण नहीं है। ग्रामीण अपराधों के अधिकतर शिकार काले अफ्रीकी ही हैं।

 

प्रभाव / परिणाम:

शरणार्थी कानूनों का उल्लंघन: यह अंतर्राष्ट्रीय शरण मानकों को कमजोर करता है।

राजनीतिक संदेश: यह निर्णय श्वेत पीड़िता की राजनीति को बढ़ावा देता है।

राजनयिक तनाव: दक्षिण अफ्रीका की नीतियों के गलत प्रस्तुतीकरण से द्विपक्षीय संबंध प्रभावित हो सकते हैं।

वास्तविक पीड़ित उपेक्षित: युद्धग्रस्त क्षेत्रों के 1.2 लाख से अधिक शरणार्थी वर्षों से प्रतीक्षा में हैं।

 

समाधान / आगे की राह:

  • कानूनी निष्पक्षता सुनिश्चित करें: शरणार्थी नीति को तथ्यों और मानवाधिकार सिद्धांतों पर आधारित रखें।
  • साक्ष्य-आधारित मूल्यांकन: उत्पीड़न के दावों की गहन जांच आवश्यक है।
  • राजनीतिक चयन से बचें: शरण व्यवस्था को जातीय या वैचारिक हथियार न बनाएं।
  • वैश्विक सहयोग बढ़ाएं: वास्तविक पीड़ितों को प्राथमिकता दें, चाहे वे किसी भी नस्ल या वर्ग से हों।
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