कैबिनेट ने जनगणना में जाति गणना को मंजूरी दी:

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द हिंदू: 1 मई 2025 को प्रकाशित:

 

समाचार में क्यों?

केंद्र सरकार ने जातिगत गणना (Caste Enumeration) को आगामी जनगणना में शामिल करने का निर्णय लिया है। यह स्वतंत्र भारत में पहली बार होगा जब सभी जातियों की औपचारिक गिनती की जाएगी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यह घोषणा की। यह फैसला सामाजिक न्याय और सटीक आरक्षण नीति की मांगों के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

 

पृष्ठभूमि:

2021 की जनगणना कोविड-19 के कारण अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई थी।

पिछली बार 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान संपूर्ण जातिगत जनगणना हुई थी।

स्वतंत्रता के बाद से केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गिनती होती रही है।

2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) एक सर्वेक्षण था, जिसमें जाति की जानकारी स्वैच्छिक और असंगठित रूप में ली गई थी।

 

नई जाति जनगणना की मुख्य विशेषताएं:

यह जनगणना के दूसरे चरण में आयोजित की जाएगी।

पहली बार डिजिटल मोड में होगी, मोबाइल ऐप के माध्यम से।

इस बार पूर्वनिर्धारित जाति सूची (Code Directory) दी जाएगी, ताकि 2011 जैसे गड़बड़ी वाले परिणाम न आएं।

इसे वैधानिक आधार (Statutory Backing) मिलेगा, जिससे इसके आंकड़े आधिकारिक रूप से मान्य होंगे।

 

प्रभाव और महत्व:

जातिगत डेटा से नीतिगत निर्णय और कल्याणकारी योजनाएं बेहतर बनाई जा सकेंगी।

यह आंकड़े लोकसभा सीटों के परिसीमन (Delimitation) में उपयोग किए जाएंगे।

33% महिला आरक्षण के क्रियान्वयन में भी यह जनगणना आधार बनेगी।

 

राजनीतिक संदर्भ:

यह फैसला बिहार विधानसभा चुनाव से पहले आया है, जहां जाति महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा रहा है।

भाजपा ने कांग्रेस पर जातिगत जनगणना को लेकर पिछली सरकारों में टालमटोल का आरोप लगाया।

विपक्षी दल, खासकर बिहार में, लंबे समय से जाति आधारित जनगणना की मांग करते रहे हैं।

 

कार्यान्वयन विवरण:

लगभग 30 लाख सरकारी कर्मचारी इस कार्य में लगाए जाएंगे।

मोबाइल ऐप में जातियों के लिए ड्रॉपडाउन विकल्प उपलब्ध रहेगा।

सरकार का दावा है कि इस बार 46 लाख जाति नामों जैसी स्थिति नहीं होगी, जैसी SECC 2011 में हुई थी।

 

चुनौतियाँ और चिंताएँ:

जाति नामों को मानकीकरण (Standardization) करना एक बड़ा कार्य है।

जातिगत आंकड़ों के कारण सामाजिक तनाव या राजनीतिक ध्रुवीकरण की आशंका।

डेटा गोपनीयता और स्व-रिपोर्टिंग की विश्वसनीयता की चिंता।

केंद्र और राज्यों की विभिन्न जाति सूचियों का समन्वय।

 

भावी प्रभाव:

  • OBC आरक्षण की पुनर्समीक्षा संभव है यदि जनसंख्या के अनुसार जाति प्रतिशत बदले।
  • राजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव संभव है, विशेषकर बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में।
  • डेटा-आधारित शासन और लक्षित कल्याण योजनाओं की दिशा में यह एक निर्णायक कदम है।
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