द हिंदू: 20 अगस्त 2025 को प्रकाशित।
समाचार में क्यों?
चीन ने औद्योगिक अतिउत्पादन (overcapacity) पर लगाम लगाने के लिए पहला बड़ा कदम सौर उद्योग में उठाया है, विशेषकर पॉलीसिलिकॉन क्षेत्र को निशाना बनाकर।
योजना के तहत बड़े उत्पादक लगभग 50 अरब युआन (7 अरब डॉलर) का कोष बनाएँगे, जिससे अक्षम संयंत्रों को खरीदकर बंद किया जाएगा और एक कार्टेल (संधि समूह) बनाकर उत्पादन व कीमतों को नियंत्रित किया जाएगा।
यह पहल चीन के सप्लाई-साइड सुधारों की लिटमस टेस्ट (परीक्षा) मानी जा रही है, क्योंकि पहले उद्योग को आत्म-नियमन करने के प्रयास असफल रहे हैं।
पृष्ठभूमि:
चीन वैश्विक सौर आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) में प्रमुख खिलाड़ी है और वैश्विक पॉलीसिलिकॉन क्षमता का लगभग दो-तिहाई उत्पादन करता है।
अधिक निवेश और उत्पादन क्षमता के कारण कीमतें गिर रही हैं, जिससे लाभप्रदता प्रभावित हुई है और पश्चिमी देशों के साथ व्यापारिक तनाव बढ़ा है।
सौर उद्योग चीन की ग्रीन एनर्जी रणनीति का प्रमुख हिस्सा है, परंतु इसमें अत्यधिक सब्सिडी, अक्षम निवेश और प्रतिस्पर्धी दबाव जैसी समस्याएँ हैं।
पहले भी कीमत न्यूनतम सीमा (price floor) या नई इकाइयों पर प्रतिबंध जैसी पहल असफल रही हैं क्योंकि स्थानीय सरकारें और कंपनियाँ अनुपालन में ढिलाई करती रहीं।
मुख्य मुद्दे:
कार्टेल गठन की चुनौती
यह तय करना कठिन है कि कौन-सी कंपनियाँ शामिल होंगी और कौन बाहर।
कीमत बढ़ने पर कंपनियों के फिर से उत्पादन बढ़ाने की संभावना।
स्थानीय सरकारों का विरोध
प्रदेश अपनी फैक्ट्रियों पर रोजगार और कर राजस्व के लिए निर्भर हैं।
वे संयंत्र बंद करने को तैयार नहीं होंगे।
वित्तीय जोखिम
यदि यह क्षेत्र असफल रहा तो बैंकिंग क्षेत्र को “सुरक्षित” से “जोखिमपूर्ण” क्षेत्र में धकेल सकता है।
व्यापारिक तनाव
कीमतें बढ़ने पर पश्चिमी देश चीन पर बाजार विकृति और डंपिंग का आरोप और तीव्र करेंगे।
निचले स्तर की कंपनियों पर प्रभाव
यदि पॉलीसिलिकॉन महँगा हुआ तो कमजोर सौर पैनल कंपनियाँ टिक नहीं पाएँगी और दिवालिया हो सकती हैं।
प्रभाव:
चीन की अर्थव्यवस्था पर-
सफल होने पर यह सुधार मुद्रास्फीति-नियंत्रण और संरचनात्मक सुधारों को मजबूत करेगा।
असफल होने पर ऋण संकट और अक्षम उत्पादन और गहरा जाएगा।
सौर उद्योग पर-
इससे विलय और समेकन (consolidation) होगा।
लेकिन सौर विस्तार की रफ्तार धीमी पड़ सकती है, जिससे वैश्विक हरित ऊर्जा लक्ष्य प्रभावित होंगे।
वैश्विक व्यापार पर-
चीन और पश्चिमी देशों में व्यापार तनाव और बढ़ सकता है।
स्थानीय राजनीति पर-
केंद्रीय नीतियों बनाम स्थानीय हितों का टकराव तेज हो सकता है।
जोखिम और चुनौतियाँ:
समन्वय विफलता: कार्टेल में शामिल/बहिष्कृत पर असहमति।
धोखाधड़ी की प्रवृत्ति: कीमतें बढ़ते ही कंपनियों द्वारा गुप्त रूप से उत्पादन बढ़ाना।
स्थानीय विरोध: प्रांतीय सरकारें संयंत्र बंद करने से बचेंगी।
वित्तीय अस्थिरता: कमजोर कंपनियों के दिवालियेपन से बैंकों पर बोझ।
विश्वसनीयता पर खतरा: यदि यह सुधार विफल रहा तो अन्य क्षेत्रों में भी ओवरकैपेसिटी सुधार अविश्वसनीय हो जाएँगे।
आगे की राह:
केंद्रीय प्रवर्तन (Enforcement): बीजिंग को सीधे नियंत्रण करना होगा, केवल आत्म-नियमन पर भरोसा नहीं।
संतुलित दृष्टिकोण: कीमतें इतनी न बढ़ें कि पूरा उद्योग डगमगा जाए।
स्थानीय मुआवज़ा तंत्र: प्रभावित प्रांतों को वैकल्पिक उद्योग या प्रोत्साहन देना।
वैश्विक संवाद: पश्चिमी देशों से तनाव कम करने के लिए वार्ता आवश्यक।
निष्कर्ष:
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