हजारों सालों से जमी बर्फ पिघल रही है, कश्मीर नए खतरों के प्रति जाग रहा है।

हजारों सालों से जमी बर्फ पिघल रही है, कश्मीर नए खतरों के प्रति जाग रहा है।

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द हिंदू: 25 दिसंबर 2024 को प्रकाशित:

 

चर्चा में क्यों है?

एक नई अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का 64.8% भाग पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) से ढका हुआ है। पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से सड़कों, घरों, झीलों और जलविद्युत परियोजनाओं को गंभीर खतरा हो सकता है। हालांकि इस खतरे को अभी तक नजरअंदाज किया गया है, लेकिन बांधों, सड़कों और रियल एस्टेट के निर्माण से यह समस्या और बढ़ रही है।

 

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष-

यह अध्ययन कश्मीर विश्वविद्यालय और IIT-बॉम्बे द्वारा किया गया।

2002 से 2023 तक के उपग्रह डेटा का विश्लेषण किया गया।

अध्ययन में पाया गया कि लद्दाख का 87% हिस्सा पर्माफ्रॉस्ट से ढका है जबकि जम्मू के निचले इलाके, शिगर घाटी और शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं में पर्माफ्रॉस्ट नहीं है।

पर्माफ्रॉस्ट के प्रकार:

सतत (Continuous) पर्माफ्रॉस्ट: 26.7%

असतत (Discontinuous) पर्माफ्रॉस्ट: 23.8%

छिटपुट (Sporadic) पर्माफ्रॉस्ट: 14.3%

 

पर्माफ्रॉस्ट पिघलने के प्रभाव-

बुनियादी ढांचे पर प्रभाव:

193 किमी लंबी सड़कें और 8 जलविद्युत परियोजनाएँ जोखिम में।

लद्दाख में सैन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर भी अस्थिर हो सकता है।

पर्यावरणीय प्रभाव:

पर्माफ्रॉस्ट पिघलने से मीथेन (Methane) गैस निकलती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है।

हिमनदीय झीलों (Glacial Lakes) का विस्तार, जिससे झील विस्फोट (GLOF) का खतरा बढ़ सकता है।

प्राकृतिक आपदाओं का खतरा:

चमोली आपदा (2021) और साउथ लोहनाक झील विस्फोट (2023) पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से हुई घटनाएँ थीं।

332 हिमनदीय झीलें जम्मू-कश्मीर में हैं, जिनमें से 65 झीलों में GLOF का गंभीर खतरा है।

जल आपूर्ति पर प्रभाव:

नदियों के जल प्रवाह में कमी आ सकती है क्योंकि पर्माफ्रॉस्ट से निकलने वाला पानी महत्वपूर्ण योगदान देता है।

पर्यटन और मानवीय गतिविधियाँ:

वनों की कटाई, निर्माण कार्य और बांध परियोजनाएँ पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की प्रक्रिया को तेज कर सकती हैं।

 

वैज्ञानिक और नीति संबंधी चुनौतियाँ-

मौजूदा निगरानी प्रणाली कमजोर – फिलहाल सैटेलाइट डेटा पर निर्भरता, लेकिन ज़मीनी डेटा उपलब्ध नहीं।

पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अधूरा – जलविद्युत परियोजनाओं में पर्माफ्रॉस्ट के प्रभाव का उचित विश्लेषण नहीं किया जाता।

नीति स्पष्ट नहीं – पर्माफ्रॉस्ट-प्रभावित क्षेत्रों के लिए कोई विशेष सरकारी योजना नहीं है।

 

समाधान एवं रणनीतियाँ-

  • बुनियादी ढांचे की योजना में पर्माफ्रॉस्ट डेटा का उपयोग – सड़क और बस्तियों का निर्माण जोखिम क्षेत्रों से दूर किया जाए।
  • बेहतर निगरानी प्रणाली – तापमान परिवर्तन को सटीक रूप से ट्रैक करने के लिए डेटा लॉगर्स लगाए जाएं।
  • आपदा प्रबंधन सुधार – राष्ट्रीय आपदा योजनाओं में हिमनदीय झील विस्फोट (GLOF) और पर्माफ्रॉस्ट पिघलने को शामिल किया जाए।
  • अनुसंधान और जागरूकता बढ़ाना – पर्माफ्रॉस्ट के प्रभाव पर अधिक अध्ययन किए जाएं और नीति-निर्माताओं को शिक्षित किया जाए।

 

निष्कर्ष

पर्माफ्रॉस्ट पिघलना कश्मीर और लद्दाख में एक नई पर्यावरणीय चुनौती के रूप में उभर रहा है। जलवायु परिवर्तन इसका प्रमुख कारण है, लेकिन निर्माण कार्य और मानवीय गतिविधियाँ भी इसे तेज कर रही हैं। यदि प्रभावी नीतियाँ और वैज्ञानिक हस्तक्षेप नहीं किए गए, तो यह सड़कों, जल आपूर्ति, और सैन्य संरचनाओं के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। समय रहते आवश्यक कदम उठाना जरूरी है ताकि इस प्राकृतिक संकट को कम किया जा सके

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