द हिंदू: 9 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित।
समाचार में क्यों:
वैश्विक वैज्ञानिक एवं नीति संस्थान क्लाइमेट एनालिटिक्स की एक नई रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि एशिया का बढ़ता कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS) पर निर्भरता वर्ष 2050 तक लगभग 25 अरब टन अतिरिक्त कार्बन उत्सर्जन कर सकती है। यह पेरिस समझौते के 1.5°C लक्ष्य को खतरे में डाल सकता है।
पृष्ठभूमि:
CCS तकनीक का उद्देश्य उद्योगों और बिजली संयंत्रों से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर कर भूमिगत भंडारण करना है।
चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया इस तकनीक को बढ़ावा दे रहे हैं।
लेकिन अब तक के अनुभव बताते हैं कि CCS परियोजनाएँ महंगी और कम प्रभावी हैं तथा कई बार तेल उत्पादन बढ़ाने के लिए उपयोग की जाती हैं।
रिपोर्ट की प्रमुख बातें:
उत्सर्जन जोखिम:
एशिया का “हाई-CCS” मार्ग 2050 तक 24.9 गीगाटन (अरब टन) अतिरिक्त CO₂ छोड़ सकता है।
आर्थिक जोखिम:
यह मार्ग “लो-CCS” नवीकरणीय मार्ग की तुलना में 30 ट्रिलियन डॉलर अधिक खर्चीला होगा।
प्रदर्शन जोखिम:
मौजूदा CCS परियोजनाएँ केवल 50% कार्बन पकड़ पाती हैं जबकि आवश्यक दर 95% है।
80% CCS परियोजनाएँ तेल निकालने के लिए कार्बन का पुनः उपयोग करती हैं।
भारत की स्थिति:
भारत में अभी कोई बड़ा CCS प्रोजेक्ट नहीं है।
इस तकनीक को अपनाने के लिए भारत को लगभग $4.3 अरब (₹35,000 करोड़) सरकारी सहायता की जरूरत होगी।
रिपोर्ट के अनुसार भारत सौर, पवन, ग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में पहले से अग्रणी है, जो CCS से सस्ते और व्यावहारिक विकल्प हैं।
एशिया के लिए प्रभाव:
आर्थिक जकड़न: अधिक निवेश से देश फॉसिल ईंधन पर निर्भर रह सकते हैं।
प्रतिस्पर्धात्मकता जोखिम: अधिकांश एशियाई देशों में नवीकरणीय ऊर्जा की लागत CCS से कम है।
नीतिगत जोखिम: जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भविष्य में फंसे हुए परिसंपत्तियों (stranded assets) का सामना कर सकते हैं।
विशेषज्ञ मत:
बिल हेयर (CEO, क्लाइमेट एनालिटिक्स):
“एशिया एक मोड़ पर है। CCS नीतियाँ देशों को फॉसिल ईंधन पर निर्भर बना सकती हैं।”
जेम्स बोवेन (मुख्य लेखक):
“CCS पर अत्यधिक ध्यान सस्ती और सिद्ध तकनीकों — जैसे नवीकरणीय ऊर्जा — से संसाधन हटा सकता है।”
विकल्प:
लो-CCS नीति अपनाने की सिफारिश:
सौर, पवन, जलविद्युत
उद्योगों का विद्युतीकरण
ऊर्जा दक्षता
हरित हाइड्रोजन तकनीक
प्रभाव और आगे की राह:
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