बजट 2025-26: एक आशाजनक पहला कदम, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है-

बजट 2025-26: एक आशाजनक पहला कदम, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है-

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द हिंदू: 11 फरवरी 2025 को प्रकाशित:

 

चर्चा में क्यों है?

1 फरवरी 2025 को प्रस्तुत केंद्रीय बजट वैश्विक अनिश्चितता और धीमी घरेलू अर्थव्यवस्था के बीच आया।

इस बजट में शहरी विकास, टैरिफ सुधार और नियामक सरलीकरण (Regulatory Simplification) पर जोर दिया गया है ताकि भारतीय शहरों और कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाई जा सके।

भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के लिए 8%+ वार्षिक वृद्धि की जरूरत है, जबकि 2025-26 के लिए विकास दर 6.3-6.8% रहने का अनुमान है।

 

बजट की मुख्य बातें

शहरी विकास पर जोर: ₹1 लाख करोड़ की ‘अर्बन चैलेंज फंड’ योजना शहरी बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए प्रस्तावित।

टैरिफ में कटौती: कई आयातित वस्तुओं पर बेसिक कस्टम ड्यूटी (BCD) में कमी कर घरेलू प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने का प्रयास।

नियामक सुधार: ‘हाई-लेवल कमेटी फॉर रेगुलेटरी रिफॉर्म्स’ के गठन का प्रस्ताव, जिससे व्यवसाय करने में आसानी हो सके।

 

आर्थिक परिप्रेक्ष्य एवं चुनौतियाँ

विकास दर में गिरावट: भारत को तेज़ी से विकसित करने के लिए 8%+ वृद्धि दर की ज़रूरत, लेकिन अनुमानित विकास दर इससे काफी कम।

शहरी उत्पादकता में ठहराव: 2000-2020 के दौरान शहरी GDP हिस्सेदारी 52-55% पर स्थिर रही, जिससे शहरी प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि धीमी हुई।

 

बुनियादी ढांचे की कमी:

95% नगरपालिका कचरा एकत्रित होता है, लेकिन केवल 50% का उचित निपटान होता है।

बड़े शहरों में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 115 लीटर प्रतिदिन, जबकि आदर्श स्तर 135-150 लीटर होना चाहिए।

हाउसिंग की कीमतें बहुत अधिक, जिससे मध्यम वर्ग के लिए घर खरीदना कठिन।

उच्च टैरिफ बोझ: अधिक आयात शुल्क के कारण भारतीय उत्पादों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में कमी।

 

बजट सुधारों का संभावित प्रभाव

शहरी बुनियादी ढांचे में सुधार: ‘अर्बन चैलेंज फंड’ यदि सही तरीके से लागू हुआ तो सेवाओं की गुणवत्ता बेहतर हो सकती है।

आवासीय क्षेत्र में पारदर्शिता: ज़मीन के पारदर्शी उपयोग से रियल एस्टेट में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और घरों की कीमतें कम हो सकती हैं।

व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी: कम आयात शुल्क से भारतीय उद्योग वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बेहतर स्थिति में आ सकते हैं।

व्यापार करने में आसानी: नियामक सरलीकरण से निवेश आकर्षित होगा और कॉर्पोरेट क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ेगी।

 

क्रियान्वयन की चुनौतियाँ

शासन प्रणाली की कमजोरी: नगरपालिका आयुक्तों का औसत कार्यकाल केवल 10 महीने, जिससे दीर्घकालिक सुधारों का प्रभाव सीमित।

आंशिक टैरिफ समायोजन: भारत में अभी भी वियतनाम और चीन की तुलना में अधिक टैरिफ दरें लागू।

नियामक सुधारों की सुस्ती: यदि नियामक सुधारों को समयबद्ध तरीके से लागू नहीं किया गया, तो वांछित परिणाम नहीं मिलेंगे।

 

आगे का रास्ता

शहरी प्रशासन को मजबूत करना ताकि बुनियादी ढांचे पर किए गए निवेश का सही लाभ मिले।

प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए और अधिक टैरिफ कटौती और कृषि उपकर (AIDC) को हटाने पर विचार करना।

नियामक सुधारों को पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से लागू करना ताकि आर्थिक वृद्धि को गति मिले।

 

निष्कर्ष:

बजट 2025-26 भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसे प्रभावी रूप से लागू करने और दीर्घकालिक सुधारों के लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता होगी।

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