बायोट्रांसफॉर्मेशन तकनीक

बायोट्रांसफॉर्मेशन तकनीक

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स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

यूनाइटेड किंगडम स्थित एक स्टार्टअप ने बायोट्रांसफॉर्मेशन तकनीक (Biotransformation Technology) विकसित करने का दावा किया है जो प्लास्टिक की अवस्था को बदलकर उसका जैव निम्नीकरण कर सकती है।

बायोट्रांसफॉर्मेशन तकनीक:

परिचय:

  • बायोट्रांसफॉर्मेशन तकनीक यह सुनिश्चित करने का एक क्रांतिकारी तरीका है जिसके द्वारा प्लास्टिक अपशिष्ट को कुशलतापूर्वक संसाधित और अपघटित किया जा सकता है।
  • इस तकनीक का उपयोग करके उत्पादित प्लास्टिक की गुणवत्ता को पूर्व निर्धारित अवधि हेतु बनाए रखा जाता है, जिसके दौरान गुणवत्ता में बदलाव किये बिना वे पारंपरिक प्लास्टिक की तरह दिखते और महसूस होते हैं।
  • जब उत्पाद समाप्त हो जाता है और बाह्य वातावरण के संपर्क में आता है, तो यह स्वयं नष्ट हो जाता है एवं जैव-उपलब्ध मोम में बदल जाता है।
  • फिर इस मोम का सूक्ष्मजीवों द्वारा उपभोग किया जाता है, अपशिष्ट को जल, CO2 और बायोमास में परिवर्तित किया जाता है।
  • यह विश्व की पहली बायोट्रांसफॉर्मेशन तकनीक है जो बिना किसी माइक्रोप्लास्टिक्स के खुले वातावरण में पॉलीओलेफिन का पूरी तरह से जैव निम्नीकरण सुनिश्चित करती है।

ऐसी तकनीक की आवश्यकता:

  1. भारत वार्षिक रूप से 3.5 अरब किलोग्राम प्लास्टिक अपशिष्ट पैदा कर रहा है और पिछले पाँच वर्षों में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक अपशिष्ट का उत्पादन भी दोगुना हो गया है। इसमें से एक-तिहाई पैकेजिंग वेस्ट से आता है।
  2. स्टेटिस्टा के अनुसार, वर्ष 2019 में ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा उत्पन्न प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे की वैश्विक मात्रा एक अरब किलोग्राम से अधिक होने का अनुमान लगाया गया था।
  3. हमारे आस-पास भारी मात्रा में प्लास्टिक कचरा मौजूद है और यह जैवविविधता के लिये खतरा है, इस समस्या को देखते हुए प्लास्टिक के कारण उत्पन्न होने वाले जोखिम को रोकने के लिये प्रौद्योगिकियों को विकसित किये जाने की आवश्यकता है।

उपयोगिता:

खाद्य पैकेजिंग और स्वास्थ्य देखभाल उद्योग दो प्रमुख क्षेत्र हैं जो अपशिष्ट को कम करने के लिये इस तकनीक का उपयोग कर सकते हैं।

इस तकनीक से रहित नियमित प्लास्टिक की तुलना में इसमें लागत वृद्धि न्यूनतम है।

प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करने के विकल्प:

  • जूट अथवा कागज़ आधारित पैकेजिंग पर ज़्यादा बल दिये जाने से संभावित प्लास्टिक अपशिष्ट को कम किया जा सकता है। इससे कागज़ उद्योग में स्थिरता आ सकती है और एथिलीन विलयन के आयात व्यय को कम किया जा सकता है।
  • लकड़ी आधारित पैकेजिंग एक अन्य विकल्प है, लेकिन इससे पैकेजिंग का आकर बड़ा होगा और साथ ही लागत में भी वृद्धि होगी।
  • तमिलनाडु सरकार ने चेन्नई में सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के विकल्पों पर जागरूकता बढ़ाने के लिये नेशनल एक्सपो और स्टार्टअप्स के सम्मेलन का आयोजन किया।
  • प्रदर्शित विकल्पों में कॉयर, खोई (Bagasse), चावल और गेहूँ की भूसी, पौधे एवं कृषि अवशेष, केला तथा सुपारी के पत्ते, जूट एवं कपड़े का उपयोग किया गया था।
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