क्या वकील मुवक्किल की गोपनीयता भंग कर सकते हैं?

क्या वकील मुवक्किल की गोपनीयता भंग कर सकते हैं?

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द हिंदू: 13 नवंबर 2025 को प्रकाशित।

 

चर्चा में क्यों है?

31 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया कि वकील और मुवक्किल (Client) के बीच होने वाली बातचीत संविधानिक और नैतिक रूप से गोपनीय है।

कोर्ट ने कहा कि वकील को जबरन बुलाकर यह नहीं पूछा जा सकता कि उसके मुवक्किल ने क्या कहा था,

सिवाय कुछ विशेष परिस्थितियों के।

यह फैसला उस समय आया जब अहमदाबाद के एक वकील को पुलिस ने

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 179 के तहत बुलाया था ताकि वह

एक आपराधिक मामले में अपने मुवक्किल से जुड़ी “सच्ची जानकारी” बताए।

 

पृष्ठभूमि:

वकील और मुवक्किल के बीच की बातचीत को गोपनीय रखना न्याय प्रणाली का मूल सिद्धांत है।

इस सिद्धांत को भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Bharatiya Sakshya Adhiniyam - BSA), 2023

की धारा 128 से 134 तक कानूनी संरक्षण दिया गया है।

पुराने Indian Evidence Act, 1872 में भी यह प्रावधान मौजूद था।

धारा 132 विशेष रूप से यह कहती है कि

कोई भी वकील अपने पेशे के दौरान प्राप्त गोपनीय संवाद (professional communications)

को प्रकट नहीं कर सकता।

 

विशेषाधिकार प्राप्त संचार क्या है?

विशेषाधिकार प्राप्त संचार (Privileged Communications) का अर्थ है —

ऐसे गोपनीय संवाद जिन्हें कानून प्रकट करने से मना करता है, ताकि न्याय और भरोसा बना रहे।

इनमें मुख्यतः तीन प्रकार शामिल हैं —

वैवाहिक संवाद (Section 128) – पति-पत्नी के बीच विवाह के दौरान हुई बातें, जिन्हें बिना सहमति उजागर नहीं किया जा सकता।

राजकीय अभिलेख (Section 129) – राज्य से जुड़ी गोपनीय सूचनाएँ बिना विभागीय अनुमति प्रकट नहीं की जा सकतीं।

वकील-मुवक्किल संवाद (Section 132) – वकील अपने मुवक्किल की कही बात को उजागर नहीं कर सकता।

 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, और न्यायमूर्तियों के. विनोद चंद्रन व एन. वी. अंजरिया की पीठ ने कहा —

वकील को मुवक्किल की गोपनीय बातें बताने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

राज्य या पुलिस किसी वकील को बुलाकर मुवक्किल की जानकारी नहीं ले सकती,

जब तक मामला निम्न तीन अपवादों में से किसी एक में न आता हो —

  • मुवक्किल ने अनुमति दी हो।
  • संवाद किसी अवैध उद्देश्य के लिए हुआ हो।
  • वकील ने अपने कार्यकाल में किसी अपराध को होते देखा हो।
  • इस प्रकार, वकील-मुवक्किल के बीच की गोपनीयता कानूनी और नैतिक सुरक्षा प्राप्त करती है।

 

संवैधानिक दृष्टिकोण:

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 132 (BSA) को-

संविधान के अनुच्छेद 20(3) — स्वयं अपराध स्वीकार करने के विरुद्ध अधिकार — से जोड़ा जाना चाहिए।

यदि किसी नागरिक को स्वयं अपराध स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता,

तो राज्य उसके वकील को भी उसकी बातें बताने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।

इस तरह यह फैसला पेशेवर गोपनीयता को संवैधानिक अधिकार का दर्जा देता है।

 

वकील की भूमिका:

फैसले ने यह स्पष्ट किया कि वकील कोई निजी एजेंट नहीं, बल्कि एक संवैधानिक व्यक्ति (Constitutional Actor) है,

जो न्याय और कानून की रक्षा करता है।

यह विशेषाधिकार वकील के लिए नहीं, बल्कि नागरिक की सुरक्षा के लिए है।

यदि राज्य वकील को जबरन गवाह बनाता है, तो इससे

रक्षा और अभियोजन (Defence & Prosecution) की सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं।

यह फैसला निष्पक्ष मुकदमे के अधिकार (Article 21) और

कानून के समक्ष समानता (Article 14) को मजबूत करता है।

 

यह विशेषाधिकार क्यों आवश्यक है?

मुवक्किल और वकील के बीच विश्वास बनाए रखने के लिए।

समाज के कमज़ोर वर्गों की रक्षा के लिए —

यौन हिंसा झेल चुकी महिलाएँ

 

दुर्घटना पीड़ित:

हिरासत में मृत्यु के मामलों के परिवार

यह राज्य के असीमित अधिकारों पर नियंत्रण रखता है।

यह सुनिश्चित करता है कि न्याय प्रक्रिया निष्पक्ष और सुरक्षित रहे।

यह अनुच्छेद 21 (निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार) और

अनुच्छेद 22(1) (कानूनी सहायता का अधिकार) की भावना को जीवित रखता है।

 

व्यापक प्रभाव:

कानून का शासन (Rule of Law) मजबूत हुआ।

जांच एजेंसियों की शक्ति पर नियंत्रण स्थापित हुआ।

मानवाधिकार और निजता की रक्षा को नया बल मिला।

BNSS की धारा 179 की सीमा स्पष्ट हुई —

पुलिस का बुलाने का अधिकार वकील की पेशेवर गोपनीयता पर समाप्त हो जाता है।

 

उद्धृत न्यायिक उदाहरण:

M.H. Hoskot बनाम महाराष्ट्र राज्य (1978) –

न्याय पाने का अधिकार, जीवन के अधिकार का हिस्सा है।

Hussainara Khatoon बनाम बिहार राज्य (1980) –

बिना वकील के स्वतंत्रता केवल सैद्धांतिक होती है।

इन मामलों का हवाला देकर कोर्ट ने कहा कि

प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व न्याय की आत्मा है।

 

निष्कर्ष:

  • सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्याय प्रणाली के मूल सिद्धांतों की पुनर्पुष्टि (Reaffirmation) है।
  • यह फैसला बताता है कि वकील-मुवक्किल की गोपनीयता कोई सुविधा नहीं, बल्कि नागरिक की संवैधानिक ढाल है।
  • यह निर्णय कार्यपालिका (Executive) को यह याद दिलाता है कि शक्ति की सीमा संविधान तय करता है, सुविधा नहीं।
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